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गीता दर्शन भाग-6
लेकिन मेरे होने के लिए मुझे किसी चीज का अनुभव होना चाहिए, नहीं तो अपने होने का अनुभव नहीं होगा।
आप ऐसा समझें कि अगर आपको ऐसी जगह में रख दिया , जहां कोई शब्द, ध्वनि पैदा न होती हो, तो क्या आपको अपने कान का पता चलेगा? कैसे पता चलेगा? अगर कोई ध्वनि न होती हो, कोई शब्द न होता हो, तो आपको अपने कान का पता नहीं चलेगा। आपके पास कान हो तो भी आपको कभी पता नहीं चलेगा कि कान है।
अगर कोई चीज छूने को न हो, कोई चीज स्पर्श करने को न हो, तो आपको कभी पता नहीं चलेगा कि आपके पास स्पर्श की इंद्रिय है। अगर कोई चीज स्वाद लेने को न हो, तो आपको कभी पता न चलेगा कि आपके पास स्वाद के अनुभव की क्षमता है।
मनसविद कहते हैं, इसी भांति अगर कोई भी चीज चेतन होने को न हो, तो आपको अपनी चेतना का भी पता नहीं चलेगा। चेतना भी इसलिए पता चलती है कि संसार है, चारों तरफ चेतन होने के लिए वस्तुएं हैं।
इस विचार को मानने वाली जो धारा है, वह कहती है कि ध्यान अगर सच में – जैसा कि पूरब के मनीषी कहते हैं - घट जाए, तो आप बेहोश हो जाएंगे। क्योंकि जब जानने को कुछ भी शेष न रह जाएगा, तो जानने वाला नहीं बचेगा, सो जाएगा, खो जाएगा। जानने वाला तभी तक बच सकता है, जब तक जानने को कोई चीज हो। नहीं तो आप जानने वाले कैसे बचेंगे!
तो पश्चिम के मनसविद कहते हैं कि अगर ध्यान ठीक है, जैसा कि कृष्ण ने, पतंजलि ने, बुद्ध ने प्रस्तावित किया है, तो ध्यान में आदमी मूच्छित हो जाएगा, होश नहीं रह जाएगा। जब कोई आब्जेक्ट न होगा, जानने को कोई चीज न होगी, तो जानने वाला सो जाएगा।
इसे हम थोड़ा-बहुत अपने अनुभव से भी समझ सकते हैं। अगर रात आपको नींद न आती हो, तो उसका कारण आपको पता है क्या होता है? आपके मन में कुछ विषय होते हैं, जिनकी वजह से नींद नहीं आती; कोई विचार होता है, जिसकी वजह से नींद नहीं आती। आप अपने मन को निर्विचार कर लें, विषय से खाली कर लें, तत्क्षण नींद में खो जाएंगे ।
नींद आ जाएगी उसी वक्त, जब कोई चीज जगाने को न रहेगी। और जब तक कोई चीज जगाने को होती है, कोई एक्साइटमेंट होता है, कोई उत्तेजना होती है, तब तक नींद नहीं आती। अगर कोई भी
विषय मौजूद न हो, सभी उत्तेजना समाप्त हो जाए, तो आपके भीतर - मनसविद कहते हैं— जो चेतना है, वह खो जाएगी।
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कृष्ण भी उसी चेतना के लिए कह रहे हैं कि वह भी क्षेत्र है। कृष्ण भी राजी हैं इस मनोविज्ञान से। वे कहते हैं, यह जो चेतना है, जो पदार्थों के संबंध में आपके भीतर पैदा होती है, यह जो चेतना है, जो विषयों के संदर्भ में पैदा होती है; यह जो चेतना है, जो विषयों से जुड़ी है और विषयों के साथ ही खो जाती है, यह भी क्षेत्र है। तुम इस चेतना को भी अपनी आत्मा मत मानना। यह बड़ी गहन और आखिरी अंतर्खोज की बात है।
इस चेतना को भी तुम अपनी चेतना मत समझना। यह चेतना भी बाह्य - निर्भर है। यह चेतना भी पदार्थजन्य है। और जब इस चेतना के भी तुम ऊपर उठ जाओगे, तो ही तुम्हें पता चलेगा उस वास्तविक ब्रह्मतत्व का, जो किसी पर निर्भर नहीं है; तभी तुम्हें पता चलेगा क्षेत्रज्ञ का।
तो अब इसका अर्थ यह हुआ कि हम तीन हिस्से कर | कल हमने दो हिस्से किए थे। अब हम और गहरे जा सकते हैं। हमने दो हिस्से किए थे, ज्ञेय - आब्जेक्ट, जाने जाने वाली चीज । ज्ञाता - जानने वाला, नोअर, सब्जेक्ट । ये दो हमने विभाजन किए थे। अब कृष्ण कहते हैं, यह जो सब्जेक्ट है, यह जो नोअर है, जानने वाला है, यह भी तो जो जानी जाने वाली चीजें हैं, उनसे जुड़ा है। इन दोनों के ऊपर भी दोनों को जानने वाला एक तीसरा तत्व है, जो पदार्थ को भी जानता है और पदार्थ को जानने वाले को भी जानता है। यह तीसरा तत्व, यह तीसरी ऊर्जा तुम हो। और इस तीसरी ऊर्जा को नहीं
जाना जा सकता।
इसे थोड़ा समझ लें। क्योंकि जिस चीज को भी तुम जान लोगे, वही तुमसे अलग हो जाएगी। इसे ऐसा समझें। मेरे पास लोग आते हैं। कोई व्यक्ति आता है, वह कहता है, मैं बहुत अशांत हूं, मुझे कोई रास्ता बताएं। कोई ध्यान, कोई विधि, जिससे मैं शांत हो जाऊं। फिर वह प्रयोग करता है । अगर प्रयोग करता है, सच में निष्ठा से, तो | शांत भी होने लगता है। तब वह आकर मुझे कहता है कि अब मैं शांत हो गया हूं।
उससे मैं कहता हूं, अशांति से छूट गया, अब तू शांति से भी छूटने की कोशिश कर। क्योंकि यह तेरी शांति अशांति से ही जुड़ी ; यह उसका ही एक हिस्सा है। तू अशांति से छूट गया; बड़ी बात तूने कर ली। अब तू इस शांति से भी छूट, जो कि अशांति के विपरीत तूने पैदा की है, और तभी तू परम शांत हो सकेगा। लेकिन उस परम