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________________ Ka समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में एक आदमी मूर्ति-पूजा कर रहा है। वह कहता है, भगवान सगुण है, इसलिए हम मूर्ति बनाते हैं। एक आदमी कहता है, वह निर्गुण है, इसलिए हम मूर्ति तोड़ते हैं। लेकिन दोनों मूर्ति की तरफ ध्यान लगाए हुए हैं, एक तोड़ने के लिए, एक बनाने के लिए। मुसलमानों से ज्यादा मूर्ति-पूजक खोजना बहुत मुश्किल है, क्योंकि मूर्ति को तोड़ना भी उसके ही साथ संबंधित हो जाना है। आखिर मूर्ति पर इतना ध्यान देने की जरूरत क्या है! अगर वह निर्गुण है और सगुण नहीं है, तो मूर्ति को तोड़ने से क्या फायदा है ? कोई अर्थ नहीं है। लेकिन आदमी का मन ऐसा है कि वह एक पक्ष में हो जाए, तो दूसरे पक्ष के खिलाफ कोशिश करता है; तो ही एक पक्ष में रह सकता है। डर लगता है कि कहीं दूसरा पक्ष ठीक न हो; तो मिटा दो दूसरे पक्ष को। - लेकिन कुछ मिट सकता नहीं। पत्थर की मूर्तियां टूट सकती हैं। ये आदमी भी सब मूर्तियां हैं। इनको कैसे तोड़िएगा? वृक्ष भी एक मूर्ति है। पत्थर को भी तोड़ दो, तो वह जो टूटा हुआ पत्थर है, वह भी मूर्ति है; वह भी एक मूर्त रूप है; वह भी आकार है। आकार कैसे मिटाइएगा? अस्तित्व में दोनों समाविष्ट हैं, निराकार भी, आकार भी। न तो बनाने की कोई जरूरत है, न मिटाने की कोई जरूरत है। बनाने और मिटाने का अगर कोई काम ही करना हो, तो भीतर करना जरूरी है कि भीतर इस मन को इस हालत में लाना जरूरी है कि जहां यह दोनों विरोधों को एक साथ स्वीकार कर ले। जैसे ही दोनों विरोध एक साथ स्वीकार होते हैं, मन गिर जाता है और समाप्त हो जाता है। और अमन की स्थिति पैदा हो जाती है। वह अमनी स्थिति ही समाधि है। यह सारा प्रयोजन कृष्ण का इतना ही है कि आप दोनों को एक साथ स्वीकार करने को राजी हो जाएं। राजी होते ही आप रूपांतरित हो जाएंगे। और जब तक आप राजी न होंगे और एक पक्ष में झुकेंगे, तब तक आप बदल नहीं सकते हैं, तब तक आप द्वंद्व में ही घिरे रहेंगे। दो में से एक को चुनना द्वैत को समर्थन करना है। दोनों को एक साथ स्वीकार कर लेना, अद्वैत की उपलब्धि है। पांच मिनट रुकेंगे। कोई उठे न बीच से। कीर्तन पूरा हो जाए, फिर जाएं। कीर्तन के बाद दो मिनट सिर्फ संगीत चलता है, उस वक्त भी न उठे। एक पांच मिनट पूरा बैठे रहें। 273
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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