SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 हर मृत्यु में मैं यही जानूंगा कि मेरी कोई भूल है, तो निश्चित ही | लेकिन जिस ढंग से आप खड़े हैं, बहुत दूर है, क्योंकि आप पीठ आगे उन भूलों को करना मुश्किल हो जाएगा। जिन दोषों से इतना | | किए खड़े हैं। इन लक्षणों के विपरीत आप सब कुछ कर रहे हैं। दुख पैदा होता है, उनको करना असंभव हो जाएगा। मेरा मन | | आपकी पीठ है मंदिर की तरफ। इसलिए अगर आप और गहन संस्कारित हो जाएगा। मुझे यह स्मरण गहरे में बैठ जाएगा, तीर की | अंधकार में, और अज्ञान में, और दुख में प्रवेश करते चले जाते हैं, तरह चुभ जाएगा। तो कुछ आश्चर्य नहीं है। __ अगर सभी दुख मेरे ही कारण से पैदा हुए हैं, तो फिर आगे मेरे | पांच मिनट रुकेंगे। कोई भी व्यक्ति बीच से न उठे। बीच से उठने दुख पैदा होने मुश्किल हो जाएंगे, क्योंकि मैं अपने कारणों को | | में बाधा पड़ती है। पांच मिनट कीर्तन में भाग लें, और फिर जाएं। हटाने लगंगा। लेकिन अज्ञानी के दख दसरों के कारण से पैदा होते हैं। इसलिए उसके हाथ में कोई ताकत ही नहीं है, वह कुछ कर सकता नहीं। दूसरे जब बदलेंगे, सारी दुनिया जब बदलेगी, तब वह सुखी हो सकता है! __ अज्ञानी सुखी होगा, जब सारी दुनिया बदल जाएगी और कोई गड़बड़ नहीं करेगा, तब। ऐसा कभी होने वाला नहीं है। ज्ञानी अभी सुखी हो सकता है, इसी क्षण सुखी हो सकता है। क्योंकि वह मानता है कि दुख मेरे ही किसी दोष के कारण हैं। मुसलमान फकीर इब्राहीम एक रास्ते से गुजरता था। उसके शिष्य साथ थे। इब्राहीम के प्रति उनका बडा आदर. बडा भाव. बड़ा सम्मान था। वह आदमी भी वैसा पवित्र था। अचानक इब्राहीम के पैर में पत्थर की चोट लगी और जमीन पर गिर पड़ा, पैर लहूलुहान हो गया। शिष्य बहुत चकित हुए, शिष्य बहुत हैरान हुए। शिष्यों ने कहा कि यह किसी की शरारत मालूम पड़ती है। कल शाम को हम निकले थे, तब यह पत्थर यहां नहीं था। और सुबह आप यहां से निकलेंगे और मस्जिद जाएंगे सुबह के अंधेरे में, किसी ने यह पत्थर जानकर यहां रखा है। दुश्मन काम कर रहे हैं। इब्राहीम ने कहा, पागलो, फिजूल की बातों में मत पड़ो। रुको। और इब्राहीम घुटने टेककर परमात्मा को धन्यवाद देने बैठ गया। प्रार्थना करने के बाद उसने कहा, हे परमात्मा, तेरी बड़ी कृपा है। पाप तो मैंने ऐसे किए हैं कि आज फांसी लगनी चाहिए थी; सिर्फ पत्थर की चोट से तूने मुझे छुड़ा दिया। तेरी अनुकंपा अपार है। ज्ञानी का लक्षण है, जब भी कोई पीड़ा आए, तो खोजना, कहीं अपनी कोई भूल, अपना कोई दोष, जिसके कारण यह दुख आ रहा होगा। ये कष्ण ने ज्ञान के लक्षण कहे हैं। इन लक्षणों को जो भी परा करने लगे, वह धीरे-धीरे ज्ञान के मंदिर की तरफ बढ़ने लगता है। और मंदिर बहुत दूर नहीं है। जहां आप खड़े हैं, बहुत पास है। 238/
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy