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रामकृष्ण की दिव्य बेहोशी
उसका कारण यह नहीं है कि वह धोखा दे रहा है। उसका कारण | जैसी है। इसका यह मतलब नहीं है कि वह किसी को चोट पहुंचाना यह नहीं है कि उसकी हंसी झूठी है। उसका कारण यह है कि उसका | चाहता है। इसका यह भी मतलब नहीं है कि वह किसी को रोना इतना सच्चा था कि निकल गया; बात खतम हो गई। अब वह | अपमानित करना चाहता है। इसका सिर्फ इतना मतलब है कि वह हंस रहा है।
जैसा भीतर है, चाहता है कि लोग उसे बाहर भी वैसा ही जानें। फिर आपका रोना भी झूठा है, हंसना भी झूठा है। ऊपर से चिपकाया इसके कारण जो भी कठिनाई झेलनी पड़े, वह झेल लेगा। लेकिन हुआ है। दोनों ही झूठे हैं। जिंदगी चल रही है झूठ में। दोनों तरफ अपने को झूठा नहीं करेगा। झूठ के चक्के लगाए हुए हैं गाड़ी में। कहीं नहीं पहुंच रही है जिंदगी, दो उपाय हैं, या तो बाहर की कठिनाई से बचने के लिए भीतर तो कहते हैं, कहीं पहुंचती नहीं। प्रयोजन क्या है? लक्ष्य नहीं | जटिल हो जाएं; और या फिर बाहर की कठिनाई झेलने की तैयारी मिलता!
हो, तो भीतर सरल हो जाएं। वह लक्ष्य मिलेगा क्या! दोनों चक्के झूठे हैं। वे दिखाई पड़ते हैं, संतत्व की सबसे बड़ी तपश्चर्या सरलता है। कोई धूप में खड़ा पेंटेड हैं। चक्के नहीं हैं।
| होना संतत्व नहीं है। और न कोई सिर के बल खड़े होकर अभ्यास सरलता का अर्थ है, जैसा भीतर हो, वैसा ही बाहर प्रकट कर | करे, तो कोई संत हो जाएगा। ये सब कवायदें हैं और इनका कोई देना। बड़ी कठिनाई होगी। आप कहेंगे, आप उपद्रव की बात कह | बहुत बड़ा मूल्य नहीं है। संतत्व की असली संघर्ष की तपश्चर्या है रहे हैं। उपद्रव की है, इसीलिए तो कम लोग सरल हो पाते हैं। | सरलता, क्योंकि तब आपको बड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ेंगी। बड़ी जटिल आप इसीलिए तो हो जाते हैं, क्योंकि सरल होना मुश्किल | मुसीबतें झेलनी पड़ेंगी, क्योंकि चारों तरफ आपने झूठ का जाल है। अगर सरल होंगे, तो बहुत-सी कठिनाइयां झेलनी पड़ेंगी। | बिछा रखा है। बहुत-सी कठिनाइयां झेलनी पड़ेंगी, बहुत-सी अड़चनें झेलनी ___ आपने ऐसे आश्वासन दे रखे हैं, जो आप पूरे नहीं कर सकते। पड़ेंगी। इसीलिए तो आदमी उनसे बचने के लिए कठिन हो जाता | | आपने ऐसे वक्तव्य दे रखे हैं, जो असत्य हैं। आपने सबको धोखे है, जटिल हो जाता है।
में रख छोड़ा है और आपके चारों तरफ एक झूठी दुनिया खड़ी हो एक आदमी सुबह-सुबह मिलता है। मन में होता है कि इस दुष्ट गई है। सरलता का अर्थ है, यह दुनिया गिरेगी, खंडहर हो जाएगा। की शक्ल कहां से दिखाई पड़ गई! अब दिनभर खराब हुआ। और | | क्योंकि आप अपनी पत्नी से कहते ही चले जा रहे हैं कि मैं तुझे प्रेम उससे आप नमस्कार करके कहते हैं कि धन्यभाग कि आप दिखाई। करता है। वह मानती नहीं। वह रोज पछती है कि प्रेम करते हैं? पड़ गए। बड़ी कृपा है। बड़े दिनों में दिखाई पड़े। बड़े दिन से बड़ी | हजार ढंग से पूछती है कि आप मुझे प्रेम करते हैं? इच्छा थी। और भीतर कह रहे हैं, यह दुष्ट कहां से सुबह दिखाई। पति-पत्नी एक-दूसरे से पूछते हैं बार-बार, तरकीबें निकालते पड़ गया!
| हैं पूछने की, कि आप मुझे अभी भी प्रेम करते हैं? क्योंकि भरोसा अब यह जो भीतर और बाहर हो रहा है, अगर आप सीधे ही तो दोनों को नहीं आता; आ भी नहीं सकता। क्योंकि दोनों धोखा कह दें कि महानुभाव, कहां से दिखाई पड़ गए आप सुबह से। दे रहे हैं। पत्नी भी जानती है कि जब मैं ही नहीं करती हूं प्रेम, तो दिनभर खराब हो गया। तो आप कठिनाई में पड़ेंगे। क्योंकि यह | दूसरे का क्या भरोसा! पति भी जानता है कि जब मैं ही नहीं करता
आदमी झंझट डालेगा। यह आपको फिर ऐसे ही जाने नहीं देगा। हूं प्रेम, तो पत्नी का क्या भरोसा! फिर दिन तो दूर है, यह अभी आपको उपद्रव खड़ा कर देगा। यह इसलिए दोनों छिपी नजरों से जांच करते रहते हैं कि प्रेम है भी शक्ल फिर दिनभर में करेगी, वह तो अलग रही बात; लेकिन यह या नहीं। और एक-दूसरे से पूछते रहते हैं। और जब एक-दूसरे से । अभी कोई मुसीबत खड़ी कर देगा। तो आप ऊपर एक झूठा पूछते हैं, तो गले लगकर एक-दूसरे को आश्वासन देते हैं कि अरे, आवरण खड़ा कर लेते हैं। जिंदगी की जरूरतें आपको झूठा बना तेरे सिवाय जन्मों-जन्मों में न किसी को किया है, न कभी करूंगा। देती हैं।
जन्मों-जन्मों की बात कर रहे हैं और भीतर सोच रहे हैं कि इसी लेकिन ज्ञानी के लिए, कृष्ण कहते हैं, कठिनाई भला हो, लेकिन जन्म में अगर छुटकारा हो सके! वह भीतर चल रहा है। उसको मन-वाणी की सरलता चाहिए। वह वैसी ही बात कह देगा, संतत्व की सबसे बड़ी तपश्चर्या है, सरल हो जाना। शुरू में
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