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KO समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में
जब आपके पंजे में होता है, तो उससे सीधा तो आपकी मुलाकात दबाएंगे। चूहे को इतना रस आ रहा है, तो चूहों की कामुकता के होती नहीं। पंजे से स्नायुओं का जाल फैला हुआ है मस्तिष्क तक। बाबत कोई बहुत ज्यादा खबर नहीं है, लेकिन आदमी तो बहुत वे स्नायु कंपते हैं, उनके कंपन से आपको दर्द का पता चलता है। | कामुक मालूम होता है। वह तो फिर दबाता ही रहेगा। चूहा भी जब पंजा तो काट दिया गया। लेकिन जो स्नायु पंजे के दर्द में कंपना तक बेहोश होकर नहीं गिर गया, एक्झास्टेड, तब तक वह दबाता शुरू हुए थे, वे अब भी कंप रहे हैं। इसलिए उनके कारण उस | | ही रहा। आदमी को खबर मिल रही है कि पंजे में दर्द हो रहा है। पंजा नहीं __ जो कुछ भी बाहर घटित हो रहा है, वह आपके मस्तिष्क में है, और पंजे में दर्द हो रहा है!
| पहुंचता है तंतुओं के द्वारा। इसलिए उसके बाबत सचाई नहीं है कि उस आदमी के अन्वेषण से यह तय हुआ कि बाहर से जो भी | | बाहर सच में घटित हो रहा है या सिर्फ तंतु खबर दे रहे हैं। आपको घटनाएं आपको मिल रही हैं, उनके बाबत पक्का नहीं हुआ जा | | धोखे में डाला जा सकता है। सकता। निश्चित नहीं है; संदिग्ध है। बिना पंजे के दर्द हो सकता। सिर्फ अनुभव तो एक है असंदिग्ध, जिस पर श्रद्धा हो सकती है। बिना आदमी के मौजूद आपको आदमी दिखाई पड़ सकता है। है। और वह अनुभव है भीतर का, जो इंद्रियों के माध्यम से घटित अगर आपके भीतर वे ही स्नायु कंपित कर दिए जाएं, जो आदमी | नहीं होता। जिसका सीधा साक्षात्कार होता है। के मौजूद होने पर कंपित होते हैं, तो आपको आदमी दिखाई पड़ना | | __तो जितना कोई व्यक्ति अपने भीतर उतरता है, उतना ही परमात्मा शुरू हो जाएगा।
| में श्रद्धा बढ़ती है। इसलिए महावीर ने तो कहा है, परमात्मा की बात अभी उन्होंने चूहों पर बहुत-से प्रयोग किए। स्लेटर ने एक यंत्र ही मत करो। सिर्फ आत्मा को जान लो और तुम परमात्मा हो छोटा-सा बनाया है। जब कोई व्यक्ति, पुरुष-स्त्री, पशु-पक्षी, जाओगे। इसलिए महावीर ने परमात्मा की बात के लिए भी मना कर कोई भी संभोग करता है, तो संभोग में जो रस आता है वह रस दिया। न तो उसकी बात करो, न उस पर श्रद्धा करो। तुम सिर्फ कहां आता है ? क्योंकि संभोग तो घटित होता है यौन-केंद्र के पास | | आत्मा को जान लो और तुम परमात्मा हो जाओगे। क्योंकि उसके
और रस आता है मस्तिष्क में, तो जरूर मस्तिष्क में कोई तंतु कंपते जानने में ही वह अनुभव तुम्हें उपलब्ध हो जाएगा, जो परम और होंगे जिनके कारण रस आता है।
आत्यंतिक है। . तो स्लेटर ने उन तंतुओं की खोज की चूहों में। और उसने एक | | श्रद्धा का अर्थ है, अनुभव पर आधारित। अंध-श्रद्धा का अर्थ छोटा-सा यंत्र बनाया। और मस्तिष्क से इलेक्ट्रोड जोड़ दिए, | | है, लोभ, भय पर आधारित। आप अपने भीतर खोज करें कि बिजली के तार जोड़ दिए। और जैसे ही वह बटन दबाता, चूहा वैसे | | आपकी श्रद्धाएं लोभ पर आधारित हैं, भय पर आधारित हैं या ही आनंदित होने लगता, जैसा संभोग में होता है। फिर तो उसने एक | अनुभव पर आधारित हैं। अगर लोभ और भय पर आधारित हैं, तो ऐसा यंत्र बनाया कि बंटन चूहे के सामने ही लगा दी। और चूहे को आप अंध-श्रद्धा में जी रहे हैं। ही अनभव हो गया। जब चहे ने बार-बार बटन स्लेटर को दबाते और जो अंध-श्रद्धा में जी रहा है वह धार्मिक नहीं है. और वह देखा और उसे आनंद आया भीतर, तो चूहा खुद बटन दबाने लगा। बड़े खतरे में है। वह अपने जीवन को ऐसे ही नष्ट कर देगा। श्रद्धा
फिर तो स्लेटर ने लिखा है कि चूहे ने खाना-पीना सब बंद कर | | में जीने की शुरुआत ही धार्मिक होने की शुरुआत है। दिया। वह एकदम बटन दबाता ही चला जाता, जब तक कि बेहोश न हो जाता। एक चूहे ने छः हजार बार बटन दबाया। दबाता ही गया। दबाएगा, आनंदित होगा, फिर दबाएगा, फिर आनंदित | | एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि कल आपने कहा कि होगा। छः हजार बार उसने संभोग का रस लिया। और संभोग तो एक के प्रति अनन्य प्रेम व श्रद्धा को अव्यभिचारिणी हो नहीं रहा; मस्तिष्क में तंत हिल रहे हैं।
| की संज्ञा दी तथा अनेक के प्रति प्रेम व श्रद्धा को स्लेटर का कहना है कि यह यंत्र अगर कभी विकसित हुआ, तो व्यभिचारिणी कहा। साधारणतः स्थिति उलटी लगती मनुष्य संभोग से मुक्त भी हो सकता है। लेकिन यह खतरनाक यंत्र है। अर्थात एक के प्रति प्रेम मोह व आसक्ति बन है। अगर चूहा छः हजार बार दबाता है, तो आप साठ हजार बार जाती है और अनेक के प्रति प्रेम मुक्ति व प्रेम का
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