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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 नहीं देता। सिर्फ तू इतना खयाल रखना, जब दूसरे में कोई भूल | | रहता है। देखे. तो खयाल रखना कि वे सारी भलें और भी बड़े रूप में तेरे कष्ण कहते हैं. क्षमा का भाव. मन-वाणी की सरलता...। भीतर मौजूद हैं। दूसरा क्षम्य है। सरलता को थोड़ा खयाल में ले लेना चाहिए कि उसका क्या ज्ञानी विश्लेषण करता है अपना। उस विश्लेषण से सारी अर्थ होता है। सरलता का अर्थ होता है, बिना किसी कपट के। मनुष्यता से उसकी पहचान हो जाती है। ज्ञानी का यह अनिवार्य सरलता का अर्थ होता है, सीधा-सीधा। सरलता का अर्थ होता है, लक्षण है कि ज्ञानी निंदा नहीं करेगा, दंडित नहीं करेगा; वह यह बिना किसी योजना को बनाए, बिना किसी कैलकुलेशन के, बिना नहीं कहेगा कि तुम महापापी हो और नरक में सड़ोगे। वह तुम्हारे किसी गणित के। ऊपर खड़े होकर तुम्हें नीचा दिखाने की कोशिश भी नहीं करेगा। ___ छोटे बच्चे में सरलता होती है। अगर उसको क्रोध आ गया है, क्योंकि उसने अपना विश्लेषण किया है, उसने अपनी स्थिति भी | तो वह आग की तरह जल उठता है, भभक उठता है। उस क्षण ऐसा जानी है। और अपनी स्थिति को जानकर वह पूरी मनुष्यता की लगता है, सारी दुनिया को नष्ट कर देने की उसकी मर्जी है। और स्थिति से परिचित हो गया है। क्षणभर बाद वह फूल की तरह मुस्कुरा रहा है। और जिसको वह. लेकिन उस युवक ने कहा कि नहीं, जब तक आप मुझे दंड न | | मारने को खड़ा हो गया था, नष्ट कर देने को, उसी के साथ खेल देंगे, तब तक मैं जाऊंगा नहीं। मैं इतना बड़ा पापी हूं! तो बालशेम | | रहा है। जो भीतर था, उसने बाहर ले आया; जैसा था, वैसा ही ने कहा, तू कुछ भी पापी नहीं है। तुझसे बड़ा मैं रहा हूं। तू कुछ भी | | बाहर ले आया। उसने यह नहीं सोचा कि लोग क्या सोचेंगे। उसने नहीं है। तुझसे बड़ा मैं रहा हूं। और मैं भी किसी दिन एक गुरु के यह नहीं सोचा कि दुनिया क्या कहेगी। उसने यह नहीं सोचा कि पास गया था और दंड मैंने भी चाहा था। | इससे नरक जाऊंगा या स्वर्ग जाऊंगा। उसने कुछ सोचा ही नहीं, ___ अहंकार बड़ा सूक्ष्म है। बड़े दंड से भी प्रसन्न होता है। कोई दंड | जो भीतर था, वह बाहर ले आया। नहीं मिल रहा है, तो उसे लग रहा है कि मुझे समझा ही नहीं जा रहा। बच्चे में सरलता है। और इसलिए बच्चा अभी रो रहा है, अभी है। समझ रहे हैं कि कोई छोटा-मोटा पापी। मैं बार-बार कह रहा है। मस्करा सकता है। कई दफे बडों को बडी हैरानी होती है कि ये बच्चे कि मैं बड़ा पापी हूं। मुझे कोई बड़ा दंड दो। बड़े दंड में भी मजा | भी किस तरह के हैं! अभी रो रहा था, अभी मुस्कुरा रहा है। बड़े रहेगा। कोई छोटा-मोटा पापी नहीं है कोई आम पापी नहीं | | धोखेबाज मालूम पड़ते है, पाखंडी मालूम पड़ते हैं। इतने जल्दी यह हूं-चलता-फिरता, ऐरा-गैरा-खास पापी हूं। हो कैसे सकता है कि अभी यह रो रहा था, अभी मुस्कुरा रहा है! तो बालशेम ने कहा, मैं भी किसी गुरु के पास गया था। और आप रोएं, तो दो-चार दिन लग जाएंगे मुस्कुराने में। क्योंकि वह मैंने भी कहा था, मैं महापापी हूं; मुझे बड़ा दंड दो। मेरे गुरु ने कहा रोना आप में सरकता ही रहेगा। पर आप कारण समझते हैं? था कि तुझे दंड नहीं दूंगा। और याद रखना तू भी किसी को दंड मत अभी एक मित्र आए; सालभर पहले पत्नी चल बसी। वे अभी देना, सिर्फ क्षमा का भाव देना। तक नहीं हंस पा रहे हैं। सालभर हो गया, रो ही रहे हैं। वे मुझसे कृष्ण कहते हैं, ज्ञानी का लक्षण है क्षमा का भाव। बोले कि मुझे किसी तरह रोने से छुटकारा दिलाइए। मैंने कहा कि वह जानता है आदमी कमजोर है। वह जानता है. आदमी अगर मेरी आप समझते हों. तो मेरा समझना ऐसा है कि आप ठीक मुश्किल में है। वह जानता है, आदमी बड़ी दुविधा में है। वह से रोए नहीं हैं। नहीं तो सालभर कैसे रोते! आप ऐसे ही जानता है कि आदमी जैसा भी है, बड़ी जटिलता में है। इसलिए उसे | कुनकुने-कुनकुने रो रहे हैं, ल्यूकवार्म। शक्ल लंबी बनाए हुए हैं। दोषी क्या ठहराना! दिल खोलकर नहीं रो लिए। छाती पीटकर, नाचकर, कूदकर, जैसा ___ अगर आप कुछ भूल कर लेते हैं, तो कुछ आश्चर्य नहीं है। | करना हो, ठीक से रो लें। चौबीस घंटे निकाल लें, मैंने उनसे कहा, स्वाभाविक मालूम होता है। सच तो यह है कि अगर आप भूल नहीं | छुट्टी के और चौबीस घंटे रो लें। चौबीस साल रोने की बजाय करते हैं, तो बड़ा अस्वाभाविक मालूम होता है। आदमी इतना चौबीस घंटे रो लें। फिर हंसी अपने आप आ जाएगी। रोना निकल कमजोर, इतनी शक्तियों का दबाव, इतनी जटिलताएं, इतनी | | जाए, तो हंसी आ जाती है। मुसीबतें, उनके बीच में भी आदमी किसी तरह अपने को सम्हाले वह छोटा बच्चा एक क्षण में रोता है, एक क्षण में हंसता है। 234
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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