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________________ के समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में ॐ आपका सिर तोड़ने को राजी हो जाएंगे, लेकिन आपकी बात सुनने क्योंकि स्त्रियां ज्यादा भयभीत होती हैं। और बूढ़ा होते-होते हर को राजी नहीं होंगे। वे केवल एक ही बात की खबर दे रहे हैं, वे आदमी स्त्रैण हो जाता है और भयभीत होने लगता है, डरने लगता आपसे नहीं डरे हुए हैं, वे खुद अपने से डरे हुए हैं। और कहीं आप | है। हाथ-पैर कंपने लगते हैं। जवानी का भरोसा चला जाता है। मौत उनकी उनसे ही मुलाकात न करवा दें, इससे आपसे डरे हुए हैं। करीब आने लगती है। जैसे-जैसे मौत करीब आती है, भय की अंध-श्रद्धा लोभ और भय से जन्मती है; श्रद्धा अनुभव से | छाया बढ़ती है। भय की छाया बढ़ती है, तो भगवान का भरोसा जन्मती है। और जो आदमी अंध-श्रद्धा में पड़ जाएगा, उसकी श्रद्धा | | बढ़ता है। सदा के लिए बांझ हो जाएगी, उसे श्रद्धालु होने का मौका ही नहीं | __यह भरोसा झूठा है। इस भरोसे का असलियत से कोई संबंध मिलेगा। इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि नास्तिक होना बेहतर है, | नहीं है। यह तो डर से पैदा हो रहा है। और डर से जो पैदा हो रहा बजाय झूठे आस्तिक होने के। क्योंकि नास्तिक होने में एक सच्चाई | है, उससे कोई क्रांति नहीं हो सकती जीवन में। तो है कि आप कहते हैं, मुझे पता नहीं है। जिस बात का मुझे पता बच्चों को हम डराकर धार्मिक बना लेते हैं। और सदा के लिए नहीं है, मैं भरोसा नहीं करूंगा। और एक संभावना है नास्तिक के | इंतजाम कर देते हैं कि वे कभी धार्मिक न हो पाएंगे। बच्चों को लिए कि अगर उसे कभी पता चलना शुरू हो जाए, तो वह भरोसा | डराया जा सकता है। मां-बाप शक्तिशाली हैं; समाज शक्तिशाली करेगा। लेकिन जिसने झूठा भरोसा कर रखा है, वह सच्चे भरोसे है; शिक्षक शक्तिशाली है। हम बच्चों को डर के आधार पर मंदिरों तक कैसे पहुंचेगा? झूठा भरोसा उसे यह खयाल दिला देता है कि | में झुका देते हैं, मस्जिदों में नमाज पढ़वा देते हैं, प्रार्थना करवा देते मुझे तो श्रद्धा उपलब्ध हो गई है। | हैं। बच्चे मजबूरी में, डर की वजह से झुक जाते हैं, प्रार्थना कर लेते इस जमीन पर धर्म का न होना इसी कारण है, क्योंकि लोग झूठे| | हैं। और फिर यह भय ही उन्हें सदा झुकाए रखता है। आस्तिक हैं, इसलिए सच्ची आस्तिकता उपलब्ध नहीं हो पाती। लेकिन इस कारण कभी सच्ची श्रद्धा का जन्म नहीं होता। जिस और जब तक हम झूठी आस्तिकता का भरोसा रखेंगे, तब तक | | आदमी को नकली हीरे-मोती असली मालूम पड़ गए, वह असली जमीन अधार्मिक रहेगी। आप अपने से ही पूछे, सच में आपको | की खोज ही नहीं करेगा। ईश्वर में कोई भरोसा है? धार्मिक व्यक्ति भय से प्रभावित नहीं होता, न लोभ से आंदोलित मेरे एक शिक्षक थे, नास्तिक थे। उनकी मरण-तिथि पर मैं उनके होता है। धार्मिक व्यक्ति तो सत्य की तलाश में होता है। और उस घर मौजूद था। बहुत बीमार थे, उनको देखने गया था। फिर उनके | | तलाश के लिए कोई दूसरी प्रक्रिया है। उस तलाश के लिए चिकित्सक ने कहा कि एक-दो दिन से ज्यादा बचने की उम्मीद नहीं ऊपर-ऊपर से थोपने का कोई उपाय नहीं है, न कोई लाभ है। उस है, तो रुक गया था। नास्तिक थे सदा के, कभी मंदिर नहीं गए। तलाश के लिए भीतर उतरने की जरूरत है। आप जिस दिन अपने ईश्वर की बात से ही चिढ़ जाते थे। धर्म का नाम किसी ने लिया कि | | भीतर उतरना सीख जाएंगे, उसी दिन आपको सम्यक श्रद्धा भी वे विवाद में उतर जाते थे। लेकिन मरने की थोड़ी ही घडीभर पहले | उपलब्ध होने लगेगी। मैंने देखा कि वे राम-राम, राम-राम जप रहे हैं। धीमे-धीमे उनके जो व्यक्ति अपने भीतर जितना गहरा जाएगा, परमात्मा में उसकी होंठ हिल रहे हैं। उतनी ही श्रद्धा हो जाएगी। जो व्यक्ति अपने से बाहर जितना तो मैंने उन्हें हिलाया और मैंने पूछा, यह क्या कर रहे हैं आखिरी भटकेगा, वह कितनी ही परमात्मा की बातें करे, उसकी श्रद्धा झूठी वक्त? तो उन्होंने बड़ी दयनीयता से मेरी तरफ देखा और उनके और अंधी होगी। आखिरी शब्द ये थे कि आखिरी वक्त भय पकड़ रहा है। पता नहीं, परमात्मा तक पहुंचने की एक ही सीढ़ी है, वह आप स्वयं हैं। ईश्वर हो, तो हर्ज क्या है राम-राम कर लेने में! नहीं हुआ तो कोई | न तो किसी मंदिर में जाने से उसकी श्रद्धा पैदा होगी, न किसी बात नहीं; अगर हुआ तो आखिरी क्षण स्मरण कर लिया। मस्जिद में जाने से पैदा होगी। उसका मंदिर, उसकी मस्जिद, उसका यह भयभीत चित्त है। इसलिए अक्सर बूढ़े लोग आस्तिक हो | गुरुद्वारा आप हैं। वह आपके भीतर छिपा है। आप जैसे-जैसे अपने जाते हैं। मंदिरों में, मस्जिदों में, गिरजाघरों में बूढ़े स्त्री-पुरुष दिखाई | भीतर उतरेंगे, वैसे-वैसे उसका स्वाद, उसका रस, उसका अनुभव पड़ते हैं। और पुरुषों की बजाय स्त्रियां ज्यादा दिखाई पड़ती हैं, | आने लगेगा। और उस अनुभव के पीछे जो श्रद्धा जन्मती है, वही 259
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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