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सत्य है-केवल वर्तमान / वर्तमान के क्षण में मन नहीं हो सकता /ध्यान का गहनतम सूत्रः वर्तमान में होना / वर्तमान में आनंद की वर्षा / आशा में धोखा है / वासना है भविष्य की दौड़ / वर्तमान है द्वार-अस्तित्व का / बुद्ध की मुसीबत—कि उन्हें सब उपलब्ध था / बुद्ध का भविष्य गिर गया / संसार की दौड़ छटी, तो धर्म की दौड़ शुरू हो गई / भविष्य में मोक्ष पाने की वासना / महल व्यर्थ हुए थे, अब मोक्ष की खोज भी व्यर्थ हो गई / चाह गिरी, तो प्रयास भी गिर गया / साक्षी मात्र रह गया / रुकते ही स्वयं मंजिल हो गए / बिना साधना के क्या अकस्मात आत्म-साक्षात्कार हो सकता है? / पहले प्रयास-फिर अप्रयास / पहले करना-फिर न-करना / पूरा दौड़ कर ही पूरा रुकना संभव / कड़ा श्रम-गहरी नींद / आत्म-साक्षात्कार तो अकस्मात ही होता है / फिर भी साधना तुम्हें निखारती है / अकस्मात विस्फोट के पहले एक लंबी यात्रा है / सब कुछ एक ही चैतन्य से स्पंदित / दीए भिन्न-भिन्न, किंतु प्रकाश एक / विषयों पर हमारा ध्यान है-जानने वाले पर नहीं / साक्षी का विस्मरण संसार है / दृश्य संसार है-और द्रष्टा परमात्मा / शरीर में छिपा निराकार / द्रष्टा को देखना बहुत मुश्किल है / स्वयं को जानने की कला है। क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ में भेद करना / शरीर भी दृश्य है-और मन भी / निर्विषय चेतना समाधि है / बौद्धिक ज्ञान अनुभव नहीं है / अनुभव के पहले समझ में आ जाना खतरनाक है / गीता को कंठस्थ किए लोग / अज्ञानी पंडित से अच्छी हालत में है। अज्ञानी, पंडित और अनुभवी / अनुभव के बिना सभी शास्त्र व्यर्थ / स्वानुभव के पूर्व कृष्ण से मिलना संभव नहीं।