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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 सुबह इंद्र देवता से चर्चा हो गई, तो आप क्या करिएगा? दफ्तर | अगर कोई पागलपन आपके जीवन को चिंता और वासना से जाइएगा? फिर दफ्तर नहीं जाएंगे। आप चिंता में पड़ जाएंगे कि छुटकारा दिला देता हो, अगर कोई पागलपन आपके जीवन में अब बाल-बच्चों का क्या होगा! यह स्त्री पागल हो गई। संसार का जो बंधन है, जो कष्ट है, जो पीड़ा है, जो जंजीरें हैं, उन और अगर यह आपकी दृष्टि पत्नी या पति के बाबत है, तो सब को तोड़ देता हो, तो ऐसा पागलपन सौभाग्य है और परमात्मा आप कितनी ही बातें करते हों, आप उपनिषद और वेद पढ़कर से ऐसे पागलपन की प्रार्थना करनी चाहिए। मान नहीं सकते कि ये बातें ज्ञानियों की हैं। आप कितनी ही श्रद्धा । और अगर कोई समझदारी आपकी जिंदगी को तकलीफों से भर दिखाते हों, वह झूठी होगी। क्योंकि भीतर तो आप समझेंगे कि देती हो, और कोई समझदारी आपकी जिंदगी को पीड़ा और तनाव कुछ दिमाग इनका खराब है। कहां देवता! कहां देवियां! यह सब से घेर देती हो, और कोई समझदारी आपकी जिंदगी को कारागृह क्या हो रहा है? बना देती हो, और कोई समझदारी आपको सिवाय दुख और रामकृष्ण बातें कर रहे हैं काली से। घंटों उनकी चर्चा हो रही सिवाय नर्क के कहीं न ले जाती हो, तो परमात्मा से प्रार्थना करनी है। अगर आप देख लेते, तो आप क्या समझते? आपको तो चाहिए कि ऐसी समझदारी से मेरा छुटकारा हो। काली दिखाई नहीं पड़ती। आपको तो सिर्फ रामकृष्ण बातें करते यही मैं मूर्छा के लिए भी कहूंगा। कोई मूर्छा अगर आपके दिखाई पड़ते। जीवन में आनंद की झलक ले आती हो, तो वह मूर्छा चैतन्य से तो आप पागलखाने में देख सकते हैं, लोग बैठे हैं, अकेले बातें ज्यादा कीमती है। और सिर्फ कोई होश आपको निरंतर तोड़ता जाता कर रहे हैं, बिना किसी के। दोनों तरफ से जवाब दे रहे हैं। तो | | हो, तनाव और चिंता से और संताप से भरता हो, तो वह होश स्वभावतः यह खयाल उठेगा कि कुछ विक्षिप्तता है। विक्षिप्तता में | मूर्छा से बदतर है। और असाधारणता में कुछ संबंध मालूम पड़ता है। या फिर हमारी | कसौटी क्या है? कसौटी है आपका अंतिम फल, क्या आप हो व्याख्या की भूल है। | जाते हैं। ऊपर के लक्षण बिलकुल मत देखें। परिणाम क्या होता है! असाधारण व्यक्ति ऐसी चीजों को देख लेते हैं, जो साधारण | अंत में आपके जीवन में कैसे भूल लगते हैं! व्यक्तियों को कभी दिखाई नहीं पड़ सकतीं; और ऐसे अनुभव को | | तो रामकृष्ण के जीवन में जो फूल लगते हैं, वे किसी पागल के उपलब्ध हो जाते हैं, जिसका साधारण व्यक्ति को कभी स्वाद नहीं | | जीवन में नहीं लगते। रामकृष्ण के जीवन से जो सुगंध आती है, वह मिलता। फिर वे ऐसी बातें कहने लगते हैं, जो साधारण व्यक्ति के | किसी मूछित, कोमा में, हिस्टीरिया में पड़ गए व्यक्ति के जीवन समझ के पार पड़ती हैं। फिर उनके जीवन में ऐसी घटनाएं होने लगती से नहीं आती। उसी सुगंध के सहारे हम उन्हें परमहंस कहते हैं। हैं, जो हमारे तर्क, हमारे नियम, हमारी व्यवस्था को तोड़ती हैं। और अगर उस सुगंध की आप फिक्र छोड़ दें, और सिर्फ लक्षण हमारी जिंदगी एक राजपथ है, बंधा हुआ रास्ता है। असाधारण देखें और डाक्टर से जांच करवा लें, तो वे भी मूर्छित हैं, और लोग रास्ते से नीचे उतर जाते हैं; पगडंडियों पर चलने लगते हैं। हिस्टीरिया के बीमार हैं, और उनके इलाज की जरूरत है। और ऐसी खबरें लाने लगते हैं, जिनका हमें कोई भी पता नहीं है, | | दो तरह की चेतना है। एक चेतना जो बाहर के दबाव से पैदा जो हमारे नक्शों में नहीं लिखी हैं, जो हमारी किताबों में नहीं हैं, जो | | होती है—प्रतिक्रिया, रिएक्शन। उस चेतना को कृष्ण कहते हैं, वह हमारे अनुभव में नहीं हैं। पहली बात यही खयाल में आती है कि | | क्षेत्र का ही हिस्सा है, वह छोड़ने योग्य है। एक और चेतना है, जो इस आदमी का दिमाग खराब हो गया। | किसी कारण से पैदा नहीं होती; जो मेरा स्वभाव है, जो मेरा स्वरूप रामकृष्ण भी पागल मालूम पड़ेंगे। रामकृष्ण ही क्यों, रामकृष्ण | | है, जो मेरे भीतर छिपी है, जिसका झरना मैं लेकर ही पैदा हुआ हूं, जैसे जितने लोग हुए हैं दुनिया में कहीं भी, वे सब पागल मालूम | या ज्यादा उचित होगा कहना कि मैं और उसका झरना एक ही चीज पड़ेंगे। लेकिन एक फर्क खयाल रख लेंगे, तो भेद साफ हो जाएगा। | के दो नाम हैं। मैं वह झरना ही हूं। अगर कोई पागलपन आपको शुद्ध कर जाता हो, अगर कोई ___ लेकिन इस झरने का पता तभी चलेगा, जब हम बाहर के आघात पागलपन आपको मौन और शांत और आनंदित कर जाता हो, | से पैदा हुई चेतना से अपने को मुक्त कर लें। नहीं तो हमारा ध्यान अगर कोई पागलपन आपको जीवन के उत्सव से भर जाता हो, निरंतर बाहर चला जाता है और भीतर ध्यान पहुंच ही नहीं पाता। 2269
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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