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• समत्व और एकीभाव ॐ
क्या कोई मध्य मार्ग या किसी नैतिक अनुशासन को | अच्छी बातें हमारे वस्त्र हो गई हैं। उन वस्त्रों से हम किसको धोखा आप जरूरी नहीं मानते?
दे रहे हैं? कोई उससे धोखे में नहीं आ रहा है, क्योंकि सभी भी वही धोखा कर रहे हैं।
दूसरी बात यह खयाल में ले लेनी जरूरी है कि समाज में 1 हली तो बात यह समझ लेनी चाहिए कि इसके पहले | अराजकता फैल सकती है, उसका कारण यह नहीं है कि सत्य से 4 कि आप समाज के संबंध में सोचें, स्वयं के संबंध में अराजकता फैलती है। उसका कारण यह है कि असत्य का अगर
सोचें। तत्क्षण लोग समाज के संबंध में सोचना शुरू समाज हो, तो सत्य से अराजकता फैलती है। अगर सभी लोग झूठ कर देते हैं कि समाज में क्या होगा। पहली विचारणा तो यह है कि | बोलते हों, तो वहां कोई आदमी सच बोले, तो उससे अराजकता आप में क्या हो रहा है। दसरी विचारणा समाज की हो सकती है। | फैलेगी। जहां सभी लोग बेईमान हों, वहां कोई आदमी ईमानदार हो
तो पहले तो यह ठीक से समझ लें कि जब तक जो आपके भीतर | जाए, तो उससे अराजकता फैलेगी। है, आप बाहर प्रकट नहीं करते, तो आप झूठे होते जा रहे हैं, आप __ आपने वह कहानी सुनी होगी कि एक सम्राट नग्न रास्ते पर झूठे हो गए हैं। एक कागज की प्रतिमा हो गए हैं। असली आदमी | निकला है, लेकिन एक आदमी ने उसे भरोसा दिलवा दिया है कि भीतर दबा है। और झूठा आदमी ऊपर आपकी छाती पर चढ़ा है। वह देवताओं के वस्त्र पहने हुए है। एक धोखेबाज आदमी ने उससे यह झूठा आपके लिए बोझ हो गया है। इस झूठ की पर्त बढ़ती चली लाखों रुपए ले लिए, और उससे कहा है कि मैं तुझे देवताओं के जाती है। और जितनी इस झूठ की पर्त बढ़ती है, जिंदगी उतनी बुरी, | वस्त्र ला दूंगा। और एक दिन वह देवताओं के वस्त्र लेकर आ गया बेहूदी, निराश, उबाने वाली हो जाती है। क्योंकि केवल स्वभाव के | है। और उसने सम्राट को कहा कि आप अपने वस्त्र उतारते जाएं, साथ ही रस का संबंध हो सकता है। झूठ के साथ जीवन में कोई | मैं देवताओं के वस्त्र निकालता हूं। रस, कोई अर्थ नहीं जुड़ पाता।
सम्राट ने अपनी टोपी निकाली। उसने पेटी में से खाली हाथ तो पहले तो यह देखें कि आप भीतर जो है, उसे बाहर न लाकर | बाहर निकाला। सम्राट ने देखा कि टोपी तो हाथ में नहीं है। उसने आप झठे हो गए हैं। और आप ही झूठे नहीं हो गए हैं, सभी झूठे कहा, तुम्हारा हाथ खाली है! उस आदमी ने सम्राट के कान में कहा हो गए हैं।
कि मैं जब चलने लगा, तो देवताओं ने मुझ से कहा था, ये वस्त्र इसलिए हमने एक समाज निर्मित किया है, जो झूठ का समाज केवल उसी को दिखाई पड़ेंगे, जो अपने ही बाप से पैदा हुआ हो। है। जब व्यक्ति झूठा होगा, तो समाज भी झूठा होगा। और जब उस सम्राट को तत्क्षण टोपी दिखाई पड़ने लगी। क्योंकि अब यह व्यक्ति का आधार ही झूठ होगा, तो समाज की सारी की सारी झंझट की बात हो गई। उसने कहा, अहा, ऐसी सुंदर टोपी तो मैंने व्यवस्था झूठ हो जाएगी। फिर हम लाख उपाय करें कि समाज कभी देखी नहीं! और उसने टोपी सिर पर रख ली, जो थी ही नहीं। अच्छा हो जाए, वह अच्छा नहीं हो सकता। क्योंकि ईंट गलत है, लेकिन टोपी का ही मामला नहीं था। फिर उसके बाकी वस्त्र भी तो मकान अच्छा नहीं हो सकता। इकाई गलत है, तो जोड़ अच्छा | निकलते चले गए। दरबारी घबड़ाए; क्योंकि वह सम्राट नग्न हुआ नहीं हो सकता।
जा रहा था। लेकिन जब आखिरी वस्त्र भी निकल गया, तब उस तो पहले तो व्यक्ति को सहज, स्वाभाविक कर लेना जरूरी है। आदमी ने जोर से कहा कि दरबारियो, अब तुम्हें मैं एक और खबर तो पहली तो बात यह खयाल रखें कि अगर समाज भी आप अच्छा बताता हूं। जब मैं चलने लगा, तो देवताओं ने कहा था कि ये वस्त्र चाहते हैं, तो उसके लिए सच्चा व्यक्ति जरूरी है। सच्चे व्यक्ति के | उसी को दिखाई पड़ेंगे, जो अपने ही बाप से पैदा हुआ हो। बिना अच्छा समाज नहीं होगा। और अच्छाई अगर झूठ है, तो सम्राट ने कहा कि कितने सुंदर वस्त्र हैं! दरबारी आगे बढ़ आए समाज ऊपर से कितना ही अच्छा दिखाई पड़े, भीतर सड़ता रहेगा। | एक-दूसरे से वस्त्रों की तारीफ करने में। क्योंकि अगर कोई पीछे सड़ रहा है। सब अच्छी-अच्छी बातें ऊपर हैं। और सब बुरी-बुरी | रह जाए, तो कहीं शक न हो जाए कि यह कहीं किसी और से तो बातें नीचे बह रही हैं।
| पैदा नहीं हुआ। एक-दूसरे से बढ़-बढ़कर तारीफ करने लगे। ऐसा लगता है कि बुरी बातें तो हमारी आत्मा हो गई हैं और जो थोड़े डर भी रहे थे तारीफ करने में, क्योंकि राजा बिलकुल
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