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• समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में -
को मुट्ठी नहीं घेर सकती। मुट्ठी आकाश से बड़ी नहीं हो सकती। अगर आप हृदयपूर्वक अपने हाथ को उसके हाथ में दे दें,
मनुष्य की चेतना परमात्मा को पूरा अपनी मुट्ठी में नहीं ले पाती, | | असंदिग्ध मन से, तो शून्य आकाश भी उसका हाथ बन जाएगा। क्योंकि मनुष्य की चेतना स्वयं ही परमात्मा के भीतर है। फिर भी हम | और आपके हाथ को वह सम्हाल लेगा। लेकिन यह निर्भर आप पर कोशिश करते हैं। उस कोशिश में थोड़ी-सी झलकें मिल सकती हैं। | है। क्योंकि अगर यह हृदय पूरा हो, तो यह घटना घट जाएगी, लेकिन झलक भी तभी मिल सकती है, जब कोई सहानुभूति से | क्योंकि सब कछ वही है। हर जगह उसका हाथ उठ सकता है। हर समझने की कोशिश कर रहा हो। अगर जरा भी सहानुभूति की कमी | | हवा की लहर उसका हाथ बन सकती है। लेकिन वह बनाने की कला हो, तो झलक भी नहीं मिलेगी, झलक भी खो जाएगी। आपके भीतर है। अगर यह श्रद्धा पूरी हो, तो यह घटना घट जाएगी।
शब्द असमर्थ हैं। लेकिन अगर सहानुभूति हो, तो शब्दों में से | | लेकिन अगर जरा-सा भी संदेह हो, तो यह घटना नहीं घटेगी। कुछ सार-सूचना मिल सकती है।
लोग कहते हैं कि हमारा संदेह तो तब मिटेगा, जब घटना घट परंतु वह सब ओर से हाथ-पैर वाला एवं सब ओर से नेत्र, सिर | जाए। वे भी ठीक ही कहते हैं। संदेह तभी मिटेगा, जब घटना घट और मुख वाला है तथा सब ओर से श्रोत वाला है, क्योंकि वह | | जाए। लेकिन तब बड़ी कठिनाई है। कठिनाई यह है कि जब तक संसार में सब को व्याप्त करके स्थित है।
| संदेह न मिटे, घटना भी नहीं घटती। यह बड़ी उलझन की बात है। लेकिन इसका यह मतलब मत समझना कि वह अकथनीय है,। | मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक बार नदी में तैरना सीखने निराकार है, निर्गुण है, न कहा जा सकता सत, न असत, तो हमसे | गया। लेकिन पहली दफा पानी में उतरा और गोता खा गया, और सारा संबंध ही छूट गया। फिर आदमी को लगता है कि ऐसी चीज, | | मुंह में पानी चला गया, और नाक में पानी उतर गया। तो घबड़ाकर शून्य जैसी, उससे हमारा क्या लेना-देना! फिर हम किसके सामने | | बाहर निकल आया। उसने कहा, कसम खाता हूं भगवान की, अब रो रहे हैं? और किससे प्रार्थना कर रहे हैं? और किसकी पूजा कर | जब तक तैरना न सीख लूं, पानी में न उतरूंगा। रहे हैं? और किसके प्रति समर्पण करें? जो न है, न नहीं है, जो | लेकिन जो उसे सिखाने ले गया था, उसने कहा, नसरुद्दीन, अकथनीय है। कृष्ण खुद जिसको कहने में समर्थ न हों, उसके | | अगर यह कसम तुम्हारी पक्की है, तो तुम तैरना सीखोगे कैसे? बाबत बात ही क्या करनी है। फिर बेहतर है, हम अपने काम-काज क्योंकि जब तक तम पानी में न उतरो, तैरना न सीख पाओगे। और की दनिया में लगे रहें। ऐसे अकथनीय के उपद्रव में हम न पड़ेंगे। तमने खा ली कसम कि जब तक तैरना न सीख लं. पानी में न क्योंकि जिसे कहा नहीं जा सकता, समझा नहीं जा सकता, उससे | उतरूंगा। अब बड़ी मुश्किल हो गई। पानी में उतरोगे, तभी तैरना संबंध भी क्या निर्मित होगा!
भी सीख सकते हो। तो तत्क्षण दूसरे वचन में ही कृष्ण कहते हैं, परंतु वह सब ओर थोड़ा डूबने की, गोता खाने की तैयारी चाहिए। थोड़ा जीवन को . से हाथ-पैर वाला, सब ओर से नेत्र, सिर, मुख वाला, कान वाला | | संकट में डालने की तैयारी चाहिए, तो ही कोई तैरना सीख सकता है, क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त कर के स्थित है। है। अब कोई घाट पर बैठकर तैरना नहीं सीख सकता।।
जैसे उसका प्रकट और अप्रकट रूप है, वैसे ही उसका आकार | | अगर आपको लगता हो कि संदेह तो हम तभी छोड़ेंगे, जब और निराकार रूप है। जैसा उसका निराकार और आकार रूप है, | | उसका हाथ हमारे हाथ को पकड़ ले, तो बड़ी कठिनाई में हैं आप। वैसा ही उसका सगुण और निर्गुण रूप है। वह दोनों है, दोनों | | क्योंकि उसका हाथ तो सब तरफ मौजूद है। लेकिन जिसका संदेह विपरीतताएं एक साथ। इसलिए अगर कोई चाहे तो उससे बात कर | छूट गया, उसी के लिए हाथ उसकी पकड़ में आता है। आप तभी सकता है। कोई चाहे तो उसके कान में बात डाल सकता है। कोई | | पकड़ पाएंगे—उसका हाथ तो मौजूद है—आप तभी पकड़ पाएंगे, कान आपके सामने नहीं आएगा। लेकिन अगर आप पूरे | जब आपका संदेह छूट जाए। हृदयपूर्वक उससे कुछ कहें, तो उस तक पहुंच जाएगा, क्योंकि | तो कुछ प्रयोग करने पड़ेंगे, जिनसे संदेह छूटे। कुछ प्रयोग सभी तरफ उसके कान हैं।
| करने पड़ेंगे, जिनसे श्रद्धा बढ़े। कुछ प्रयोग करने पड़ेंगे, जिनसे कृष्ण यह कह रहे हैं, सब ओर से कान वाला, सब ओर से हाथ |
| वह खला आकाश उसके हाथ. उसके कान. उसकी आंखों में वाला...।
रूपांतरित हो जाए।
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