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समत्व और एकीभाव
करना था। तो किसी ने अगर गाली दी, तो मैं कहकर आया कि क्षमा करें। बाप को एक वचन दिया है, चौबीस घंटेभर बाद आपको जवाब दूंगा।
और चौबीस घंटेभर बाद न तो गाली का जवाब देने योग्य लगा, नगाली में कोई मूल्य मालूम पड़ा, बात ही व्यर्थ हो गई। चौबीस घंटे बाद जाकर गुरजिएफ कह आता कि आपने गाली दी, बड़ी कृपा की। लेकिन मेरे पास कोई जवाब देने को नहीं है।
गाली का जवाब तो तत्काल ही दिया जा सकता है। ध्यान रखना, गाली की प्रक्रिया है, उसका जवाब तत्काल दिया जा सकता है । उसमें देरी की, कि आप चूके।
डेल कार्नेगी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि एक स्त्री ने उसे पत्र लिखा। वह रेडियो पर बोला लिंकन के ऊपर। लिंकन की कोई जन्मतिथि थी, उस पर व्याख्यान दिया। और व्याख्यान में उसने लिंकन के संबंध में कुछ गलत तथ्य बोल दिए। तो एक स्त्री ने उसे पत्र लिखा कि जब तुम्हें लिंकन के संबंध में कुछ भी पता नहीं, तो कम से कम व्याख्यान देने की जुर्रत तो मत करो। वह भी रेडियो पर! सारे मुल्क ने सुना। और लोग हंसे होंगे। अपनी भूल सुधार करो और क्षमा मांगो। उसने बहुत क्रोध से पत्र लिखा था।
डेल कार्नेगी ने उसी वक्त क्रोध से जवाब लिखा । जितना जहरीला पत्र था, उतना ही जहरीला जवाब लिखा। लेकिन रात देर हो गई थी, तो उसने सोचा, सुबह पत्र डाल देंगे। पत्र को वैसे ही टेबल पर रखकर सो गया।
सुबह उठकर डालते वक्त दुबारा पढ़ना चाहा। तो पत्र को दुबारा पढ़ा तो उसे लगा कि यह जरा ज्यादा है, इतने क्रोध की कोई जरूरत नहीं। वह गरमी कम हो गई, लोहा ठंडा हो गया। तो उसने सोचा, दूसरा पत्र लिखूं; यह उचित नहीं है। उसने दूसरा पत्र लिखा, उसमें थोड़ी-सी क्रोध की रेखा रह गई थी। तब उसे खयाल आया कि अगर रात के बारह घंटे में इतना फर्क हो गया, तो मैं बारह घंटे और रुकूं। जल्दी क्या है जवाब देने की ! और देखूं कि क्या फर्क होता है।
बारह घंटे बाद पत्र को पढ़ा, तो उसे लगा कि यह भी ज्यादा है। उसने तीसरा पत्र लिखा। लेकिन तब उसने तय किया कि मैं सात दिन रोज सुबह-सांझ पत्र को पढूंगा और सातवें दिन पत्र को लिखूंगा – फाइनल |
सातवें दिन जो पत्र लिखा, वह प्रेमपूर्ण था, क्षमायाचना से भरा था। उसमें उसने लिखा कि आपने मेरी गलती दिखाई, उसके लिए मैं जितना अनुगृहीत होऊं, उतना कम है। और आगे भी कभी मेरी
कोई गलती दिखाई पड़े, तो मुझे खबर देना। वह स्त्री उससे मिलने आई और सदा के लिए मित्रता खड़ी हो गई ।
क्या होता है - फासला । हम जल्दी में होते हैं। जो भी होता है, मूर्च्छा में कर लेते हैं । समता अगर चाहिए हो, तो फासला पैदा करने की कला सीखनी चाहिए। लेकिन हम होशियार लोग हैं। हम फासले में भी धोखा दे सकते हैं।
मैंने सुना है, एक बाप ने देखा कि उसका बेटा एक दूसरे बच्चे | को, पड़ोसी के बच्चे को दबाए हुए लान में, छाती पर बैठा हुआ है। तो उसने चिल्लाकर कहा कि मुन्ना, कितनी दफा मैंने तुझे कहा कि किसी से भी झगड़ने, मार-पीट करने के पहले सौ तक गिनती पढ़ा कर । तो उसने कहा, वही मैं कर रहा हूं। सौ तक गिनती पढ़ | रहा हूं। लेकिन यह निकलकर भाग न जाए सौ तक गिनती जब तक मैं पढूं, इसलिए इसको दबाकर रखा हुआ है। सौ की गिनती पूरी होते ही इसे ठिकाने लगा दूंगा।
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सौ की गिनती कही इसलिए थी कि फासला पैदा हो जाए। किसी को मारने के पहले सौ तक गिनती पढ़ना । मुन्ना होशियार है। वह | उसको दबाकर बैठा है बच्चे को, कि अगर सौ तक गिनती हमने पढ़ी, तब तक यह निकल गया, तो मारेंगे किसको !
तो आप भी ऐसी होशियारी मत करना । अन्यथा कोई सार नहीं है । फासला पैदा करना है इसलिए, ताकि समता आ जाए। फास | हो जाए, तो दुख दुख नहीं देता, और सुख सुख नहीं देता । सुख | और दुख दोनों मूर्च्छित अनुभव हैं। तत्क्षण हो जाते हैं, मूर्च्छा में हो जाते हैं।
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जैसे कोई बिजली का बटन दबाता है, ऐसे ही आपके भीतर बटन दब जाते हैं। आप सुखी हो जाते हैं, दुखी हो जाते हैं। बिजली | का बटन दबाने पर बिजली कह नहीं सकती कि मैं नहीं जलूंगी। मजबूर है, यंत्र है। लेकिन आप यंत्र नहीं हैं।
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जब कोई गाली दे, तो क्रोधित होना, तत्क्षण बिजली की बटन की तरह काम हो रहा है। आप यंत्र की तरह व्यवहार कर रहे हैं। रुकें। | उसने गाली दी ; ठीक। लेकिन आप अपने मालिक हैं। गाली लेने में जल्दी मत करें। किसी ने सम्मान किया, वह उसकी बात है । किसी | ने आपकी खुशामद की, चापलूसी की, वह उसकी बात है। लेकिन आप जल्दी मत करें, और एकदम पिघल न जाएं। रुकें, थोड़ा समय दें। थोड़े फासले पर खड़े होकर देखें कि क्या हो रहा है।
और आप पाएंगे कि जितना आप फासला बढ़ाते जाएंगे, सुख-दुख समान होते जाएंगे। जितने करीब होंगे, सुख-दुख में