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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि बुद्धि समझ भी ले, तो भी बुद्धि के | | और अब एक तीसरा वक्तव्य और हो गया कि मन हिल रहा है। पार न जाएगी। बुद्धि तो टूट जाए, तो ही अर्जुन पार जा सकता है। पताका हिल रही है; हवा हिल रही है; मन हिल रहा है। हम बूढ़े यह वक्तव्य बुद्धि विनाशक है। वह जो खंड-खंड करने वाली गुरु के पास जाएंगे। बुद्धि है, उसको तोड़ने का उपाय है, उसे व्यर्थ करने का उपाय है। | वे तीनों बूढ़े गुरु के पास गए। बूढ़े गुरु ने कहा कि जब तक तुम और जब दोनों विरोध एक साथ दे दिए जाएं, तो बुद्धि व्यर्थ हो | | देखते हो, हवा हिल रही है, पताका हिल रही है, मन हिल रहा जाती है। फिर सोचने को कुछ भी नहीं बचता। है-जब तक तुम विभाजित करते हो तीन में तब तक तुम न थोड़ा सोचें, निर्गुण भी वही, सगुण भी वही, क्या सोचिएगा? समझ पाओगे। संसार हिलने का नाम है। यहां सभी कुछ हिल रहा इसलिए दो पंथ हमने निर्मित कर लिए हैं। निर्गुणवादियों ने अलग है। और सभी चीजें अलग-अलग नहीं हिल रही हैं, सब चीजें जुड़ी पथ निर्मित कर लिया है। उन्होंने कहा कि नहीं, वह निर्गुण है। | हैं। हवा भी हिल रही है; पताका भी हिल रही है; मन भी हिल रहा सगुणवादियों ने अलग पंथ निर्मित कर लिया। उन्होंने कहा कि | है। तीनों जुड़े हैं। तीनों हिल रहे हैं। संसार कंपन है। नहीं, वह सगुण है; निर्गुण कभी नहीं है। लेकिन गुरु ने कहा कि रिझाई थोड़ा ठीक कहता है तुम दोनों से, ये दोनों बातें बुद्धिगत हैं। अगर निर्गुण है, तो सगुण नहीं हो | क्योंकि न तो तुम पताका का हिलना रोक सकते हो और न हवा का सकता। सगुण है, तो निर्गुण नहीं हो सकता। हमने दो पंथ निर्मित हिलना रोक सकते हो, लेकिन मन का हिलना तुम रोक सकते हो। कर लिए। ये दोनों पंथ अधार्मिक हैं, क्योंकि दोनों पंथ बुद्धिगत और अगर मन का हिलना रुक जाए, तो पताका भी नहीं हिलेगी, बात को मानते हैं। बुद्धि के पार नहीं जाते। हवा भी नहीं हिलेगी; सब हिलना बंद हो जाएगा। तुम्हारा मन धर्म विरोध को जोड़ने वाला है। वह कहता है, वह दोनों है और | हिलता है, इसलिए तुम हिलने को अनुभव कर पाते हो। दोनों नहीं है। जो व्यक्ति इस बात को समझने में राजी हो जाएगा हमारी जो बुद्धि है, वह विरोधों में बंटी है। वह चीजों को बांटती कि दोनों है. उसको समझने की कोशिश में अपनी समझ ही छोड है. एनालाइज करती है, विश्लिष्ट करती है। वह कहती है. यह देनी पड़ेगी। जन्म है, यह मौत है। वह कहती है, यह मित्र है, यह शत्रु है। वह एक घटना मुझे याद आती है। झेन फकीर हुआ रिझाई, वह खड़ा कहती है, यह जहर है, यह अमृत है। वह कहती है, यह अच्छा है, था अपने मंदिर के द्वार पर। मंदिर के ऊपर लगी हुई पताका हवा में और यह बुरा है। हर चीज को बांटती है। हिल रही थी। रिझाई के दो शिष्य मंदिर के सामने से गुजर रहे थे। ___ यह कृष्ण का पूरा प्रयास यही है कि बांटो मत। जगत को, उन्होंने खड़े होकर पताका की तरफ देखा। सुबह का सूरज था, हवाएं अस्तित्व को एक की तरह देखो। बांटो मत। निर्गुण भी वही, गुणों थीं, और पताका कंप रही थी, और जोर से आवाज कर रही थी। वाला भी वही है। रिझाई के एक शिष्य ने कहा कि मैं पूछता हूं, हवा हिल रही है इस पर अगर थोड़े प्रयास करेंगे, इस तरह की विपरीत बातों को या पताका हिल रही है? हिल कौन रहा है? दूसरे शिष्य ने कहा, अगर एक साथ आंख बंद करके ध्यान करेंगे, तो बहुत आनंद हवा हिल रही है। पहले शिष्य ने कहा कि गलत. पताका हिल रही | | आएगा। मन तो कहेगा कि एक कुछ भी तय कर लो जल्दी, या तो है। बड़ा विवाद हो गया। निर्गुण या सगुण। अब हवा और पताका जब हिलते हैं, तो कौन हिल रहा है? __इसे जरा प्रयोग करके देखें। आंख बंद करके कभी बैठ जाएं आसान है एक के पक्ष में वक्तव्य देना। लेकिन सच में कौन हिल | अपने मंदिर में, अपनी मस्जिद में और कहें कि वह दोनों है। और रहा है ? रिझाई खड़ा सुन रहा था, वह बाहर आया। और उसने कहा | फिर अपने से पूछे कि क्या राजी हैं? मन कहेगा कि नहीं, दोनों नहीं कि न तो पताका हिल रही है और न हवा हिल रही है; तुम्हारे मन | हो सकते। एक कुछ भी हो सकता है। मन फौरन कहेगा कि या तो हिल रहे हैं। | मान लो कि सगुण है, या मान लो कि निर्गुण है। लेकिन रिझाई के शिष्यों को बात जमी नहीं। तो रिझाई का बूढ़ा ___ तो मुसलमान मान लिए कि निर्गुण है। तो मूर्तियां तोड़ते फिरे, गुरु मौजूद था, जिंदा था। तो उन्होंने कहा, यह बात हमें जमती नहीं क्योंकि सगुण को नहीं बचने देना है। उनको लगा कि जब निर्गुण है। यह तो और उपद्रव हो गया। हमारा तो दो ही का विवाद था। है, तो फिर सगुण को तोड़ देना है। 272]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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