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________________ • रामकृष्ण की दिव्य बेहोशी एक दिन मेरे पास आकर वे कहने लगे कि मैंने जिंदगी में सिवाय गुरु का शिष्य दुश्मन हो ही जाएगा। दूसरों की सहायता के कुछ भी नहीं किया, लेकिन कोई भी मेरा इसे हम ऐसा समझें कि बेटे बाप के दुश्मन हो जाते हैं। इसलिए उपकार नहीं मानता है! उलटे लोग मेरी निंदा करते हैं। जिनकी मैं | | हमने बाप के प्रति बहुत श्रद्धा का भाव पैदा करने की कोशिश की सहायता करता हूं, वे ही निंदा करते हैं। जिनको मैं पैसे से सब तरह | | है, नहीं तो बेटे बाप के दुश्मन हो ही जाएंगे। क्योंकि बाप से सब की सुविधा पहुंचाता हूं, वे ही मेरे दुश्मन बन जाते हैं। तो कारण | मिलता है; और लौटाने का क्या है। क्या है ? किस वजह से ऐसा हो रहा है? पर बाप से तो जो मिलता है, वह लौटाया भी जा सकता है, तो मैंने उनसे कहा कि आप उनको भी कुछ उत्तर देने का मौका | | क्योंकि बाह्य वस्तुएं हैं। गुरु से जो मिलता है, वह तो लौटाया ही देते हैं कि नहीं? तो उन्होंने कहा कि उसकी तो कोई जरूरत ही नहीं | | नहीं जा सकता है। वह तो ऐसी घटना है कि उसको लौटाने का है। मेरे पास पैसा है, मैं उनकी सहायता कर देता हूं। तो फिर, मैंने | सिर्फ एक उपाय है कि तुम किसी और को शिष्य बना देना। बस, कहा कि कठिनाई है। क्योंकि वे क्या करें! जब आप उनकी | वही उपाय है; और कोई उपाय नहीं है। जो तुमने गुरु से पाया है, सहायता करते हैं, तो आपको लगता है कि आप बहुत अच्छा काम | | वह तुम किसी और शिष्य को दे देना, यही उपाय है। गुरु तक कर रहे हैं, लेकिन जिसकी सहायता की जाती है, वह आदमी तो | लौटाने का कोई उपाय नहीं है। अनुभव करता है कि उसका अपमान हुआ। ऐसा मौका आया कि | इसलिए श्रद्धा-भक्ति सहित गुरु की उपासना। बाहर-भीतर की किसी की सहायता लेनी पड़ी। और फिर लौटा सकता नहीं है, आप शुद्धि, अंतःकरण की स्थिरता, मन-इंद्रियों सहित शरीर का किसी को लौटाने देते नहीं हैं। तो फिर वह आपका दुश्मन हो | निग्रह...। जाएगा। वह आपका उत्तर किसी न किसी तरह तो देगा। इन सबके संबंध में मैंने काफी बात पीछे की है। दो ही उपाय हैं, या तो आप उसकी कोई सहायता लें और उसको । लोक-परलोक के संपूर्ण भोगों में आसक्ति का अभाव और भी ऊपर होने का कोई मौका दें। और नहीं तो फिर वह आपकी अहंकार का भी अभाव एवं जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में सहायता झूठी थी, धोखे की थी, आप आदमी बुरे हैं, ये सब खबरें दुख और दोषों का बारंबार दर्शन, ये सब ज्ञान के लक्षण हैं। फैलाकर अपने मन को यह सांत्वना दिलाएगा कि इतने बुरे आदमी आखिरी बात जिसकी अभी चर्चा नहीं हुई, उसकी हम बात कर से नीचे होने का कोई सवाल ही नहीं; इस बुरे आदमी से तो मैं ही लें। जन्म, मृत्यु, जरा, रोग, दुख इत्यादि में बारंबार दोषों का दर्शन, ऊपर हूं। यह वह कंसोलेशन, सांत्वना खोज रहा है। ये सब ज्ञान के लक्षण हैं। आदमी के मन की बड़ी जटिलता है। जब आप पर कोई बीमारी आती है, कोई दुख आता है, कोई गुरु से आप ज्ञान लेते हैं, लौटा तो कुछ भी नहीं सकते। क्योंकि | असफलता घटित होती है, कोई संताप घेर लेता है, तब आप क्या ज्ञान कैसे लौटाया जा सकता है! उससे जो मिलता है, उसका कोई | | करते हैं? तब आप तत्क्षण यही सोचते हैं कि किन्हीं दूसरे लोगों की प्रत्युत्तर नहीं हो सकता। इसलिए भारत में बड़े आग्रहपूर्वक यह | शरारत, षड्यंत्र के कारण आप कष्ट पा रहे हैं। तो यह अज्ञानी का कहा है कि श्रद्धा और भक्ति सहित...। लक्षण है। अगर बहुत प्रगाढ़ श्रद्धा हो, तो ही शिष्य गुरु के विरोध में जाने | ज्ञानी का लक्षण यह है कि जब भी वह दुख पाता है, तब वह से बच सकेगा, नहीं तो दुश्मन हो जाएगा। आज नहीं कल शिष्य | | सोचता है कि जरूर मैंने कोई दोष किया, मैंने कोई पाप किया, मैंने के दुश्मन हो जाने की संभावना है। वह दुश्मन हो ही जाएगा। वह कोई भूल की, जिसका मैं फल भोग रहा हूं। ज्ञान का लक्षण यह है कोई न कोई बहाना और कोई न कोई कारण खोजकर शत्रुता में | | कि जब भी दुख मिले, तो अपने दोष की खोज करना। जरूर कहीं खड़ा हो जाएगा, तभी उसको राहत मिलेगी कि झंझट मिटी; इस | न कहीं मैंने बोया होगा, इसलिए मैं काट रहा हूं। आदमी के बोझ से मुक्त हुआ। __ अज्ञानी दूसरे को दोषी ठहराता है, ज्ञानी सदा अपने को दोषी इसलिए हमने बहुत खोजबीन करके श्रद्धा और भक्ति को ठहराता है। और इसलिए अज्ञानी दोष से कभी मुक्त नहीं होता; अनिवार्य शर्त माना है शिष्य की, तभी शिष्य गुरु के साथ उसके | ज्ञानी दोष से मुक्त हो जाता है। अगर मुझे यह प्रगाढ़ प्रतीति होने मार्ग पर चल सकता है और दुश्मन होने से बच सकता है। नहीं तो लगे और होगी ही—अगर हर दुख में, हर पीड़ा में, हर रोग में, 237
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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