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0 समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में 0
बिलकुल भी नष्ट कर दे, तो भी वह नाद सुनाई पड़ता रहेगा।। | उन कणों से निकलती है; वे कण प्रिज्म का काम करते हैं। वे किरण
अंधा भी आत्मा को देख सकता है। अंधा भी भीतर के अनुभव | को सात टुकड़ों में तोड़ देते हैं। सूरज की किरण तो सफेद है। में उतर सकता है। और बहरा भी ओंकार के नाद को सुन सकता लेकिन पानी के लटके कणों में से गुजरकर सात टुकड़ों में टूट जाती है। लेकिन हम उस दिशा में मेहनत नहीं करते। हम तो बहरे को है। इसलिए आपको इंद्रधनुष दिखाई पड़ता है। निंदित कर देते हैं कि तुम बहरे हो; तुम्हारा जीवन व्यर्थ है। मनुष्य की बुद्धि भी प्रिज्म का काम करती है और चीजों को
अगर दुनिया कभी ज्यादा समझदार होगी, तो हम बहरे को तोड़ती है। जब तक आप बुद्धि को हटाकर देखने की कला न पा सिखाएंगे वह कला, जिसमें वह भीतर का नाद सुन ले। क्योंकि जाएं, तब तक आपको इंद्रधनुष दिखाई पड़ेगा, चीजें टूटी हुई बहरा हमसे ज्यादा आसानी से सुन सकता है। क्योंकि हम तो बाहर | अनेक रंगों में दिखाई पड़ेंगी। अगर आप इस प्रिज्म को हटा लें, तो के कोलाहल में बुरी तरह उलझे होते हैं। बहरे को भीतर का नाद | | चीज एक रंग की हो जाती है, सफेद हो जाती है। जल्दी सुनाई पड़ सकता है।
सफेद कोई रंग नहीं है। सफेद सब रंगों का जोड़ है। सफेद में और अंधे को भीतर का दर्शन जल्दी हो सकता है। लेकिन हम तो सब रंग छिपे हैं। इसलिए स्कूल में बच्चों को सिखाया जाता है, तो निंदित कर देते हैं। क्योंकि हमारी बाहर आंखों की दुनिया है; जो | | एक छोटा-सा चाक बना लेते हैं। चाक में सात रंग की पंखुड़ियां बाहर नहीं देख सकता, वह अंधा है, वह जीवन से व्यर्थ है। जो बाहर | | लगा देते हैं। और फिर चाक को जोर से घुमाते हैं। चाक जब जोर नहीं सुन सकता, वह व्यर्थ है। जो बोल नहीं सकता, वह बेकार है।। | से घूमता है, तो सात रंग नहीं दिखाई पड़ते, चाक सफेद रंग का
लेकिन भीतर के प्रवेश के लिए मूक होना पड़ता है, बहरा होना | | दिखाई पड़ने लगता है। सफेद सातों रंगों का जोड़ है। सातों रंग पड़ता है और अंधा होना पड़ता है।
सफेद के टूटे हुए हिस्से हैं। और जब कोई अंधा होकर भी भीतर देख लेता है, बहरा होकर जगत इंद्रधनुष है। इंद्रियों से टूटकर जगत का इंद्रधनुष निर्मित भी भीतर सुन लेता है, तब हमें पता चल जाता है कि वह जो भीतर | होता है। इंद्रियों को हटा दें, मन को हटा दें, बुद्धि को हटा दें, तो छिपा है, वह इंद्रियों से जानता है, लेकिन इंद्रियों से रहित है। वह | सारा जगत शुभ्र, एक रंग का हो जाता है। वहां सभी विरोध मिल इंद्रियों के बिना भी जान सकता है।
जाते हैं। वहां काला और हरा और लाल और पीला, सब रंग एक तथा आसक्तिरहित और गुणों से अतीत हुआ निर्गुण भी है, | | हो जाते हैं। अपनी योगमाया से सब का धारण-पोषण करने वाला और गुणों । यह जो कृष्ण कह रहे हैं, यह इंद्रधनुष मिटाने वाली बातें हैं। वे को भोगने वाला भी है।
| कह रहे हैं, निर्गुण भी वही, सगुण भी वही, सब गुण उसी के हैं; इन सारे वक्तव्यों में विरोधों को जोड़ने की कोशिश की गई है। और फिर भी कोई गुण उसका नहीं है। वह कोशिश यह है कि हम परमात्मा को विभाजित न करें। और हम ___ इस तरह की बातों को पढ़कर पश्चिम में तो लोग समझने लगे यह न कहें कि वह ऐसा है और ऐसा नहीं है। वह दोनों है। निर्गुण | कि ये भारत के ऋषि-महर्षि, अवतार, ये थोड़े-से विक्षिप्त मालूम भी है, और गुणों को भोगने वाला भी है।
होते हैं। ये इस तरह के वक्तव्य देते हैं, जिनमें कोई अर्थ ही नहीं है। मनुष्य के मन को सबसे बड़ी कठिनाई यही है, विपरीत को क्योंकि अरस्तू ने कहा है कि ए इज़ ए, एंड कैन नेवर बी नाट जोड़ना। हमें तोड़ना तो आता है, जोड़ना बिलकुल नहीं आता। हम ए-अ अ है और न-अ कभी नहीं हो सकता। इस आधार पर तो किसी भी चीज को बड़ी आसानी से तोड़ लेते हैं। तोड़ने में हमें आज की सारी शिक्षण-पद्धति विकसित हुई है कि विरोध इकट्ठे नहीं जरा अड़चन नहीं होती। क्योंकि बुद्धि की व्यवस्था ही तोड़ने की हो सकते। और यह क्या बात है, वेद, उपनिषद, गीता एक ही बात है। बुद्धि खंडक है। जैसे कि कोई आपने अगर कांच का प्रिज्म देखा | | कहे चले जाते हैं कि वह दोनों है! हो; तो प्रिज्म से किरण को गुजारें प्रकाश की, वह सात टुकड़ों में इसे हम समझ लें ठीक से। इसे कहने का कारण है। टूट जाती है।
आपकी बुद्धि को तोड़ने के लिए यह कहा जा रहा है, आपकी इंद्रधनुष दिखाई पड़ता है वर्षा में, वह इसीलिए दिखाई पड़ता है। बुद्धि को समझाने के लिए नहीं। यह कृष्ण अर्जुन की बुद्धि को वर्षा में कुछ पानी के कण हवा में टंगे रह जाते हैं। सूरज की किरण समझाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं; यह अर्जुन की बुद्धि को तोड़ने