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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 स्त्री भी सुंदर है; यह भी सुंदर है और सभी सुंदर हैं। सुंदर तो सभी | | हो, तो सभी नाम बराबर हैं। जिस आदमी को चलना नहीं है, वह हैं। और यह बात कहनी ठीक नहीं है, क्योंकि गणित के हिसाब से | | आदमी इस तरह की बातें कर सकता है। लेकिन जिसको चलना ठीक नहीं बैठती। तो आप कभी प्रेम में ही न पड पाएंगे। और अगर है. उसका सिर तो एक जगह झकना चाहिए। क्योंकि ने के लिए सच में आप प्रेम में पड़ जाएं, तो उस क्षण में एक स्त्री, एक पुरुष | | जो अनन्य भाव न हो, तो पूरा समर्पण नहीं हो सकता। आपको परम सुंदर मालूम पड़ेगा। मस्जिद में गया हुआ आदमी सोचता है, मंदिर भी ठीक, गिरजा ___ उसमें अगर आप लीन हो सकें, तो धीरे-धीरे स्त्री का व्यक्तित्व | | भी ठीक, गुरुद्वारा भी ठीक, तो झुक नहीं सकता। वह जो झुकने खो जाएगा। और स्त्रैण तत्व का सौंदर्य दिखाई पड़ने लगेगा। और | की दशा चाहिए कि डूब जाए पूरा, वह नहीं हो सकता। वह तो होगा गहरे उतरेंगे, तो स्त्रैण तत्व भी खो जाएगा, सिर्फ चैतन्य का सौंदर्य अनन्य भाव से। अनुभव में आने लगेगा। जितने गहरे उतरेंगे, सीमा टूटती जाएगी तो कृष्ण जो कहते हैं अव्यभिचारिणी भक्ति, उसका अर्थ है, और असीम प्रकट होने लगेगा। लेकिन प्राथमिक क्षण में तो यही एक के प्रति। फिर सवाल यह नहीं है कि वह अल्लाह के प्रति हो, भाव पैदा होगा कि इससे ज्यादा सुंदर और कोई भी नहीं है। कि राम के प्रति हो, कि बुद्ध के प्रति हो, कि महावीर के प्रति हो, बहुत बार धार्मिक, सामाजिक सुधार करने वाले लोग, बहुत | यह सवाल नहीं है। किसी के प्रति हो. वह एक के प्रति हो। तरह के नुकसान पहुंचा देते हैं। वे समझा देते हैं, अल्लाह ईश्वर इस संबंध में यह बात समझ लेनी जरूरी है कि दुनिया के जो तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान। वे बिलकुल ठीक कह रहे हैं। | पुराने दो धर्म हैं, यहूदी और हिंदू, बाकी सब धर्म उनकी ही शाखाएं और फिर भी गलत कह रहे हैं। क्योंकि जिस आदमी को ऐसा लग हैं। इस्लाम, ईसाइयत यहूदी धर्म की शाखाएं हैं। जैन, बौद्ध हिंदू गया, अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, न तो अल्लाह के प्रति डूबने की | धर्म की शाखाएं हैं। लेकिन मौलिक धर्म दो हैं, हिंदू और यहूदी। क्षमता आएगी और न राम के प्रति डूबने की क्षमता आएगी। और दोनों के संबंध में एक बात सच है कि दोनों ही नान-कनवर्टिंग प्राथमिक क्षण में तो ऐसा मालूम होना चाहिए कि अल्लाह ही | | हैं। न तो यहूदी पसंद करते हैं कि किसी को यहूदी बनाया जाए सत्य है, राम वगैरह सब व्यर्थ। या राम ही सत्य है, अल्लाह वगैरह | समझा-बुझाकर। और न हिंदू पसंद करते रहे हैं कि किसी को सब व्यर्थ। प्राथमिक क्षण में तो यह प्रेम का ही भाव होना चाहिए। | समझा-बुझाकर हिंदू बनाया जाए। दोनों की मान्यता यह रही है कि तम अनभव में पता चल जाएगा. शिखर पर पहंचकर, कि सभी किसी की भी जो अनन्य श्रद्धा हो, उससे उसे जरा भी हिलाया न रास्ते यहीं आते हैं। | जाए। उसकी जो श्रद्धा हो, वह उसी श्रद्धा से आगे बढ़े। और अगर लेकिन जमीन पर बैठा हुआ आदमी, जो पहाड़ पर चढ़ा नहीं, कोई व्यक्ति आधे जीवन में परिवर्तित कर लिया जाए, तो उसकी वह कहता है, सभी रास्ते वहीं जाते हैं। फिर वह चलेगा कैसे! श्रद्धा कभी भी अनन्य न हो पाएगी। चलना तो एक रास्ते पर होता है। सभी रास्तों पर कोई भी नहीं चल __ एक बच्चा हिंदू की तरह पैदा हुआ और तीस साल तक हिंदू भाव सकता। चलने के लिए तो यह भाव होना चाहिए कि यही रास्ता | में बड़ा हुआ। और फिर तीस साल के बाद उसे यहूदी बना दिया जाता है. बाकी कोई रास्ता नहीं जाता। तो ही हिम्मत, उत्साह पैदा | जाए। वह यहूदी भला बन जाए, लेकिन भीतर हिंदू रहेगा, ऊपर होता है। लेकिन जो चला नहीं है, बैठा है अभी दरवाजे पर ही यात्रा यहूदी रहेगा। और ये दो परतें उसके भीतर रहेंगी। इन दो परतों के के, वह कहता है, सभी रास्ते वहां जाते हैं। वह चल ही नहीं पाएगा, कारण वह कभी भी एक भाव को और एक समर्पण को उपलब्ध पहला कदम ही नहीं उठेगा। नहीं हो पाएगा। तो जो अंतिम रूप से सत्य है, वह प्रथम रूप से सत्य हो, यह इसलिए दुनिया के ये पुराने दो धर्म नान-कनवर्टिग थे। इन्होंने जरूरी नहीं है। और जो प्रथम रूप से सत्य मालूम होता है, वह अंत | | कहा, हम किसी को बदलेंगे नहीं। अगर कोई बदलने को भी में भी बचेगा, यह भी जरूरी नहीं है। आएगा, तो भी बहुत विचार करेंगे, बहुत सोचेंगे, समझेंगे-तब। __ आखिर में तो न अल्लाह उसका नाम है और न राम उसका नाम | | जहां तक तो कोशिश यह करेंगे उसको समझाने की कि वह बदलने है। उसका कोई नाम ही नहीं है। लेकिन प्राथमिक रूप से तो कोई की चेष्टा छोड़ दे। वह जहां है, जिस तरफ चल रहा है, वहीं अनन्य एक नाम को ही पकड़कर चलना, अगर चलना हो। अगर बैठना | | भाव से चले। वहीं से पहुंच जाए। 264
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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