________________
है, लेकिन प्रकृति और पुरुष सदा हैं / प्रकृति अर्थात मूल उदगम / घटनाएं घटती हैं प्रकृति में, भोग की और मुक्ति की कल्पना घटती है पुरुष में / सुख-दुख, सुंदर - असुंदर की भावनाओं का हेतु पुरुष है / सौंदर्य और कुरूपता के बदलते माप दंड / कैक्टस का प्रेम / सुख-दुख सब मेरे ही भावों का फैलाव है / शुद्ध पुरुष और शुद्ध प्रकृति दोनों सुख-दुख रहित हैं / पुरुष का नाटक: ' प्रकृति पर आरोपण / प्रकृति का नगर और उसके बीच का निवासी है पुरुष / पुरुष स्वभावतः निर्दोष है / प्रकृति पर पुरुष को आरोपित न होने देना / आरोपण है बंधन और आरोपण का अभाव है मुक्ति ।
है
8
गीता में समस्त मार्ग हैं ... 311
कृष्ण और अर्जुन के बीच क्या गुरु-शिष्य का संबंध है? फिर कृष्ण अर्जुन से गैर-जरूरी मार्गों की बात क्यों किए चले जाते हैं? / कृष्ण समस्त संभव मार्ग की बात कर रहे हैं / बुद्ध, महावीर, मोहम्मद – एक मार्ग की बात करते हैं / अनेक मार्गों की जानकारी स्वयं के मार्ग के चुनाव में उपयोगी / अर्जुन माध्यम से सारी मनुष्यता के लिए मार्ग देना / बाहर से मित्र - भीतर से गुरु-शिष्य / अर्जुन शिष्यत्व के प्रति अचेतन है / अर्जुन के वैराग्य के पीछे छिपा हुआ मोह / अर्जुन का वैराग्य सच्चा होता, तो कृष्ण अर्जुन को न रोकते / झूठा संन्यास - हार, हानि व असफलता के कारण / प्रश्नों के बहाने छिपी संभावनाओं को खोलना / अर्जुन का खुलना और कृष्ण का प्रकट होना / अर्जुन को चुनाव का मौका देना / अलग-अलग सभी मार्गों को कृष्ण परम श्रेष्ठ कहते हैं / प्रत्येक मार्ग का चरम शिखर उदघाटित करना / व्याख्याकारों का गीता के साथ अन्याय / शंकर द्वारा पूरी गीता पर ज्ञान को थोपना / रामानुज द्वारा भक्ति को पूरी गीता में श्रेष्ठ बताना / तिलक द्वारा पूरी गीता पर कर्म को आरोपित करना / गीता की अन्य टीकाओं की तुलना में आपकी व्याख्या कैसे भिन्न है ? / कुछ भी गीता पर आरोपित नहीं करना है / मैं गीता के साथ बहूंगा / कृष्ण की तरह मैं भी बड़ा विरोधाभासी लगूंगा / आपको जो मार्ग ठीक लगे, उस पर चल पड़ना / तालमेल बिठालने की कोशिश मत करना / कृष्ण द्वारा प्रत्येक मार्ग को उसकी शुद्धता में प्रस्तावित करना / शिष्य कैसे पहचानेगा गुरु को ? / गुरु ही चुनता है शिष्य को / अर्जुन का मनोविश्लेषण / आधुनिक मनोविश्लेषण की सीमाएं / भारतीय मनोविश्लेषण में गुरु बोलता है, शिष्य सुनता है / मरीज शब्द से हानि / कीर्तन में नाचती स्त्रियों के स्तन पर ही नजर जाने का अर्थ ? / बचपन से स्तनपान पूरा न हो सक़ा / दूध पीने की बोतल चूसने से लाभ / एक मार्ग पर सिद्ध होने के बाद भी रामकृष्ण परमहंस कैसे अन्य मार्गों की साधना कर सके ? / सिद्धावस्था के एक कदम पहले रुक जाना / ज्ञान और परम ज्ञान / परम ज्ञान से वापसी असंभव / निर्वाण और महानिर्वाण / संसार प्रक्षेपण है- हमारे भावों और विचारों का / जैसी वासना – वैसा जीवन / वासना के अनुकूल इंद्रियां / जैसी वासना - वैसा ही गर्भ चुनना / मांगों के पूरे हो जाने से ही हम दुखी हैं / तादात्म्य के अनुसार चेतना का रूप बदलना / ध्यान - ताकि लाटरी का नंबर पता चल जाए / परमात्मा से भी संसार मांगना / पुरुष के पृथक होने के बोध से जीवन एक अभिनय मात्र / ध्यान अर्थात परदे के पीछे जाने की कला / पुरुष हर हालत में स्वतंत्र है / कृष्ण बड़े असंगत और जटिल लगते हैं / सभी वर्तन के बावजूद पुरुष अछूता / कृष्ण बेबूझ हैं, क्योंकि क्षण-सत्य में जीते हैं / कृष्ण का अप्रतिबद्ध पल-पल जीना / जिंदगी एक नाटक है, तो चिंता किस बात की ? / आचरण-अनाचरण अभेद / बुद्ध और महावीर का संगत और व्यवस्थित जीवन / कृष्ण की सहज असंगतता / प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय / वासना के साथ सही-गलत का विसर्जन / अचाह की नीति - अतीत अवस्था / गीता का संदेश अति-नैतिक है / नीति-अनीति का अतिक्रमण - पुरुष - प्रकृति - पृथकता से ।
9
पुरुष में थिरता के चार मार्ग ... 331
बुद्ध अहिंसा और नीति-नियम सिखाते हैं / किंतु कृष्ण हिंसा और अनीति सिखाते हैं, फिर भी उन्हें भगवान कहना क्या उचित है ? / बुद्ध, महावीर