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________________ समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में दूर है, लेकिन दूर से भी उसकी काली छाया पड़ती ही रहती है। क्योंकि आस्तिकता-नास्तिकता तो जीवन को दो हिस्सों में तोड़ हमारे सभी सखों में मौत की छाया आकर जहर घोल देती है, कितने लेती हैं। आस्तिक कहता है, ईश्वर है। नास्तिक कहता है, ईश्वर ही सुखी हों। बल्कि सच तो यह है कि सुख के क्षण में भी मौत की नहीं है। लेकिन दोनों एक ही भाषा का उपयोग कर रहे हैं। आस्तिक झलक बहुत साफ होती है, क्योंकि सुख के क्षण में भी तत्क्षण | कहता है, है में हमने ईश्वर को पूरा कह दिया। और नास्तिक कहता दिखाई पड़ता है कि क्षणभर का ही है यह सुख। वह जो क्षणभर का है कि नहीं है में हमने पूरा कह दिया। उनमें फर्क शब्दों का है। दिखाई पड़ रहा है, वह मौत की छाया है। लेकिन दोनों दावा करते हैं कि हमने पूरे ईश्वर को कह दिया। पढ़ रहा था मैं हरमन हेस के बाबत। जिस दिन उसे नोबल प्राइज गीता कहती है कि कोई भी शब्द उसे पूरा नहीं कह सकता। मिली, उसने अपने मित्र को एक पत्र में लिखा है कि एक क्षण को | क्योंकि शब्द छोटे हैं और वह बहुत बड़ा है। हम कहेंगे है, तो भी मैं परम आनंदित मालूम हुआ। लेकिन एक क्षण को! और तत्क्षण | आधा कहेंगे, क्योंकि नहीं होना भी जगत में घटित होता है। वह भी उदासी छा गई, अब क्या होगा? अभी तक एक आशा थी कि | तो परमात्मा में ही घटित हो रहा है। नहीं है अगर परमात्मा के बाहर नोबल प्राइज। वह मिल गई; अब? घनघोर अंधेरा घेर लिया। अब | | हो, तो इसका अर्थ हुआ कि जगत के दो हिस्से हो गए। कुछ जीवन व्यर्थ मालूम पड़ा, क्योंकि अब कुछ पाने योग्य भी नहीं। | परमात्मा के भीतर है, और कुछ परमात्मा के बाहर है। तब तो मौत करीब दिखाई पड़ने लगी। परमात्मा दो हो गए; तब तो जगत विभाजित हो गया। आदमी दौड़ता रहता है, जब तक सुख नहीं मिलता। जब मिलता । अगर हम कहें कि परमात्मा सिर्फ जीवन है, तो फिर मौत किस है, तब अचानक दिखाई पड़ता है, अब? अब क्या होगा? जिस | | में होगी? और अगर हम कहें कि परमात्मा सिर्फ सुख है, तो दुख स्त्री को पाना था, वह मिल गई। जिस मकान को बनाना था, वह | | किस में होगा? और अगर हम कहें कि परमात्मा सिर्फ स्वर्ग है, मिल गया। बेटा चाहिए था, बेटा पैदा हो गया। अब? तो फिर नर्क कहां होगा? फिर हमें नर्क को अलग बनाना पड़ेगा सुख के क्षण में सुख क्षणभंगुर है, तत्क्षण दिखाई पड़ जाता है। परमात्मा से। उसका अर्थ हुआ कि हमने अस्तित्व को दो हिस्सों सुख के क्षण में सुख जा चुका, यह अनुभव में आ जाता है। सुख | | में तोड़ दिया। और अस्तित्व दो हिस्सों में टूटा हुआ नहीं है; के क्षण में दुख मौजूद हो जाता है। अस्तित्व एक है। मौत सब तरफ से घेरे हुए है, इसलिए कृष्ण कहते हैं, अमृत और | परमात्मा ही जीवन है और परमात्मा ही मृत्यु। दोनों है। इसलिए परमानंद को जिससे प्राप्त हो जाए, वही ज्ञान है। और ऐसी जानने | कृष्ण कहते हैं, वह अकथनीय है। क्योंकि जब कोई चीज दोनों हो, योग्य बातें मैं तुझसे अच्छी प्रकार कहूंगा। तो अकथनीय हो जाती है। कथन में तो तभी तक होती है, जब तक वह आदिरहित परम ब्रह्म अकथनीय होने से न सत कहा जाता एक हो और विपरीत न हो। है और न असत ही कहा जाता है। अरस्तू ने कहा है कि आप दोनों विपरीत बातें एक साथ कहें, तो यह बहुत सूक्ष्म बात है। थोड़ा ध्यानपूर्वक समझ लेंगे। वक्तव्य व्यर्थ हो जाता है। वह आदिरहित परम ब्रह्म अकथनीय होने से न सत कहा जाता | जैसे कि अगर आप मुझसे पूछे कि आप यहां हैं या नहीं हैं ? मैं है और न असत ही कहा जाता है। | कहूं कि मैं यहां हूं भी और नहीं भी हूं, तो वक्तव्य व्यर्थ हो गया। परमात्मा को हम न तो कह सकते कि वह है, और न कह सकते | अदालत आपसे पूछे कि आपने हत्या की या नहीं की? और आप कि वह नहीं है। कठिन बात है। क्योंकि हमें तो लगता है, दोनों कहें, हत्या मैंने की भी है और मैंने नहीं भी की है, तो आपका बातों में से कुछ भी कहिए तो ठीक है, समझ में आता है। या तो वक्तव्य व्यर्थ हो गया। क्योंकि दोनों विपरीत बातें एक साथ नहीं कहिए कि है, या कहिए कि नहीं है। दुनिया में जो आस्तिक और हो सकतीं। नास्तिक हैं, वे इसी विवाद में होते हैं। अरस्तू का तर्क कहता है, एक ही बात सही हो सकती है। और इसलिए अगर कोई पूछे कि गीता आस्तिक है या नास्तिक? तो | यही बुनियादी फर्क है, भारतीय चिंतना में और यूनानी चिंतना में, मैं कहूंगा, दोनों नहीं है। कोई पूछे कि वेद आस्तिक हैं या नास्तिक? | पश्चिम और पूरब के विचार में। तो मैं कहूंगा, दोनों नहीं हैं। धार्मिक हैं, आस्तिक-नास्तिक नहीं हैं। । पश्चिम कहता है कि विपरीत बातें साथ नहीं हो सकती हैं, 267]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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