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साधना और समझ ... 365
शास्त्रों का अध्ययन, ज्ञानियों का श्रवण, चिंतन-मनन, साक्षीभाव और समझ क्या पर्याप्त नहीं? अलग से ध्यान क्यों करना? / समझ के बीज को ध्यान की भूमि चाहिए / कृष्णमूर्ति को चालीस साल सुन कर भी समझ पैदा नहीं हुई / समग्र मन से पढ़ना या सुनना भी ध्यान बन सकता है / ध्यान अर्थात निस्तरंग चैतन्य / ध्यान के स्रोत ः प्रार्थना, पूजा, कीर्तन, श्रवण, दर्शन, तंत्र, योग/ तरंगायित चित्त में समझ असंभव / ध्यान पर जोर / पहले एक घंटा तो साध लें / हमारी होशियारी : ध्यान से बचने की / कृष्णमूर्ति के पास अहंकारियों का इकट्ठा होना / जब तक सीखना है, तब तक गुरु की जरूरत है / झुकने में बड़ी तकलीफ होती है / ध्यान के बिना साक्षीभाव संभव नहीं / कृष्णमूर्ति की बुनियादी भूल / कृष्णमूर्ति पर अनेक गुरुओं का अथक श्रम / गुरुओं के विरोध का मनोवैज्ञानिक कारण / कृष्णमूर्ति पर की गई जबर्दस्ती / स्वेच्छा से चलने पर कृष्णमूर्ति को तीन-चार जन्म और लगते / ज्ञानोपलब्धि के पूर्व की मनोदशा से ही अभिव्यक्ति करने की मजबूरी / साधना और गुरुओं का विरोध भी एक विधि है / ध्यान का बूंद-बूंद इकट्ठा करना / आत्मविश्वास और लगन का अध्यात्म में क्या उपयोग है? / अपने पर भरोसा अहंकार है / पुरुषार्थ की अकड़ से अध्यात्म में बाधा / विपरीत यात्राएं-संसार की और अध्यात्म की / महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा-गैर-आध्यात्मिक / मिटना है द्वार / आत्म-अविश्वास भी अहंकार का ही एक रूप / संसार में दौड़ना जरूरी, अध्यात्म में रुकना जरूरी / लगन अर्थात एकाग्रता / राजनीतिज्ञ की अंधी और विक्षिप्त लगन / अध्यात्म ईगो-ट्रिप नहीं है / पूरब में अध्यात्म के सूत्र हैं / पश्चिम में संसार के सूत्र हैं। दोनों अधूरे-अधूरे / अंतर्यात्रा के लिए संसार की व्यर्थता का बोध जरूरी / अपने को शरीर से पृथक साक्षी जानने वाले व्यक्ति को क्या शारीरिक दुख और मानसिक पीड़ाएं नहीं होती हैं? / कष्ट होगा-दुख नहीं / पीड़ा से तादात्म्य होने पर दुख / ज्ञानी अत्यंत संवेदनशील है / मूर्छा के कारण कष्ट का अपूर्ण बोध / कष्ट से बचने की तरकीब-रोना-चिल्लाना / दूसरी तरकीब-शरीर को जड़ बना लेना / कांटे पर लेटने का अभ्यास / अध्यात्म का धोखा-शरीर की जड़ता से/ खड़े श्री बाबा / आकाश सदा कुंवारा है / आत्मा आकाश की तरह है / लकीर खींचना-पत्थर पर, पानी पर, आकाश पर / परमात्मा है-अंतआकाश / सुख-दुख पाना-तादात्म्य के कारण / सुख-दुख भ्रांतियां हैं / अध्यात्म-भीतर छिपे अस्पर्शित चैतन्य की खोज /मन का चाक और चैतन्य की कील/चेतना कभी अशुद्ध नहीं हुई है / समस्त अभिनयों से अछूता / परमात्मा अनादि और गुणातीत होने से लिपायमान नहीं होता / बाहर कर्म-भीतर अकर्ता / हमारी मान्यताएं-हमारा आत्म-सम्मोहन हैं / धारणाओं के कुछ चमत्कारिक परिणाम / आत्म-सम्मोहन को तोड़ना / शुद्ध चैतन्य पर वापसी।
अकस्मात विस्फोट की पूर्व-तैयारी ... 383
जीवन भर जिसने पाप किया हो, वह यदि मरते समय दूसरे जन्म में बुद्ध पुरुष बनने की चाह करे, तो क्या उसकी चाह पूरी हो सकती है? / मृत्यु-क्षण की अंतिम चाह, दसरे जन्म की प्रथम घटना बनती है / रात्रि नींद के पहले का अंतिम विचार ही सबह का पहला विचार / का अंतिम विचार है-पूरे जीवन का निचोड़ / धोखा संभव नहीं / वासना का बीज / जवानी में पाप और बुढ़ापे में धर्म / धर्म के लिए, पुण्य के लिए भी शक्ति चाहिए / जिंदगी मूर्छा में गुजारी, तो मरते समय होश रखना असंभव / मृत्यु बड़ा से बड़ा आपरेशन है / मृत्यु का एनेस्थेसिया / गर्भ में भी बेहोशी जरूरी / जन्म के समय बेहोशी / छोटी-छोटी बातों पर भी हमारी मालकियत नहीं / मृत्यु के पहले ध्यान में मरना सीखना / बिना एनेस्थेसिया के काशी नरेश का आपरेशन / बुद्धत्व की तैयारी अभी से करें-मृत्यु-क्षण के लिए मत टालें / यदि सभी मनुष्य अकर्ता बन जाएं, तो जीवन में क्या रस बाकी रह जाएगा? / कर्ताभाव से रस आ रहा हो, तो धर्म की चिंता छोड़ें / भविष्य की आशा में रस / साक्षी होते ही भविष्य का खो जाना / संसार है रोग, धर्म है चिकित्सा / धर्म के बिना दुख से मुक्ति असंभव / दुख का मूल कारणः कर्ता भाव, अहंकार / अतीत स्मृति है और भविष्य कल्पना /