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क्षेत्रज्ञ अर्थात निर्विषय, निर्विकार चैतन्य 0
गहन अंधकार, आंखों पर पट्टियां, हाथ पर सब इस तरह के कपड़े कि वह अपने को भी न छू सके। सब हाथ-पैर बंधे हुए। भोजन भी इंजेक्शन से पहुंच जाएगा। उसको भोजन भी नहीं करना है।
छत्तीस घंटे में ही आदमी बेहोश हो जाता है, वह भी बहुत सजग आदमी। नहीं तो छः घंटे में आदमी बेहोश हो जाता है। छः घंटे कोई संवेदना नहीं, कोई सेंसेशन नहीं, तो आदमी बेहोश होने लगता है। क्या करेगा? होश खोने लगता है।
बहुत होश रखने वाला आदमी, छत्तीस घंटे में वह भी बेहोश हो जाता है। क्योंकि करोगे क्या! होश रखने को कुछ भी तो नहीं है। न कोई आवाज होती, न कोई ट्रैफिक का शोरगुल होता, न कोई रेडियो बजता, न कोई घटना घटती। कुछ भी नहीं हो रहा है। तो आप धीरे-धीरे, धीरे-धीरे इस न होने की अवस्था में बेहोश हो जाएंगे।
कृष्ण कहते हैं, ऐसी चेतना भी, जो किसी चीज पर निर्भर है, वह भी विकारग्रस्त है। ऐसा ध्यान भी, जो किसी पर निर्भर है, वैसा ध्यान भी विकारग्रस्त है। और जब इस सारे क्षेत्र के पार कोई हो जाता है, तो क्षेत्रज्ञ का अनुभव होता है।
पांच मिनट रुकेंगे। कोई भी उठे नहीं। कोई भी एक व्यक्ति बीच से उठता है, तो अड़चन होती है। पांच मिनट कीर्तन में भाग लें। कीर्तन के पूरे होने पर जाएं।
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