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ॐ रामकृष्ण की दिव्य बेहोशी 0
में लीन और थिर हो गई।
हम चिकित्सक के पास जाएंगे, तो वह भी कहेगा, यह भी हमारे लिए तो रामकृष्ण मूछित ही हो गए। और अगर पश्चिम हिस्टीरिया का एक प्रकार है। लेकिन भीतर से बड़ा फर्क है। क्योंकि के मनोवैज्ञानिकों से पूछे, तो वे कहेंगे, हिस्टीरिकल है; यह घटना हिस्टीरिया का मरीज जब वापस लौटता है अपनी मूर्छा से, तो वही हिस्टीरिया की है। क्योंकि पश्चिम के मनोविज्ञान को अभी भी उस | का वही होता है जो मूर्छा के पहले था। रामकृष्ण जब अपनी मूर्छा दूसरी चेतना का कोई पता नहीं है।
से वापस लौटते हैं, तो वही नहीं होते जो मूर्छा के पहले थे। वह अगर रामकृष्ण पश्चिम में पैदा होते, तो उन्हें पागलखाने ले आदमी खो गया। जाया गया होता। और जरूर मनसविदों ने उनकी चिकित्सा की अगर वह आदमी क्रोधी था, तो अब यह आदमी क्रोधी नहीं है। होती और जबरदस्ती होश में लाने के प्रयास किए जाते। अगर वह आदमी अशांत था, तो अब यह आदमी अशांत नहीं है। एक्टीवायजर दिए जाते, जिनसे कि वे ज्यादा सक्रिय हो जाएं। अगर वह आदमी दुखी था, तो अब यह आदमी दुखी नहीं है। अब इंजेक्शन लगाए जाते, शरीर में हजार तरह की कोशिश की जाती, यह परम आनंदित है। ताकि चेतना वापस लौट आए। क्योंकि पश्चिम का मनोविज्ञान हिस्टीरिया का मरीज तो हिस्टीरिया की बेहोशी के बाद वैसा का बाहर की चेतना को ही चेतना समझता है। बाहर की चेतना खो गई, । | वैसा ही होता है, जैसा पहले था। शायद और भी विकृत हो जाता तो आदमी मूर्छित है, मरने के करीब है।
| है। बीमारी उसे और भी तोड़ देती है। लेकिन समाधि में गया व्यक्ति रोमां रोला ने लिखा है कि सौभाग्य की बात है कि रामकृष्ण पूरब | नया होकर वापस लौटता है; पुनरुज्जीवित हो जाता है। उसके में पैदा हुए, अगर पश्चिम में पैदा होते, तो हम उनका इलाज करके जीवन में नई हवा और नई सुगंध और नया आनंद फैल जाता है। उनको ठीक कर लेते। ठीक कर लेने का मतलब कि उन्हें हम । पश्चिम में वे लक्षण से सोचते हैं: हम परिणाम से सोचते हैं। साधारण आदमी बना लेते, जैसे आदमी सब तरफ हैं। और वह जो | हम कहते हैं कि समाधि के बाद जो घटित होता है, वही तय करने परम अनुभूति थी, उसको पश्चिम में कोई भी पहचान न पाता। | वाली बात है कि समाधि समाधि थी या मूर्छा थी।
पश्चिम का एक बहुत बड़ा विचारक और मनोवैज्ञानिक है, रामकृष्ण सोने के होकर वापस आते। और जिस मुर्छा से आर.डी.लैंग। आर.डी.लैंग का कहना है कि पश्चिम में जितने कचरा जल जाता हो और सोना निखर आता हो, उसको मूर्छा लोग आज पागल हैं, वे सभी पागल नहीं हैं; उनमें कुछ तो ऐसे हैं, कहना उचित नहीं है। वह जो रामकृष्ण का वासनाग्रस्त व्यक्तित्व जो किसी पुराने जमाने में संत हो सकते थे। लेकिन वे पागलखानों था, वह समाप्त हो जाता है; और एक अभूतपूर्व, एक परम में पड़े हैं। क्योंकि पश्चिम की समझ भीतर की चेतना को स्वीकार ज्योतिर्मय व्यक्तित्व का जन्म होता है। तो जिसमा से ज्योतिर्मय नहीं करती। तो बाहर की चेतना खो गई, कि आदमी विक्षिप्त मान व्यक्तित्व का जन्म होता हो, उसको हम बीमारी न कहेंगे; उसको लिया जाता है। .
हम परम सौभाग्य कहेंगे। परिणाम से निर्भर होगा। ___ हम रामकृष्ण को विमुक्त मानते हैं। फर्क क्या है? हिस्टीरिया रामकृष्ण की बेहोशी बेहोशी नहीं थी। क्योंकि अगर वह बेहोशी
और रामकृष्ण की मूर्छा में फर्क क्या है? जहां तक बाहरी लक्षणों | होती, तो रामकृष्ण का वह जो दिव्य रूप प्रकट हुआ, वह प्रकट का संबंध है, एक से हैं। रामकृष्ण के मुंह से भी फसूकर गिरने | नहीं हो सकता था। बेहोशी से दिव्यता पैदा नहीं होती। दिव्यता तो लगता था; हाथ-पैर लकड़ी की तरह जकड़ जाते थे; मुर्दे की भांति | | परम चैतन्य से ही पैदा होती है; परम होश से ही पैदा होती है। पर वे पड़ जाते थे। हाथ-पैर में पहले कंपन आता था, जैसे हिस्टीरिया हमारे लिए देखने पर तो रामकृष्ण बेहोश हैं। लेकिन भीतर वे परम के मरीज को आता है। और इसके बाद वे जड़वत हो जाते थे। सारा होश में हैं। होश खो जाता था। अगर उस समय हम उनके पैर को भी काट दें, | ऐसा समझें कि द्वार-दरवाजे सब बंद हो गए, जहां से किरणें तो उनको पता नहीं चलेगा। यही तो हिस्टीरिया के मरीज को भी बाहर आती थीं होश की। इंद्रियां सब शांत हो गईं और भीतर का घटित होता है। कोमा में पड़ जाता है, बेहोशी में पड़ जाता है। | दीया भीतर ही जल रहा है; उसकी कोई किरण बाहर नहीं आती। लेकिन फर्क क्या है?
| इसलिए हम पहचान नहीं पाते। लेकिन यह बेहोशी बेहोशी नहीं है। इस घटना में ऊपर से देखने में तो कोई फर्क नहीं है। और अगर | अगर फिर भी कोई जिद्द करना चाहे कि यह बेहोशी ही है, तो
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