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________________ ॐ समत्व और एकीभाव लोग हैं, जो खाद को बगीचे में डाल लेंगे। और उसी खाद से फूल | बैठे हैं। जो आदमी खाद का दुश्मन बना बैठा है, वह खाद का निकल आएंगे, और उनका घर सुगंध से भर जाएगा। जो खाद को उपयोग न कर पाएगा। हम पहले से ही माने बैठे हैं, क्रोध बुरा है, ही सम्हालकर बैठ जाएंगे, वे भगवान को गाली देंगे कि हम पर यह | | घृणा बुरी है, सब बुरा है। और उस सबसे हम भरे हैं। बुरे की जो किस भांति का अभिशाप है कि यह खाद हमारे ऊपर डाल दिया। | धारणा है, वह देखने नहीं देती। बुरे की जो धारणा है, वह निष्पक्ष है! जो जानते हैं, वे खाद से फूल निर्मित कर लेते हैं। | विचार नहीं करने देती। बुरे की जो धारणा है, वह समझने के पहले फूलों की जो सुगंध है, वह खाद की ही दुर्गंध है। फूलों में जो ही भागने और लड़ने में लगा देती है। रंग है, वह खाद का ही है; वह सब खाद ही रूपांतरित हुआ है। | तो एक तो धारणाएं छोड़ें। निर्धारणापूर्वक देखना शुरू करें। मनुष्य के पास क्रोध, घृणा, हिंसा खाद है; अध्यात्म का फूल | तथ्य उन्हीं के सामने प्रकट होते हैं, जो बिना धारणा के उन्हें देखते खिल सकता है। अगर आप थोड़े-से साक्षी को जगाने की कोशिश | | हैं। जो धारणा से देखते हैं, वे तो अपनी ही धारणा को परिपुष्ट कर करें। साक्षी-भाव माली बन जाता है। लेते हैं। तो बेचैनी से घबड़ाएं मत, अशांति से घबड़ाएं मत। भीतर | __दूसरी बात, भागने की आदत छोड़ें। पूरी पृथ्वी पर हमें पलायन पागलपन उबलता हो, भयभीत न हों। उसका उपयोग करें। उसके | सिखाया गया है, भागो, बचो। भागने से कोई भी कभी जीत को साक्षी होना शुरू हो जाएं। और जब भी कोई चीज भीतर पकड़े, तो | उपलब्ध नहीं होता। तो क्रोध आ गया है, तो आप रेडियो खोल लेते उसको अवसर समझें, कि वह ध्यान का एक मौका है, उस पर | | हैं। मन में कामवासना उठी है, तो रामायण पढ़ने लगते हैं। घृणा ध्यान करें। मन में उठ गई है, हिंसा का भाव आता है, तो मंदिर चले जाते हैं। लेकिन हम उलदा करते हैं। जब क्रोध आ जाए, तो हम राम-राम | । भागे मत। भागने से कुछ भी न होगा। वह जो छिपा है भीतर, जपते हैं। हम सोचते हैं कि हम ध्यान कर रहे हैं। राम-राम जपना | वह मजबूत होता रहेगा। न तो उसे मंदिर मिटा सकता है, न तो सिर्फ डायवर्शन है। वह तो क्रोध उबल रहा है, आप अपने मन | | रामायण मिटा सकती है। कोई भी उसे मिटा नहीं सकता। सिवाय को कहीं और लगा रहे हैं, ताकि इस क्रोध में न उलझना पड़े। यह | | आपके साक्षात्कार के कोई उसे मिटा नहीं सकता। आपको उसे तो इस तरह राम-राम जपकर आप सिर्फ अपने को थोड़ी देर के | | आंख गड़ाकर देखना ही पड़ेगा। अपने भीतर जो है, उसका नग्न लिए बचा रहे हैं, मस्तिष्क को हटा रहे हैं। दर्शन जरूरी है। लेकिन क्रोध वहां पड़ा है, वह बदलेगा नहीं। आपके हटने से। लेकिन भागने वाला दर्शन नहीं कर पाता। और भागने वाला नहीं बदलेगा; आपके जम जाने से और देखने से बदलेगा। आप | | धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है। और जितना भागता है, उतने ही शत्रु पीठ कर लेंगे, तो क्रोध और घाव बना देगा भीतर, और जड़ें जमा | | उसका पीछा करते हैं। क्योंकि वे शत्रु बाहर नहीं हैं। वे आपके साथ लेगा। आप अपनी दोनों आंखें क्रोध पर गड़ा दें। और यह क्षण है | हैं, आपमें ही हैं। आपके हिस्से हैं। कि आप होशपूर्वक क्रोध को देख लें। दो बातें, एक तो पक्ष छोड़ें। पक्ष के कारण बड़ी कठिनाई है। कामवासना मन को पकड़े, तो भागें मत। घबड़ाएं मत। राम-राम | । मैंने सुना है कि आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में एक फुटबाल मैच हो मत जपें। कामवासना को सीधा देखें। सीधा साक्षात्कार जरूरी है | रहा था। और दो दल थे। प्रोटेस्टेंट ईसाई, उनका एक दल था; और वासनाओं का। लेकिन आदमी को भागना सिखाया गया है। उसको | | कैथोलिक ईसाई, उनका एक दल था। हजारों लोग देखने इकट्ठे हुए कहा गया है, जहां भी कुछ बुरा दिखाई पड़े, भाग खड़े होओ। । | थे, प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों ही, क्योंकि दोनों के दल थे। लेकिन भागोगे कहां? बुरा तुम्हारे भीतर है, वह तुम्हारे साथ और मामला सिर्फ फुटबाल का नहीं था, धर्म का हो गया था। जो चला जाएगा। अपने से भागने का कोई भी रास्ता नहीं है। अगर जीतेगा...फुटबाल का ही सवाल नहीं है कि फुटबाल में जीत गया। बुराई कहीं बाहर होती, तो हम भाग भी जाते। वह हमारे भीतर खड़ी | अगर कैथोलिक पार्टी जीत गई, तो कैथोलिक धर्म जीत गया। और है, उसको बदलना पड़ेगा। इस खाद का उपयोग करना पड़ेगा। | अगर प्रोटेस्टेंट पार्टी जीत गई, तो प्रोटेस्टेंट धर्म जीत गया। और इसका उपयोग करना बहुत कठिन नहीं है। तो भारी कशमकश थी, और भारी उत्तेजना थी, और दोनों दलों कठिनाई सिर्फ दो हैं। एक, कि हम पहले से ही दुर्भाव बनाए के लोग दोनों तरफ मौजूद थे अपने-अपने दल को प्रोत्साहन देने 243
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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