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0 समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में -
अपने ही किसी दोष के कारण लगता है।
गीता में, न कुरान में। सबको ठीक कहने का मतलब ऐसा नहीं है तो दूसरा उपाय है। और वह दूसरा उपाय है, अनंत के प्रति प्रेम। कि वे जानते हैं कि सब ठीक है। सबको ठीक कहने का मतलब तब फिर एक का खयाल ही छोड़ दें; अनेक का भी खयाल छोड़ यह है कि हमें कोई मतलब ही नहीं है। सभी ठीक है। उपेक्षा का दें। फिर रूप का खयाल ही छोड़ दें, शरीर का खयाल ही छोड़ दें। | भाव है। कोई रस नहीं है, कोई लगाव नहीं है। एक इनडिफरेंस है। फिर तो अनंत का, शाश्वत का, जो चारों तरफ मौजूद निराकार है, | इस उपेक्षा से कोई आस्तिकता तो पैदा होगी नहीं। क्योंकि इस उसके प्रेम में लीन हों। फिर पत्थर से भी प्रेम हो, वृक्ष से भी प्रेम उपेक्षा से कोई काम ही नहीं हो सकता। न मंदिर में झुकते हैं वे, न हो, आकाश में घूमते हुए बादल के टुकड़े से भी प्रेम हो। फिर | | मस्जिद में झुकते हैं। व्यक्तियों का सवाल न रहे; फिर अनंत के साथ प्रेम हो। तो भी यह भी हो सकता है, ऐसे लोग भी हैं, जो मंदिर के सामने भी व्यभिचार पैदा न होगा। .
झुक जाते हैं, मस्जिद के सामने भी झुक जाते हैं। लेकिन उनका एक के साथ अव्यभिचार हो सकता है और अनंत के साथ | | झुकना औपचारिक है। लेकिन एक अनन्य भाव नहीं है। अव्यभिचार हो सकता है। दोनों के बीच में व्यभिचार पैदा होगा। वह जो आदमी कहता है कि नहीं, मस्जिद में ही भगवान हैं;
और आदमी बहुत बेईमान है। और अपने को धोखा देने में बहुत | भला हमें उसकी बात जिद्दपूर्ण मालूम पड़े, और परम ज्ञान की दृष्टि कुशल है। अभी पश्चिम में इसकी बहुत तेज हवा है। क्योंकि | से जिद्दपूर्ण है। परम ज्ञान की दृष्टि से मंदिर में भी है, मस्जिद में पश्चिम में मनोवैज्ञानिकों ने कहा कि एक के साथ प्रेम जडता बन | भी है, गुरुद्वारा में भी है। लेकिन परम ज्ञान की दृष्टि से! वह अभी जाता है, कुंठा बन जाता है, अवरोध हो जाता है; प्रेम तो मुक्त होना | | परम ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ है। अभी तो उचित है कि उसका चाहिए। और मक्त प्रेम मक्ति लाएगा। तो उसका परिणाम केवल | एक के प्रति ही पूरा भाव हो। वह अभी मंदिर में ही पूरा डूब जाए गहरी अनैतिकता है। न तो कोई मुक्ति आ रही है, न कोई प्रेम आ या मस्जिद में ही पूरा डूब जाए। रहा है, न कोई प्रार्थना आ रही है। लोग व्यक्तियों को बदलते जा रहे | जिस दिन वह मस्जिद में पूरा डूब जाएगा, उस दिन मस्जिद में हैं और व्यक्तियों के साथ एक तरह का खिलवाड़ शुरू हो गया है। | ही मंदिर भी प्रकट हो जाएगा। लेकिन वह बाद की बात है। अभी वह जो पवित्रता है, वह जो आत्मीयता है, उसका उपाय ही नहीं रहा। मस्जिद में भी डूबा नहीं, मंदिर में भी डूबा नहीं। और वह कहता
आज एक स्त्री है, कल दूसरी स्त्री है। आज एक पति है, कल | | है, सब ठीक है। मंदिर में भी सिर झुका लेता हूं, मस्जिद में भी सिर दूसरा पति है। पति-पत्नी का भाव ही गिरता जा रहा है। दो व्यक्तियों| | झुका लेता हूं। उसका हृदय कहीं भी नहीं झुकेगा। के बीच जैसे क्षणभर का संबंध है। न कोई दायित्व है, न कोई गहरा - यह ऐसा है, जैसे आपका किसी स्त्री से प्रेम हो जाए। जब लगाव है, न कोई कमिटमेंट। नहीं, कुछ भी नहीं है। एक ऊपर के आपका किसी स्त्री से प्रेम हो जाता है, तो आपको लगता है, ऐसी तल पर मिलना-जुलना है। यह मिलना-जुलना खतरनाक है। और सुंदर स्त्री जगत में दूसरी नहीं है। यह कोई सच्ची बात नहीं है। इसके परिणाम पश्चिम में प्रकट होने शुरू हो गए हैं। क्योंकि न तो आपने सारी जगत की स्त्रियां देखी हैं, न जांच-परख
आज पश्चिम में प्रेम की इतनी चर्चा है, और प्रेम बिलकुल नहीं। की है, न तौला है। यह वक्तव्य गलत है। और यह आप कैसे कह है। क्योंकि प्रेम के लिए अनिवार्य बात थी कि एक व्यक्ति के साथ सकते हैं बिना दुनियाभर की स्त्रियों को जाने हुए कि तुझसे सुंदर गहरी संगति हो। और एक व्यक्ति के प्रति ऐसा भाव हो कि जैसे | कोई भी नहीं है! उस व्यक्ति के अतिरिक्त अब तुम्हारे लिए जगत में और कोई नहीं लेकिन आपकी भाव-दशा यह है। अगर आज सारी दुनिया की है, तो ही उस व्यक्ति में गहरे उतरना संभव हो पाएगा। स्त्रियां भी खड़ी हों, तो भी आपको यही लगेगा कि यही स्त्री सबसे
कृष्ण ने जो कहा है, अव्यभिचारिणी भक्ति, उसका प्रयोजन | | ज्यादा सुंदर है। सौंदर्य स्त्री में नहीं होता, आपके प्रेम के भाव में यही है।
होता है। और जब किसी स्त्री पर आपका प्रेम-भाव आरोपित हो एक मित्र को मैं जानता हूं। वे कहते हैं, कुरान भी ठीक, गीता जाता है, तो वही सुंदर है। सारा जगत फीका हो जाता है। इस क्षण भी ठीक, बाइबिल भी ठीक, सभी ठीक। मस्जिद भी ठीक, मंदिर | में, इस भाव-दशा में, यही सत्य है। भी ठीक। लेकिन न तो उन्हें मंदिर में रस है और न मस्जिद में; न और आप ज्ञान की बातें मत करें, कि आप कहें कि नहीं, दूसरी