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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 की तबियत कैसी है; बच्चा किस क्लास में पढ़ता है। टैक्सी ड्राइवर | मिले तो हम खुश हों। हम सफलता मिलते ही खुश हो जाते हैं। फूला नहीं समा रहा है। पंडित नेहरू आपसे पूछ रहे हों तो...। | यह हमें खुश होने के लिए कुछ करना थोड़े ही पड़ता है, यह हमारा और फिर दो साल बाद एक पत्र आएगा टैक्सी ड्राइवर के नाम, कोई निर्णय थोड़े ही है। कि तुम्हारी पत्नी की तबीयत खराब थी पिछली बार तुम्हारे गांव जब जब प्रियजन घर आए, तो हम प्रसन्न हो जाते हैं। कोई प्रसन्न होने आया था, अब उसकी तबीयत तो ठीक है न? तुम्हारे बच्चे तो ठीक | के लिए चेष्टा थोड़े ही करनी पड़ती है। और जब कोई गाली दे, से स्कूल में पढ़ रहे हैं न? और इस बार मैं चुनाव में खड़ा हुआ हूं, अपमान करे, तो हम दुखी हो जाते हैं। दुखी होने के लिए हमें थोड़ा खयाल रखना। सोचना थोड़े ही पड़ता है। चुनाव का मौका कहां है? जो होता है, वह किसी भी पार्टी का हो, पागल हो गया। अब उसको | वह जब हो जाता है, तब हमें पता चलता है। जब हम दुखी हो जाते दल-वल का कोई सवाल नहीं है। अब रूजवेल्ट से निजी संबंध | हैं, तब पता चलता है कि दुखी हो गए। हो गया। अब वह यह कार्ड लेकर घूमेगा। | कष्ण कहते हैं. समता। यह समता कैसे घटेगी? इसके घटने की छोटे आदमी के अहंकार को फुसलाना राजनीतिज्ञ का काम है, | प्रक्रिया है। वह प्रक्रिया खयाल में लेनी चाहिए। संतों का काम नहीं है। संत आपके अहंकार को तोड़ना चाहते हैं, कोई भी अनुभव भीतर पैदा हो, उसे अचेतन पैदा न होने दें। फुसलाना नहीं चाहते हैं। उसमें सजगता रखें। कोई गाली दे, तो इसके पहले कि क्रोध आए, तो रामकृष्ण गाली देते हैं; रूजवेल्ट कहता है, आइए बैठिए। | एक पांच क्षण के लिए बिलकुल शांत हो जाएं। क्रोध को कहें कि वह फर्क है। पर कहना मुश्किल है कि संत का क्या प्रयोजन है। | पांच क्षण रुको। दुख को कहें, पांच क्षण रुको। पांच क्षण का आप जल्दी मत करें। निर्णय सदा अपने बाबत लें, दूसरे के बाबत | अंतराल देना जरूरी है। तो आपके पास पर्सपेक्टिव, दृष्टि पैदा हो कभी मत लें। सकेगी। पांच क्षण बाद सोचें कि मुझे दुखी होना है या नहीं। दुख और संत तो खतरनाक हैं; उनके बाबत तो निर्णय लें ही मत। | को चुनाव बनाएं। दुख को मूर्छित घटना न रहने दें। नहीं तो फिर उनको उनके निर्णय पर छोड़ दें। अगर आपको कुछ लाभ उनसे आप कुछ भी न कर पाएंगे। लेना हो, तो धैर्यपूर्वक, बिना निर्णय के लाभ ले लें। निश्चित ही, गुरजिएफ ने लिखा है कि मेरे पिता ने मरते क्षण मुझे एक मंत्र अगर आपने धैर्य रखा, तो आप जिस गुरु के पास हैं, उस गुरु की दिया, उसी मंत्र ने मेरे पूरे जीवन को बदल दिया। मरते वास्तविक प्रतिमा प्रकट हो जाएगी। अगर आपने जल्दी की, तो वक्त-गुरजिएफ तो बहुत छोटा था, नौ साल का था-पिता ने आप हो सकता है, कभी किसी बुद्ध के पास आकर भी किनारे से | कहा, मेरे पास देने को तेरे लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन एक संपत्ति निकल जाएं और वंचित रह जाएं। | मेरे पास है, जिससे मैंने जीवन में परम आनंद अनुभव किया। वह अब हम सूत्र को लें। मैं कुंजी तुझे दे जाता हूं। अभी तो तेरी समझ भी नहीं है कि तू समझ तथा पुत्र, स्त्री, घर और धनादि में आसक्ति का अभाव और | पाए। इसलिए अभी जो मैं कहता हूं, तू सिर्फ याद रखना। किसी ममता का न होना तथा प्रिय-अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का | | दिन समझ आएगी, तो उस दिन समझ लेना। सम रहना अर्थात मन के अनुकूल तथा प्रतिकूल के प्राप्त होने पर तो गुरजिएफ के पिता ने कहा कि तू एक ही खयाल रखना, कोई हर्ष-शोकादि विकारों का न होना। भी प्रतीति, दुख की या सुख की, तत्क्षण मत होने देना। थोड़ी ___ इस संबंध में एक बात खयाल ले लेनी चाहिए। समता! दुख हो जगह। अगर कोई गाली दे, तो उससे कहकर आना कि चौबीस घंटे या सुख, प्रिय घटना घटे या अप्रिय, सफलता हो या असफलता, | बाद मैं जबाब दूंगा। और चौबीस घंटे के बाद बराबर जवाब देना। यश या अपयश, दोनों का बराबर मूल्य है। दोनों में से किंचित भी | अगर तुझे लगे कि छुरा भोंकना हो, तो चौबीस घंटे बाद छुरा भोंक एक को वांछनीय और एक को अवांछनीय न मानना ज्ञानी का | देना जाकर। लेकिन चौबीस घंटे का बीच में अंतराल देना। लक्षण है। समत्व ज्ञानी की आधारशिला है। गुरजिएफ ने लिखा है कि मेरी पूरी जिंदगी बदल दी इस बात ने। लेकिन यह होगा कैसे? क्योंकि जब सफलता मिलती है, तो क्योंकि मरते बाप की बात थी। इसके बाद बाप मर गया। तो मन प्रीतिकर लगती है। कोई हम तय थोड़े ही करते हैं कि जब सफलता | पर टंकी रह गई। और एक आश्वासन दिया था बाप को, तो पूरा 250
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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