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________________ ॐ रामकृष्ण की दिव्य बेहोशी सम्मिलित था। मेरे बिना यह जगत भी नहीं बन सकता, क्योंकि मैं | असाधारण हैं; दोनों साधारण नहीं हैं। और पश्चिम की यह मूलभूत इस जगत का हिस्सा हूं। और परमात्मा ने जब यह जगत बनाया, | भ्रांत धारणा है कि साधारण स्वस्थ है। इसलिए साधारण से जो भी तो मैं उसके भीतर मौजूद था। मेरी मौजूदगी अनिवार्य है; क्योंकि हट जाता है, वह अस्वस्थ है। मैं मौजूद हूं। तो रामकृष्ण अस्वस्थ हैं, बीमार हैं, पैथालाजिकल हैं। उनका इस जगत में कुछ भी मिटता नहीं। विनाश असंभव है। एक रेत | | इलाज होना चाहिए। हमने जिनकी पूजा की है, पश्चिम उनका के कण को भी नष्ट नहीं किया जा सकता। वह रहेगा ही। आप | इलाज करना चाहेगा। कुछ भी करो, मिटाओ, तोड़ो, फोड़ो, कुछ भी करो, वह रहेगा; । लेकिन पश्चिम में भी विरोध के स्वर पैदा होने शुरू हो गए हैं। उसके अस्तित्व को मिटाया नहीं जा सकता। जो चीज अस्तित्व में और पश्चिम में भी नए मनोवैज्ञानिकों की एक कतार खड़ी होती जा है, वह शून्य में नहीं जा सकती। | रही है, जो कह रही है कि हमारी समझ में भ्रांति है। और हम बहुत-से तो चेतना कैसे शून्य में जा सकती है। मैं , इसका अर्थ है कि | लोगों को इसलिए पागल करार देते हैं कि हमें पता ही नहीं कि हम मैं था और इसका अर्थ है कि मैं रहूंगा। कोई भी हो रूप, कोई भी| | क्या कर रहे हैं। उनमें बहुत-से लोग असाधारण प्रतिभा के हैं। हो आकार, लेकिन मेरा विनाश असंभव है। विनाश घटता ही नहीं। एक बहुत मजे की बात है कि असाधारण प्रतिभा के लोग जगत में केवल परिवर्तन होता है, विनाश होता ही नहीं। न तो कोई अक्सर पागल हो जाते हैं। इसलिए पागलपन में और असाधारण चीज निर्मित होती है और न कोई चीज विनष्ट होती है। केवल चीजें | प्रतिभा में कोई संबंध मालूम पड़ता है। अगर पिछले पचास वर्षों बदलती हैं, रूपांतरित होती हैं, नए आकार लेती हैं, पुराने आकार | के सभी असाधारण व्यक्तियों की आप खोजबीन करें, तो उनमें से छोड़ देती हैं। लेकिन विनाश असंभव है। पचास प्रतिशत कभी न कभी पागल हो गए। पचास प्रतिशत! और विज्ञान भी स्वीकार करता है कि विनाश संभव नहीं है। धर्म और | | जो उनमें श्रेष्ठतम है, वह जरूर एक बार पागलखाने हो आता है। विज्ञान एक बात में राजी हैं, विनाश असंभव है। निजिस्की या वानगाग या मायकोवस्की, नोबल प्राइज पाने वाले तो रामतीर्थ अगर यह कहते हैं कि मैंने ही बनाया था, तो यह | बहुत-से लोग जिंदगी में कभी न कभी पागल होने के करीब पहुंच वक्तव्य बड़ा अर्थपूर्ण है। यह किसी पागल का वक्तव्य नहीं है। | जाते हैं या पागल हो जाते हैं। क्या कारण होगा? कहीं ऐसा तो नहीं सच तो यह है कि उस आदमी का वक्तव्य है, जो पागलपन के पार | है कि हमारे पागलपन की व्याख्या में कुछ भूल है? चला गया है। और जो अब यह देख सकता है, अनंत श्रृंखला | असाधारण प्रतिभा का आदमी ऐसी चीजें देखने लगता है. जो जीवन की; और जो अब अपने को अलग नहीं मानता है, उस साधारण आदमी को दिखाई नहीं पड़ती। इसलिए साधारण अनंत श्रृंखला का एक हिस्सा मानता है। आदमियों से उसका संबंध टूट जाता है। असाधारण प्रतिभा का • बाहर से देखने पर बहुत बार पागलों के वक्तव्य और संतों के आदमी ऐसे अनुभव से गुजरने लगता है, जो सबका अनुभव नहीं वक्तव्य एक से मालूम पड़ते हैं; भीतर से खोजने पर उनसे ज्यादा है। वह अकेला पड़ जाता है। अगर वह आपसे कहे, तो आप भिन्न वक्तव्य नहीं हो सकते। इसलिए पश्चिम में अगर धर्म की भरोसा नहीं करेंगे। अप्रतिष्ठा होती जा रही है, तो उसमें सबसे बड़ा कारण मनोविज्ञान | | जीसस कहते हैं कि शैतान मेरे पास खड़ा हो गया और मेरे कान की अधूरी खोजें हैं। मनोविज्ञान जो बातें कहता है, वे आधी हैं और में कहने लगा कि तू ऐसा काम कर। मैंने कहा, हट शैतान! आधी होने से खतरनाक हैं। अगर कोई आदमी-आपकी पत्नी, आपका पति आपसे साधारण आदमी बीच में है। साधारण आदमी से जो नीचे गिर | | आकर कहे कि आज रास्ते पर अकेला था; शैतान मेरे पास में आ जाता है, पागल हो जाता है। वह भी एबनार्मल है, वह भी | गया और कान में कहने लगा, ऐसा कर। तो आप फौरन संदिग्ध असाधारण है। साधारण आदमी से जो ऊपर चला जाता है, वह भी | | हो जाएंगे। फोन उठाकर डाक्टर को खबर करेंगे कि कुछ गड़बड़ एबनार्मल है, वह भी असाधारण है। और पश्चिम दोनों को एक ही हो गई है। मान नेता है। साधारण आदमी से नीचे कोई गिर जाए, तो पागल | अगर आपके पति ऐसी खबर दें...। ऋषि कहते हैं, देवताओं हो जाता है; ऊपर कोई उठ जाए, तो महर्षि हो जाता है। दोनों से उनकी बात हो रही है। अगर आपकी पत्नी आपसे कहे कि आज 225
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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