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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 श्रद्धा है। लेकिन नकली सिक्कों से जो राजी हो गया, वह भीतर | अनुभव अगर हो जाए, तो जो श्रद्धा उत्पन्न होती है, वह कामचलाऊ कभी जाता नहीं। नहीं है। वह आत्यंतिक, अल्टिमेट है। उसमें फिर कोई संदेह नहीं झूठी श्रद्धा की कोई जरूरत भी नहीं है। क्योंकि जिस पर हम | हो सकता। सिर्फ एक अनुभव है स्वयं की आत्मा का, जो भरोसा कर रहे हैं, वह भीतर बैठा है। उस पर भरोसा करने की कोई | असंदिग्ध कहा जा सकता है; बाकी सब अनुभव संदिग्ध हैं। सब जरूरत नहीं है, उसका तो अनुभव ही किया जा सकता है। और में धोखा हो सकता है। जिसका अनुभव किया जा सकता है, उसका भरोसा क्या करना? | ___ पिछले महायुद्ध में एक सैनिक फ्रांस के एक अस्पताल में भरती क्या जरूरत? हुआ। उसके पैर में भयंकर चोट पहुंची थी और असह्य पीड़ा थी ___ आप सूरज पर विश्वास नहीं करते। कोई आपसे पूछे कि आपकी | और पीड़ा के कारण वह बेहोश हो गया था। चिकित्सकों ने देखा सूरज में श्रद्धा है? तो आप हंसेंगे कि आप कैसा व्यर्थ का सवाल कि उसका पैर बचाना असंभव है, और अगर पैर नहीं काट दिया पूछते हैं! सूरज है; श्रद्धा का क्या सवाल? श्रद्धा का सवाल तो तभी | गया, तो पूरे शरीर में भी जहर फैल सकता है। इसलिए घुटने के उठता है उन चीजों के संबंध में, जिनका आपको पता नहीं है। नीचे का हिस्सा उन्होंने काट दिया। वह बेहोश था। ___आपसे कोई नहीं पूछता कि आपकी पृथ्वी में श्रद्धा है ? पृथ्वी है, सुबह जब उसे होश आया, तो उसके पास खड़ी नर्स से उसने श्रद्धा का क्या सवाल है। लेकिन लोग पूछते हैं, ईश्वर में श्रद्धा है? | | पहली बात यही कही कि मेरे पैर में बहुत तकलीफ हो रही है, मेरे आत्मा में श्रद्धा है? और आप कभी नहीं सोचते कि ये भी असंगत | पंजे में असह्य पीड़ा है। पंजा तो था नहीं। इसलिए पीड़ा तो हो नहीं सवाल हैं। लेकिन आप कहते हैं, श्रद्धा है या नहीं है। क्योंकि जिन सकती पंजे में। पैर तो काट दिया था। लेकिन उसे तो पता नहीं था; चीजों के संबंध में पूछा जा रहा है, वे आपको अनुभव की नहीं | वह तो बेहोशी में था। होश आते ही उसने जो पहली बात कही, मालूम होती। उसने कहा कि मेरे पंजे में बहुत पीड़ा है। वह तो बंधा कंबल में पड़ा लेकिन धर्म का यही आग्रह है कि वे भी उतने ही अनुभव की। | हुआ है। उसे कुछ पता नहीं है। है, जितना पृथ्वी और सूरज; शायद इससे भी ज्यादा अनुभव की नर्स हंसने लगी। उसने कहा कि फिर से थोड़ा सोचो। सच में हैं। क्योंकि यह तो हो भी सकता है कि सूरज का हमें भ्रम हो रहा पंजे में पीड़ा है? उस आदमी ने कहा, इसमें भी कोई झूठ होने का हो। क्योंकि सूरज बाहर है और हमारा उससे सीधा मिलना कभी सवाल है ? असह्य पीड़ा हो रही है मुझे। उस नर्स ने कहा, लेकिन नहीं होता। तुम्हारा पैर तो काट दिया गया है, इसलिए यह तो माना नहीं जा वैज्ञानिक कहते हैं कि हम किसी भी चीज को सीधा नहीं देख सकता कि तुम्हारे पंजे में पीड़ा हो रही है। जो पंजा अब है ही नहीं, सकते। सूरज को आपने कभी देखा नहीं है आज तक। क्योंकि उसमें पीड़ा कैसे हो सकती है? सूरज को आप देखेंगे कैसे सीधा? सूरज की किरणें आती हैं, वे | नर्स ने कंबल उघाड़ दिया। उस आदमी ने देखा, उसके घुटने के आपकी आंख पर पड़ती हैं। वे किरणें आपकी आंख में रासायनिक | | नीचे का पैर तो कट गया है। लेकिन उसने कहा कि मैं देख रहा हूं परिवर्तन पैदा करती हैं। वे रासायनिक परिवर्तन आपके भीतर कि मेरे घुटने के नीचे का पैर कट गया है, लेकिन फिर भी मुझे पंजे विद्युत प्रवाह पैदा करते हैं। वे विद्युत-प्रवाह आप तक पहुंचते हैं, | | में ही पीड़ा हो रही है; मैं क्या कर सकता हूं! उनकी चोट। वह चोट आपको अनुभव होती है। डाक्टर बुलाए गए। उन्होंने बड़ी खोजबीन की। यह पहला मौका आज तक सूरज कभी आपने देखा नहीं। सूरज को देखने का | | था कि कोई आदमी ऐसी पीड़ा की बात कर रहा है, जो अंग ही न कोई उपाय नहीं है। अभी आप मुझे देख रहे हैं। लेकिन मैं आपको | | बचा हो! आपका सिर किसी ने काट दिया और आप कह रहे हैं, दिखाई नहीं पड़ रहा। आपको दिखाई तो भीतर रासायनिक परिवर्तन | सिर में दर्द हो रहा है! पैर बचा ही नहीं, तो पंजे में दर्द नहीं हो हो रहे हैं। सीधा पदार्थ को अनुभव करने का कोई उपाय नहीं है। । | सकता। घुटने में दर्द हो सकता है, क्योंकि वहां से काटा गया है। बीच में इंद्रियों की मध्यस्थता है। | लेकिन वह आदमी कहता है, घुटने में मुझे दर्द नहीं; मुझे दर्द तो इसलिए यह तो हो भी सकता है कि सूरज न हो। सूरज के | पंजे में है। संबंध में जो श्रद्धा है, वह कामचलाऊ है। लेकिन स्वयं का तो उसका बहुत अन्वेषण किया गया। और पाया गया कि दर्द 2600
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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