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* समत्व और एकीभाव
वाइल्ड ने लिखा है कि झूठ बोलना केवल उन्हीं के लिए संभव अंतिम प्रश्न। एक और मित्र ने पूछा है कि अनेक है, जिनकी स्मृति बहुत अच्छी हो। जिनकी स्मृति कमजोर है, उन्हें सदगुरुओं के व्यवहार व जीने के ढंग में श्रेष्ठता का भूलकर झूठ नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि झूठ में बहुत हिसाब | अभिमान और दंभाचरण दिखाई पड़ता है। तथाकथित रखना पड़ेगा। एक झूठ बोल दिया, तो फिर उसका हिसाब रखना ज्ञानी व वास्तविक धार्मिक व्यक्ति को बाहर से कैसे पड़ता है सदा। फिर उसी झूठ के हिसाब से सब बोलना पड़ता है। पहचाना जाए? क्योंकि भीतर से पहचानना अत्यंत
तो वाइल्ड ने लिखा है कि मेरी चूंकि स्मृति कमजोर है, इसलिए कठिन है! मैं सत्य का ही भरोसा करता हूं। क्योंकि उसे बोलने में याद रखने की कोई जरूरत नहीं है।
झूठ के लिए स्मृति तो मजबूत चाहिए। इसीलिए अक्सर ऐसा गह थोड़ा समझने जैसा है कि जब भी आपको समझने हो जाता है कि जो समाज अशिक्षित हैं, वहां झूठ कम प्रचलित होता प के लिए कुछ कहा जाता है, तत्काल आप दूसरों के है। क्योंकि झूठ के लिए शिक्षित होना जरूरी है। जो समाज असभ्य संबंध में सोचना शुरू कर देते हैं। कृष्ण ने यह नहीं हैं, वे कम बेईमान होते हैं। क्योंकि बेईमानी के लिए जितनी कहा है कि ज्ञानी का लक्षण यह है कि वह पता लगाए कुशलता चाहिए, वह उनके पास नहीं होती। जैसे ही लोगों को | दंभाचरण में है और कौन नहीं है। कृष्ण ने यह नहीं कहा है कि ज्ञानी शिक्षित करो, बेईमानी बढ़ने लगती है उसी अनुपात में। लोगों को | इसका पता लगाने निकलता है कि कौन गुरु दंभी है और कौन गुरु शिक्षा दो, उसी के साथ झूठ बढ़ने लगता है, क्योंकि अब वे | दंभी नहीं है। कृष्ण ने कहा है कि तुम दंभाचरण में हो या नहीं, कुशलता से झूठ बोल सकते हैं। झूठ के लिए कला चाहिए। सत्य | इसकी फिक्र करना। के लिए बिना कला के भी सत्य के साथ जीया जा सकता है। झूठ लेकिन हम? हमें अपनी तो फिक्र ही नहीं है। हम जैसे निस्वार्थ के लिए आयोजन चाहिए।
| आदमी खोजना बहुत कठिन है! हमें अपनी बिलकुल फिक्र नहीं हम जिस समाज में जी रहे हैं, वह सब आयोजित है। इस | है। हमें सारी दुनिया की फिक्र है। कौन सदगुरु दंभाचरणी है, इसका आयोजन के बीच से छूटना हो, तो कठिनाई शुरू में होगी, लेकिन | कैसे पता लगाएं! मुझे एक कहानी याद आ गई। कठिनाई अंत में नहीं होगी।
मैंने सुना, एक गांव में शराब के खिलाफ बोलने के लिए एक इस बात को ऐसा समझें कि असत्य के साथ पहले सुविधा होती | महात्मा का आगमन हुआ। उनका देश शराब के विपरीत सप्ताह है, बाद में असुविधा होती है। सत्य के साथ पहले असुविधा होती | मना रहा था। तो महात्मा ने बहुत समझाया, शराब के खिलाफ है, बाद में सुविधा होती है। जिनको हम संसार के सुख कहते हैं, बहुत-सी बातें समझाई। और फिर जोर देने के लिए उसने कहा कि वे पहले सुख मालूम पड़ते हैं, पीछे दुख मालूम पड़ते हैं। और | तुम्हें पता है कि गांव में सब से बड़ी हवेली किसकी है? शराब जिनको हम अध्यात्म की तपश्चर्या कहते हैं, वह पहले कष्ट मालूम बेचने वाले की। और पैसा उसका कौन चुकाता है ? तुम। और तुम्हें पड़ती है और पीछे आनंद हो जाता है।
| पता है कि गांव में किसकी स्त्री सबसे ज्यादा कीमती गहने पहनती इसको सूत्र की तरह याद कर लें। पहली ही घटना को सब कुछ | है? शराब बेचने वाले की। और उसका मूल्य तुम अपने खून से मत समझना, अंतिम घटना सब कुछ है।
चुकाते हो। तो पहले अगर असुविधा भी हो, तो उसकी फिक्र न करके यही | जब सभा पूरी हो गई, तो एक जोड़ा, पति-पत्नी, उसके पास ध्यान रखना कि बाद में क्या होगा, अंतिम फल क्या होगा, अंतिम आया और महात्मा के चरणों में सिर रखकर उन्होंने कहा कि परिणाम क्या होगा। नहीं तो लोग जहर की गोली भी शक्कर में | आपकी बड़ी कृपा है। आपने जो उपदेश दिया, उससे हमारा जीवन लिपटी हो तो खा लेते हैं। क्योंकि पहले स्वाद मीठा मालूम पड़ता बदल गया। तो महात्मा ने कहा कि बड़ी खुशी की बात है। क्या है। पहले स्वाद से सावधान होना जरूरी है। अंतिम स्वाद को ध्यान
तमने शराब न पीने का तय कर लिया। उन्होंने कहा कि नहीं. हमने में रखना जरूरी है।
एक शराब की दुकान खोलने का तय कर लिया है। आपने ऐसी हृदय को चोट पहुंचाने वाली बातें कहीं कि अब हम सोचते हैं, सब