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की शिक्षाएं साधारण आदमी के लिए / कृष्ण की शिक्षाएं प्रथम कोटि के आदमी के लिए / कृष्ण की बातें शिखर पर व जटिल हैं / चोरी करना बुरा है, क्योंकि धन में मूल्य है / कृष्ण के लिए धन और मिट्टी एक / धन और स्त्री की निंदा के पीछे छिपी हुई चाह और ईर्ष्या / आत्मा अमर है, तो हिंसा पाप कैसे? / हिंसा संभव नहीं, तो अहिंसा कैसे करिएगा? / कृष्ण का संदेश आत्यंतिक है / धन निर्मूल्य है तो चोरी और दान में भी कोई मूल्य न रह जाएगा / जैन और बौद्धों द्वारा कृष्ण को नर्क में डालना / कृष्ण की बातें आचरण-विरोधी, समाज-विरोधी, अहिंसा-विरोधी लगती हैं / कृष्ण ने सत्य को जैसा का तैसा कह दिया है / दुख का कारण व्यक्ति स्वयं है / हिंसा-अहिंसा के मामले में गीता से अड़चन / गीता से गांधी को भी तकलीफ / गांधी की तरकीबें समझाने की / महावीर को दुखी नहीं किया जा सकता / एकांत के प्रयोग में बिना कारण सुख-दुख का घटना / कर्ता-भाव-एक मात्र अज्ञान है / कुछ न-करने में, साक्षी पुरुष में ठहर जाने के बाद भी वर्तन कैसे जारी रह सकता है? / संबोधि के बाद भी वर्तन का जारी रहना-पुराने शेष कर्मों की त्वरा के कारण / पैंतीस वर्ष के बाद शरीर उतार पर / पैंतीस वर्ष से कम उम्र में संबोधि घटने से अल्पायु में मृत्यु / दीर्घायुत्व के लिए विशेष व्यवस्था / ज्ञानियों की बीमारियों का कारण / रामकृष्ण और रमण को कैंसर / चाह-शून्य होने के बाद कर्म-बंध नहीं बनते / व्यक्ति जैसा भाव करता है, वैसा बन जाता है, तो क्या मुक्त होने का भाव करने से वह मुक्त भी हो सकता है? / भाव-शून्य होने पर ही मुक्ति संभव / संसार है-भाव का विस्तार / जो है-उससे राजी न होना / बिकमिंग और बीईंग / भाव की यात्रा की समाप्ति / मोक्ष आपका स्वभाव है / कुछ और–अन्य होने की दौड़ / अचेष्टित सहज स्वभाव / पुरुष मात्र-द्रष्टा है-न कर्ता है, न भोक्ता है / कर्म-मात्र प्रकृति में है / बुद्धि को सूक्ष्म और शुद्ध करने के प्रयोग / स्थूल विषयों से बंधी स्थूल बुद्धि / बुद्धि का विषय के अनुरूप हो जाना / आंतरिक प्रकाश व आंतरिक नाद का अनुभव / कम प्रकाश में देखना, सूक्ष्म आवाजें सुनना / प्राचीन भारतीय गुरुकुलों में विद्यार्थी की संवेदनशीलता को बढ़ाने पर जोर / आधुनिक शिक्षा स्थूल है / विद्यार्थियों का उपद्रव-क्योंकि स्मृति है, बुद्धिमत्ता नहीं / अंतर्जगत को पकड़ने के लिए सूक्ष्मता और शुद्धि आवश्यक / सूक्ष्म और शुद्ध बुद्धि को हृदय पर लगाना भक्ति-योग है / उसे मस्तिष्क में, सहस्रार में लगाना ज्ञान-योग है / उसे कर्म में लगाना कर्म-योग है / मीरा और चैतन्य भक्त हैं / बुद्ध और महावीर ज्ञानी हैं / मोहम्मद और जीसस कर्म-योगी हैं / ईसाई-धर्म का केंद्र-सेवा / हिंदू संन्यासी समाधि में डूबता है / शुद्ध बुद्धि से परमात्मा दिखाई पड़ता है और अशुद्ध बुद्धि से पदार्थ / चार मार्ग-ज्ञान, भक्ति, कर्म और सदगुरु / उपासना अर्थात सदगुरु के पास बैठना / अहंकार छोड़कर ही गुरु के पास बैठना संभव / शिष्यत्व की पात्रता / पूर्व-धारणाओं के साथ सुनना असंभव / पहले चुप बैठना सीखो / द्रष्टा क्षेत्रज्ञ है-और दृश्य क्षेत्र है / गीता में कृष्ण एक ही बात को बार-बार क्यों दोहराते हैं? / प्रज्ञा के निखार के साथ-साथ एक बात के अनेक अर्थ प्रकट / एक ही बात को अनेक-अनेक ढंग से समझाना / बार-बार चोट करना / कृष्ण का मूल स्वर-क्षेत्र से क्षेत्रज्ञ पर वापसी।
कौन है आंख वाला ... 349
मानसिक रूप से पीड़ित, विकारग्रस्त और पागल लोग ही अध्यात्म की ओर क्यों झुकते हैं? / सभी मनुष्य पीड़ित और दुखी हैं / अध्यात्म से गुजर कर ही शांति व आनंद संभव / मनुष्य एक बीज है / बुद्धिमानी की एक ही पहचान-आनंद को उपलब्ध हो जाना / इलाज की खोज करना सौभाग्य है । बीमारी को छिपाना आत्मघाती है / मन का स्वभाव है पागल होना / मन से मुक्त होना स्वास्थ्य है / मन की विक्षिप्तता की जांचः एक प्रयोग / मन में जो भी चलता हो, उसे जोर से बोलना / अध्यात्म है-पागलपन से छुटकारे की विधि / जब तक मन मालिक, तब तक आप पागल / यदि भला-बुरा सब परमात्मा की मर्जी से होता है, तो साधना का क्या प्रयोजन रह जाता है? / यह समर्पण का परम सूत्र है / यह अहंकार विसर्जन की साधना-विधि है / अहंकार के गिरते ही बुरा होना बंद / अहंकार के रहते भलाई असंभव / भाग्य-हारे मन की सांत्वना नहीं है / भाग्य एक विधि है, एक कीमिया है / पश्चिम में बढ़ती हुई चिंता और तनाव-कर्ताभाव की अधिकता के कारण / पुरुषार्थ केंद्रित पश्चिम / भाग्य केंद्रित पूरब / बर्टेड रसेल और आइंस्टीन की चिंता / चिंता का मूल आधार-अहंकार, अस्मिता, मैं / सुख हो या दुख, सफलता हो या असफलता-कहनाः जो परमात्मा की मर्जी / दृष्टि अर्थात क्षण-भंगुर में छिपे अविनाशी को देख पाने की क्षमता / परिवर्तनशील को शाश्वत बनाने की हमारी चेष्टा / ध्यान के लिए समय कैसे निकालें/ आत्मा खो कर वस्तुएं इकट्ठी कर लेना / कर्ता परमात्मा या प्रकृति है, तो आप अकर्ता हो गए / साक्षी न कर्ता है, न भोक्ता / भीतर छिपे साक्षी को खोदना / अंधे को प्रकाश के बारे में समझाना व्यर्थ / परमात्मा को, शाश्वत को देखने के लिए भी आंख चाहिए।