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गीता दर्शन भाग-
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के लिए। और तब कैथोलिक दल ने बहुत अच्छा खेल लिया। अड़चन दोहरी हो गई है। क्रोध का दुख तो भोगना ही पड़ता है, विजय के करीब आते मालूम पड़े। एक आदमी उछल-उछलकर | फिर क्रोध किया, इसका भी दुख भोगना पड़ता है। यह दोहरा दुख उनको प्रोत्साहन दे रहा था। वह इतनी खुशी में आ गया था कि | | हो गया। क्रोध ही काफी था आदमी को परेशान करने के लिए। अब अपनी टोपी भी उछाल रहा था। उसके पास के लोगों ने समझा कि | | आप एक और दुश्मन खड़ा कर लिए कि क्रोध बुरा है। तो पहले यह कैथोलिक मालूम पड़ता है।
क्रोध करें, उसका दुख भोगें; और फिर क्रोध किया, इसका दुख फिर हवा बदली और प्रोटेस्टेंट दल तेजी से जीतता हुआ मालूम | | भोगें। कामवासना बुरी है, पहले कामवासना का दुख भोगें। और पड़ने लगा। लेकिन वह जो आदमी टोपी उछाल रहा था, वह अब | फिर कामवासना में उतरे, यह पाप किया, इसका दुख भोगें। और भी टोपी उछालता रहा और नाचता रहा।
इस तरह जीवन और जटिल हो गया है। तब आस-पास के लोग जरा चिंतित हुए। तो पड़ोसी ने पूछा कि ___ कामवासना क्या है? क्रोध क्या है? मन की सारी ऊर्जाएं क्या माफ करें, आप कैथोलिक हैं या प्रोटेस्टेंट? आप किसके पक्ष में | हैं? इनका निष्पक्ष दर्शन सीखें। और आप बड़े आनंदित होंगे। और नाच रहे हैं? किसकी खुशी में नाच रहे हैं? क्योंकि पहले जब उस आनंद से ही आपके जीवन में बेचैनी बदलनी शुरू हो जाएगी कैथोलिक जीत रहे थे, तब भी आप टोपी उछाल रहे थे। तब भी | और चैन निर्मित होने लगेगा। बड़े आप आनंदित हो रहे थे। और अब जब कि कैथोलिक हार रहे। दूसरी बात, भागना बंद कर दें। हैं और प्रोटेस्टेंट जीत रहे हैं, तब भी आप आनंदित हो रहे हैं। तो वैज्ञानिक कहते हैं कि दो ही उपाय हैं, या तो भागो या लड़ो। आप किसके पक्ष में आनंदित हो रहे हैं?
| जिंदगी में यही है। अगर एक शेर आप पर हमला कर दे, तो दो ही उस आदमी ने कहा, मैं किसी के पक्ष में आनंदित नहीं हो रहा | | उपाय हैं, या तो भागो या लड़ो। अगर लड़ सकते हो, तो ठीक। हं. मैं तो खेल का आनंद ले रहा है। जिस आदमी ने पछा था, उसने नहीं तो भाग खड़े होओ। दो ही उपाय हैं। अपनी पत्नी से कहा कि यह आदमी नास्तिक मालूम होता है। बाहर की जिंदगी में अगर संघर्ष की स्थिति आ जाए, तो दो ही
खेल का आनंद ले रहा हूं, उस आदमी ने कहा। बड़ी कीमत की | | विकल्प हैं, लड़ो या भागो। लेकिन भीतर की जिंदगी में एक तीसरा बात कही। उसने कहा, मुझे इससे मतलब नहीं कि कौन जीत रहा | विकल्प भी है, जागो। वह तीसरा विकल्प ही धर्म है। है। लेकिन खेल इतना आनंदपूर्ण हो रहा है कि मैं उसका आनंद ले बाहर की जिंदगी में तो कोई उपाय नहीं है। दो ही मार्ग हैं। अगर रहा हूं। मैं किसी पक्ष में नहीं हूं। तो उस आदमी को लगा कि यह | शेर हमला कर दे, तो क्या करिएगा? या तो लड़िए या भागिए। दो नास्तिक होना चाहिए, क्योंकि जो कैथोलिक भी नहीं है और | में से कुछ चुनना ही पड़ेगा। प्रोटेस्टेंट भी नहीं है...।
लेकिन भीतर दो विकल्प की जगह तीन विकल्प हैं। या तो लड़ो, आप मन का थोड़ा आनंद लेना सीखें। लेकिन आप पहले से ही | या भागो, या जागो। न लड़ो, और न भागो, सिर्फ खड़े होकर जाग या तो कैथोलिक हैं या प्रोटेस्टेंट हैं। पहले से ही माने बैठे हैं और | जाओ। जो भी हो रहा है, उसे देख लो। जागते ही ऊर्जा रूपांतरित मन की शक्तियों का आनंद नहीं ले पाते हैं। पहले से ही मान लिया | होती है। और बेचैनी आनंद की यात्रा पर निकल जाती है। वह नाव है कि क्रोध बुरा है, कामवासना पाप है, लोभ बुरा है। यह बुरा है, | बन जाती है। वह बुरा है; यह अच्छा है। सब माने बैठे हैं। पता आपको कुछ भी | नहीं है। क्योंकि अगर आपको ही पता हो कि क्या बुरा है, तो बुरा फौरन बंद हो जाए। अगर आपको ही पता हो कि क्या भला है, तो | एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि मन-वाणी की सरलता भला आपकी जिंदगी में आ जाए। आपको कुछ पता नहीं है। सुना | अर्थात भीतर-बाहर एक जैसा होना, धार्मिकता व है; लोगों ने कहा है; हजारों-हजारों साल की हवा और संस्कार है। ज्ञान का लक्षण आपने कहा। यदि व्यक्ति जैसा भीतर तो बस, आप उनको मानकर बैठे हैं। और उससे बड़ी अड़चन में है, वैसा ही व्यवहार बाहर भी करने लगे, तो वर्तमान पड़े हुए हैं।
समाज व नीति व्यवस्था में बड़ी अराजकता का आना क्रोध बुरा है, यह मालूम है, और क्रोध होता है। इसलिए अवश्यंभावी दिखता है। इस अराजकता से बचने का
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