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क्षेत्रज्ञ अर्थात निर्विषय, निर्विकार चैतन्य -
पर नहीं पहुंचे। अगर उस किनारे पर पहुंच गए हों, तो आप कहेंगे | जो अपने विपरीत के बिना नहीं हो सकता, वह विकारग्रस्त है। कि ठीक है। अब नाव की क्या जरूरत है! कोई भी ले जाए। क्योंकि जो विपरीत के बिना नहीं हो सकता, उसमें विपरीत मौजूद
अगर आप दवा की बोतल जोर से पकड़ते हों और कहते हों, मैं | स्वस्थ तो हो गया, लेकिन अगर द्रवा मुझसे छीनी गई, तो मैं फिर समझिए, आप किसी को प्रेम करते हैं। आपके प्रेम में, जिसको बीमार हो जाऊंगा, तो समझना चाहिए कि अभी आप बीमार ही हैं। | आप प्रेम करते हैं, उसके प्रति घृणा भी है या नहीं, इसकी जरा खोज और बीमारी ने सिर्फ एक नया रूप ले लिया। अब बीमारी का नाम | करें। अगर घृणा है, तो यह प्रेम विकारग्रस्त है। और अगर घृणा औषधि है।
नहीं है, तो यह प्रेम विकार के बाहर हो जाएगा। कई लोग बीमारी से छूट जाते हैं, डाक्टरों से जकड़ जाते हैं। कई लेकिन फ्रायड कहता है, हमारे सभी प्रेम में घृणा है। जिसको लोग संसार छोड़ते हैं, संन्यास से जकड़ जाते हैं। कई लोग पत्नी हम प्रेम करते हैं, उसी को घृणा भी करते हैं। इसलिए ऐसा प्रेमी को छोड़ते हैं, पति को छोड़ते हैं, फिर गुरु से पकड़ जाते हैं। लेकिन | खोजना कठिन है जो कभी अपनी प्रेयसी के मरने की बात न सोचता पकड़ नहीं जाती। कहीं न कहीं पकड़ जारी रहती है। | हो। ऐसी प्रेयसी खोजनी कठिन है जो कभी सपना न देखती हो कि
जब सभी पकड़ चली जाती है, तभी परमात्मा उपलब्ध होता है। | उसका प्रेमी मर गया, मार डाला गया। हालांकि सपना देखकर जब तक हम कुछ भी पकड़ते हैं, तब तक हम अपने और उसके | सुबह बहुत रोती है कि बहुत बुरा सपना देखा। लेकिन सपना बीच फासला पैदा किए हुए हैं।
आपका ही है, किसी और का नहीं है। देखा, तो उसका मतलब है तो कृष्ण कहते हैं, न तो चेतनता, न धृति। तुम्हारी धृति भी क्षेत्र | कि भीतर चाह है। है। तुम्हारा ध्यान, तुम्हारी धारणा, तुम्हारा योग, सभी क्षेत्र है। __ आप जिसको प्रेम करते हैं, अगर थोड़ी समझ का उपयोग करेंगे,
बड़ी क्रांतिकारी बात है। लेकिन हम गीता पढ़ते रहते हैं, हमें | तो पाएंगे, आपके मन में उसी के प्रति घृणा भी है। इसीलिए तो कभी खयाल नहीं आता कि कोई क्रांति छिपी होगी यहां। हम पढ़ | सुबह प्रेम करते हैं, दोपहर लड़ते हैं। सांझ प्रेम करते हैं, सुबह फिर जाते हैं मुर्दे की तरह। हमें खयाल में भी नहीं आता कि कृष्ण क्या कलह करते हैं। कह रहे हैं।
ऐसे प्रेमी खोजना कठिन हैं जो कलह न करते हों। ऐसे ___ अगर पश्चिम का मनोविज्ञान भारतीय पढ़ते हैं, तो उनको लगता पति-पत्नी खोजने कठिन हैं जिनमें झगड़ा न होता हो। और अगर है कि वे गलत बात कह रहे हैं। चेतना कैसे वस्तुओं से बंध सकती पति-पत्नी में झगड़ा न होता हो, तो पति-पत्नी दोनों को शक हो है? अगर चेतना वस्तुओं से बंधी है, तो फिर ध्यान कैसे होगा? जाएगा कि लगता है, प्रेम विदा हो गया। लेकिन कृष्ण खुद कह रहे हैं कि चेतनता भी शरीर का ही हिस्सा भारत के गांव में तो स्त्रियां यह मानती ही हैं कि जिस दिन पति है। इसके पार एक और ही तरह का चैतन्य है, जो किसी पर निर्भर मार-पीट बंद कर देता है, वे समझ लेती हैं, वह किसी और स्त्री में नहीं है; अनकंडीशनल, बेशर्त, अकारण। लेकिन उसे पाने के लिए | उत्सुक हो गया है। साफ ही है, जाहिर ही यह बात है कि अब इस चेतनता को भी छोड़ देना पड़ता है।
उसका कोई रस नहीं रहा। इतना भी रस नहीं रहा कि झगड़ा करे। परम गुरु के पास पहुंचना हो, तो गुरु को भी छोड़ देना पड़ता | इतनी उदासीनता हो गई है। है। जहां सब साधन छूट जाते हैं, वहीं साध्य है।
पति-पत्नी जब तक झगड़ते रहते हैं, तभी तक आप समझना कि ये सभी पंच महाभूत, यह शरीर, अहंकार, मन, इंद्रियां, इंद्रियों प्रेम है। जिस दिन झगड़ा बंद, तो आप यह मत समझना कि प्रेम के विषय, रस, रूप, चेतनता, धृति, ये सभी विकार सहित। | इतनी ऊंचाई पर पहुंच गया है। इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंचता। बात
इन सब में विकार है। ये सभी दूषित हैं। इनमें कुछ भी कुंवारा | ही खतम हो गई। अब झगड़ा करने में भी कोई रस नहीं है। अब नहीं है। क्यों? विकार का एक ही अर्थ है गहन अध्यात्म में, जो ठीक है, एक-दूसरे को सह लेते हैं। अब ठीक है, एक-दूसरे से अपने विपरीत के बिना नहीं हो सकता, वह विकारग्रस्त है। इस बचकर निकल जाते हैं। अब इतना भी मूल्य नहीं है एक-दूसरे का परिभाषा को ठीक से खयाल में ले लें। क्योंकि बहुत बार आगे कि लड़ें। जब तक झगड़ा जारी रहता है, तब तक वह दूसरा पहलू काम पड़ेगी।
| भी जारी रहता है। लड़ लेते हैं, फिर प्रेम कर लेते हैं।
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