SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-660 धड़क रहा है, वह आपने कभी ठीक से सुना नहीं। अब यहां कोई और भीतर के बीच की देहली पर खड़ी हो सकती है। और दोनों आवाज नहीं है, तो आपके हृदय की धड़कन जोर से आ रही है। और तरफ होश रख सकते हैं। आपका खून जो चल रहा है शरीर के भीतर, उसमें जो घर्षण हो रहा लेकिन अति जटिल है बात। इसलिए उचित है कि रामकृष्ण की है, उसकी आवाज आ रही है। ये दो आवाजें आपके भीतर हैं। आप | तरफ से ही चलें; दूसरी घटना भी घट जाएगी बाद में। रामकृष्ण ने अंदर ले आए। बाहर से कोई आवाज भीतर नहीं आ सकती। | आधा काम बांट लिया है। बाहर की तरफ से होश छोड़ दिया है, __आपने कभी अपने खून की आवाज सुनी है ? नहीं सुनी है। खून | | सारा होश भीतर ले गए हैं। एक दफा भीतर का होश सध जाए, तो की आवाज तो आपको सुनाई नहीं पड़ती है और बहुत-से लोग | | फिर बाहर भी होश साधा जा सकता है। बैठकर भीतर ओंकार का नाद सुनने की कोशिश करते हैं ! वह अति रामकृष्ण का प्रयोग सरल है बुद्ध के प्रयोग से। और साधारण सूक्ष्म है; वह आपको कभी सुनाई नहीं पड़ सकती। आदमी को रामकृष्ण का प्रयोग ज्यादा आसान है, बजाय बुद्ध के __ अब यह खून की आवाज तो स्थूल आवाज है; जैसे झरने की प्रयोग के। क्योंकि बुद्ध के प्रयोग में दो काम एक साथ साधने आवाज होती है, वैसे खून की भी आवाज है। लेकिन वही आपको | | पड़ेंगे; ज्यादा समय लगेगा; और ज्यादा कठिनाई होगी; और सुनाई नहीं पड़ी; आप सोच रहे हैं कि ओंकार का नाद सुनाई पड़ | अत्यंत अड़चनों से गुजरना पड़ेगा। रामकृष्ण की प्रक्रिया बड़ी सरल जाए! वह तो परम गूढ, परम सूक्ष्म, आखिरी आवाज है। जब सब | है। बाहर को छोड़ ही दें एक बार और भीतर ही डूब जाएं। एक तरह से व्यक्ति पूर्ण शांत हो जाता है, तभी वह सुनाई पड़ती है। तब | दफा भीतर का रस अनुभव में आ जाए, तो फिर बाहर भी उसे भीतर निनाद होने लगता है; तब वह जो ओम भीतर गूंजता है, वह | जगाए रखा जा सकता है। पैदा हुआ ओम नहीं है। इसलिए हमने उसको अनाहत नाद कहा है। आहत नाद का अर्थ है, जो चोट से पैदा हो। अनाहत नाद का अर्थ है, जो बिना चोट के अपने आप पैदा होता रहे। वह सुनाई एक और मित्र ने पूछा है कि ऐसा सुना है कि पड़ेगा। लेकिन तब हमें अपनी चेतना को बाहर के आघात से | देवताओं को भी अगर मुक्ति चाहिए हो, तो मनुष्य छुटकारा कर लेना जरूरी है।। का शरीर धारण करना पड़ता है। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के रामकृष्ण जब मूर्छित हैं, तब उन्होंने बाहर की तरफ से अपने बीच का तादात्म्य टूटना क्या देव-योनि में संभव नहीं द्वार-दरवाजे बंद कर लिए हैं। अब वे भीतर का अनाहत नाद सुन है? मनुष्य होने की क्या जरूरत है? अगर क्षेत्र और रहे हैं। अब उन्हें भीतर का ओंकार सुनाई पड़ रहा है। क्षेत्रज्ञ का संबंध टूटने से ही परम ज्ञान घटित होता है, लेकिन हर से मूर्छित होना जरूरी नहीं है। और भी विधियां हैं, | तो देवता इस संबंध को क्यों नहीं तोड़ सकते? इसके जिनमें बाहर भी होश रखा जा सकता है और भीतर भी। लेकिन वे | लिए मनुष्य के शरीर में आने की जरूरत क्या है? थोड़ी कठिन हैं, क्योंकि दोहरी प्रक्रिया हो जाती है। बुद्ध कभी बेहोश नहीं हुए। रामकृष्ण जैसा बेहोश होकर गिरे, ऐसा बद्ध के जीवन में कोई उल्लेख नहीं है कि वे बेहोश हए हों। न OT डा टेक्निकल, थोड़ा तकनीकी सवाल है। लेकिन कृष्ण के जीवन में हमने सुना है, न जीसस के जीवन में सुना है, न चा समझने जैसा है और आपके काम का भी है। देवता मोहम्मद के जीवन में सुना है कि बेहोश हो गए। रामकृष्ण के जीवन | तो यहां मौजूद नहीं हैं, लेकिन आपके भी काम का है, में वैसी घटना है। और कुछ संतों के जीवन में वैसी घटना है। | क्योंकि आपको भी कुछ बात समझ में आ सकेगी। तो बुद्ध कभी बेहोश नहीं हुए बाहर से भी। तो बुद्ध की प्रक्रिया | देव-योनि से मुक्ति संभव नहीं, इसका बड़ा गहरा कारण है। रामकृष्ण की प्रक्रिया से ज्यादा कठिन है। बुद्ध कहते हैं, दोनों तरफ | और मनुष्य-योनि से मुक्ति संभव है, बड़ी गहरी बात है। और होश रखा जा सकता है, भीतर भी और बाहर भी। जरूरत नहीं है इससे आप यह मत सोचना कि कोई मनुष्य-योनि का बड़ा गौरव बाहर से बंद करने की। बाहर भी होश रखा जा सकता है और भीतर | | है इसमें। ऐसा मत सोच लेना। कुछ अकड़ मत जाना इससे कि भी। हम बीच में खड़े हो सकते हैं। वह जो परम चेतना है, बाहर देवताओं से भी ऊंचे हम हुए, क्योंकि इस मनुष्य-योनि से ही मुक्ति 228
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy