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0 गीता दर्शन भाग-60
दर्शनशास्त्र खुजली की तरह है। खुजाने का मन होता है, इसकी | जाएगा। और अगर समाधान चाहिए, तो फिर साधना की तैयारी बिना फिक्र किए कि परिणाम क्या होगा। खुजाते वक्त अच्छा भी करनी पड़ेगी। समाधान तो तेरे रूपांतरण से होगा। लगता है। लेकिन फिर लहू निकल आता है और पीड़ा होती है! तो कृष्ण कहते हैं, जो जानने योग्य है और जिसको जानकर ___धर्म कहता है, खुजाने के पहले पूछ लेना जरूरी है कि परिणाम | | मनुष्य अमृत को प्राप्त होता है...। क्या होगा। जिस जानने से और जानने के सवाल उठ जाएंगे, वह वही जानने योग्य है, जिसको जानकर आदमी अमृत को प्राप्त जानना व्यर्थ है। पर एक ऐसा जानना भी है, जिसको जानकर सब | | होता है। और अमृत परमानंद है, मृत्यु दुख है। जानने की दौड़ समाप्त हो जाती है। वह कब होगी? उस बात को हमारे सभी दुखों के पीछे मृत्यु छिपी है। अगर आप खोज भी ठीक से समझ लेना चाहिए। आखिर आदमी जानना ही क्यों | तो आप जिन बातों को भी दुख मानते हैं, उन सबके पीछे मृत्यु की चाहता है?
| छाया मिलेगी। चाहे ऊपर से दिखाई भी न पड़े, थोड़ा खोज करेंगे, इसे हम ऐसा समझें कि अगर कोई मृत्यु न हो, तो दुनिया में | तो पाएंगे, सभी दुखों के भीतर मृत्यु छिपी है। जहां भी मृत्यु की दर्शनशास्त्र होगा ही नहीं। मृत्यु के कारण आदमी पूछता है, जीवन | झलक मिलती है, वहीं दुख आ जाता है। क्या है? मृत्यु के कारण आदमी पूछता है, शरीर ही सब कुछ तो | बुढ़ापे का दुख है, बीमारी का दुख है, असफलता का दुख है, नहीं है, आत्मा भीतर है या नहीं? मृत्यु के कारण आदमी पूछता है, | सब मृत्यु का ही दुख है। धन छिन जाए, तो दुख है; वह भी मृत्यु जब शरीर गिर जाएगा तो क्या होगा? मृत्यु के कारण आदमी पूछता | का ही दुख है। क्योंकि धन से लगता है, इस जीवन को सुरक्षित है, परमात्मा है या नहीं है?
| करेंगे। धन छिन गया, असुरक्षित हो गए। थोड़ी कल्पना करें एक ऐसे जगत की, जहां मृत्यु नहीं है, जीवन | मकान जल जाए. तो दख होता है। वह भी मकान के जलने का शाश्वत है। वहां न तो आप पूछेगे आत्मा के संबंध में, न परमात्मा दुख नहीं है। मकान की दीवारों के भीतर मालूम होता था, सब ठीक के संबंध में। वहां दर्शनशास्त्र का जन्म ही नहीं होगा। है, सुरक्षित है। मकान के बाहर आकाश के नीचे खड़े होकर मौत सारा दर्शनशास्त्र मृत्यु से जन्मता है।
ज्यादा करीब मालूम पड़ती है। इसलिए धर्म कहता है, जब तक अमृत का पता न चल जाए, धन पास में न हो, तो मौत पास मालूम पड़ती है। धन पास में तब तक तुम्हारे प्रश्नों का कोई अंत न होगा, क्योंकि तुम मृत्यु के | हो, तो मौत जरा दूर मालूम पड़ती है। धन की दीवार बीच में खड़ी कारण पूछ रहे हो। जब तक तुम्हें अमृत का पता न चल जाए, तब | हो, तो हम मौत को टाल सकते हैं, कि अभी कोई फिक्र नहीं; तक तुम पूछते ही रहोगे, पूछते ही रहोगे। और कोई भी उत्तर दिया | देखेंगे। और फिर धन हमारे पास है, कुछ न कुछ इंतजाम कर लेंगे।
न होगा, जब तक कि अमृत का अनुभव न मिल जाए। चिकित्सा हो सकती है, डाक्टर हो सकता है। कुछ होगा। हम मृत्यु ___ इसलिए बुद्ध अक्सर कहते थे उनके पास आए लोगों से, कि को पोस्टपोन कर सकते हैं। वह हो या न, यह दूसरी बात है। तुम प्रश्नों के उत्तर चाहते हो या समाधान? जो भी आदमी आता लेकिन हम अपने मन में सोच सकते हैं कि इतनी जल्दी नहीं है उसको तो एकदम से समझ में भी न पड़ता कि फर्क क्या है? कोई | कुछ, कुछ उपाय किया जा सकता है। धन पास में न हो, प्रियजन आदमी आकर पूछता कि ईश्वर है या नहीं? तो बुद्ध कहते, तू उत्तर | पास में न हों, अकेले आप खड़े हों आकाश के नीचे, मकान जल चाहता है कि समाधान? तो वह आदमी तो पहले चौंकता ही कि | | गया हो, मौत एकदम पास मालूम पड़ेगी। दोनों में फर्क क्या है? तो बुद्ध कहते, उत्तर अगर चाहिए, तो उत्तर | सफल होता है आदमी, तो मौत बहुत दूर मालूम पड़ती है। तो हां या न में दिया जा सकता है, कि ईश्वर है या ईश्वर नहीं है। असफल होता है आदमी, तो खयाल आने लगते हैं उदासी के, मरने लेकिन तुझे उत्तर मिलेगा नहीं। क्योंकि मेरे कहने से क्या होगा! का भाव होने लगता है। उत्तर तो मैं दे सकता हूं; समाधान तुझे खोजना पड़ेगा। उत्तर तो ऐसे | जहां भी दुख है, समझ लेना कि वहां मौत कहीं न कहीं से झांक मुफ्त मिल सकता है, समाधान साधना से मिलेगा। उत्तर तो ऊपरी | रही है। होगा, समाधान आंतरिक होगा। तो तू ईश्वर है या नहीं, इसका उत्तर तो हम मृत्यु को जानते हुए और मृत्यु में जीते हुए कभी भी आनंद चाहता है कि समाधान? उत्तर चाहिए, तो शास्त्र में भी मिल | | को उपलब्ध नहीं हो सकते। हम भुला सकते हैं अपने को, कि मौत
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