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________________ गीता दर्शन भाग-60 सच तो यह है कि अगर हम ठीक से समझें, तो हमारा प्रेम वैसा । । इसलिए, आपको खयाल में है, अगर आप एक दस दिन के ही है, जैसे श्वास है। आप श्वास लेते ही चले जाएं और छोड़ें न, लिए काश्मीर चले जाते हैं, तो आपको अच्छा लगता है। क्यों? तो मर जाएंगे। छोड़नी भी पड़ेगी श्वास, तभी आप ले सकेंगे। । | क्योंकि काश्मीर में सब नया है और आपको ज्यादा चेतन होना खाना और भूख! भूख लगेगी, तो भोजन करेंगे। भूख नहीं | | पड़ता है। बंबई में जिस रास्ते से आप रोज निकलते हैं, वहां लगेगी, तो भोजन कैसे करेंगे? तो भूख जरूरी है भोजन के लिए। | जिंदगीभर से निकल रहे हैं, वहां आपको चेतन होने की जरूरत ही फिर भोजन जरूरी है कि अगले दिन की भूख लग सके, इसके | नहीं है। वहां से आप मूर्छित, सोए हुए निकल जाते हैं। वृक्ष होगा, लायक आप बच सकें। नहीं तो बचेंगे कै होगा। वह आप देखते नहीं। पास से लोग निकल रहे हैं, वह आप बड़े मजे की बात है, भोजन करना हो तो भूख जरूरी है। और | | देखते नहीं। भूख लगानी हो तो भोजन जरूरी है। ठीक वैसे ही अगर प्रेम करना | लेकिन आप दस दिन के लिए छुट्टी पर काश्मीर जाते हैं। सब हो तो बीच-बीच में घृणा का वक्त चाहिए, तब भूख लगती है। फिर | नया है। नए पदार्थ, नए आब्जेक्ट, नए विषय, आपको चेतन होना प्रेम कर लेते हैं। श्वास बाहर निकल गई, फिर भीतर ले लेते हैं। | पड़ता है; जरा रीढ़ सीधी करके, आंख खोलकर गौर से देखना. हमारी सब चीजें विपरीत से जुड़ी हैं। हमारे प्राण में भी मौत छिपी पड़ता है। लेकिन एक-दो दिन बाद फिर आप वैसे ही ढीले पड़ है। हमारे भोजन में भी भूख छिपी है। हमारे प्रेम में घृणा है। हमारे | | जाएंगे। क्योंकि वे ही चीजें फिर बार-बार क्या देखनी! . जन्म में मृत्यु जुड़ी है। तो काश्मीर में जो आदमी रह रहा है. डल झील में जो आपकी जहां विपरीत के बिना कोई अस्तित्व नहीं होता, वहां विकार है।। नाव को चलाएगा, वह उतना ही ऊबा हुआ है डल झील से, जितना और उस अस्तित्व को हम विकाररहित कहते हैं, जहां विपरीत की | | आप बंबई से ऊबे हुए हैं। वह भी बड़ी योजनाएं बना रहा है कि कोई भी जरूरत नहीं है; जहां कोई चीज अपने में ही हो सकती है, कब मौका हाथ लगे और बंबई जाकर छुट्टियों में घूम आए। उसको विपरीत की कोई आवश्यकता नहीं है। बिना विपरीत के जहां कुछ भी बंबई में इतना ही मजा आएगा, जितना आपको डल झील पर होता है, वहां कुंवारापन, वहां पवित्रता, वहां निर्दोष घटना घटती है। आ रहा है। और दस दिन आप भी डल झील पर रह गए, तो आप इसलिए हम क्राइस्ट के प्रेम को, कृष्ण के प्रेम को पवित्र कह | | वैसे ही डल हो जाएंगे जैसे बंबई में थे। कोई फर्क नहीं रहेगा। सकते हैं। क्योंकि उसमें घृणा नहीं है; उसमें घृणा का कोई तत्व नहीं चेतनता खो जाएगी। इसलिए चेतना के लिए हमें रोज नई चीजों की जरूरत पड़ती है; लेकिन अगर आपको कृष्ण प्रेम करने को मिल जाएं, तो आपको | | नई चीजों की रोज जरूरत पड़ती है। वही भोजन रोज करने पर उनके प्रेम में मजा नहीं आएगा। क्योंकि आपको लगेगा ही नहीं, | चेतना खो जाती है, बेहोशी आ जाती है, मूर्छा हो जाती है। पक्का पता ही नहीं चलेगा कि यह आदमी प्रेम करता भी है कि वही पत्नी रोज-रोज देखकर मूर्छा आने लगती है; तो फिल्म नहीं। क्योंकि वह घृणा वाला हिस्सा मौजूद नहीं है। वह विपरीत | जाकर एक फिल्म स्टार को देख आते हैं। रास्ते पर स्त्रियों को मौजूद नहीं है। तो आपको पता भी नहीं चलेगा। झांककर देख लेते हैं। लोग नंगी तस्वीरें देखते रहते हैं बैठकर एकांत __ अगर बुद्ध आपको प्रेम करें, तो आपको कोई रस नहीं आएगा | | में। उन पर ध्यान करते रहते हैं। उससे थोड़ी चेतनता आ जाती है, ज्यादा। क्योंकि बुद्ध का प्रेम बहुत ठंडा मालूम पड़ेगा; उसमें कोई | | थोड़ा एक्साइटमेंट आता है। लौटकर घर की पत्नी भी थोड़ी-सी नई गरमी नहीं दिखाई पड़ेगी। वह गरमी तो घृणा से आती है। गरमी | | मालूम पड़ती है, थोड़ी आंख की धूल गिर गई होती है। विपरीत से आती है। गरमी कलह से आती है। गरमी संघर्षण से | नया विषय चाहिए। अगर आपको सभी विषय पुराने मिल जाएं, आती है। वह संघर्षण वहां नहीं है। | और वहां कुछ भी नया न घटित होता हो, तो आप बेहोश हो ___ इस बात को खयाल में ले लेंगे कि विपरीत की मौजूदगी जिसके | | जाएंगे, आप मूर्छित हो जाएंगे। लिए जरूरी है, वह विकार है। इसलिए कृष्ण चेतनता को भी विकार | इस पर पश्चिम में बहुत प्रयोग होते हैं। इस प्रयोग को वे सेंस कहते हैं। क्योंकि उसके लिए कोई चाहिए दूसरा, उसके बिना डिप्राइवेशन कहते हैं। एक आदमी को एक ऐसी जगह बंद कर देते चेतना नहीं हो सकती। हैं, जहां कोई भी घटना न घटती हो। स्वर-शून्य, साउंड-प्रूफ,
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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