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क्षेत्रज्ञ अर्थात निर्विषय, निर्विकार चैतन्य
की धार; और दूसरी तरफ यह आदमी काली के सामने या मां के न करते हों, चाहे हम वैसा आचरण न करते हों, लेकिन हम भी सामने गीत गाकर, भजन गाकर नाच रहा है!
भलीभांति जानते हैं कि हम इंद्रियों से भिन्न हैं। हमारी समझ में नहीं पड़ती बात। भजन गाकर, गीत गाकर, | अगर आपका हाथ कट जाए, तो आप ऐसा नहीं कहेंगे कि मैं नाचकर यह आदमी अनुभव में उतर रहा है। वह अनुभव तर्क से | कट गया। अगर आपका हाथ कट जाए, तो भी आप जरा भी नहीं संबंधित नहीं है। वह अनुभव रस से संबंधित है, आनंद से संबंधित कटेंगे। और आपके व्यक्तित्व का जो आभास था, वह पूरा का पूरा है, हृदय से संबंधित है, बुद्धि का उससे कोई लेना-देना नहीं है। | बना रहेगा। ऐसा नहीं कि आपको लगे कि आपके व्यक्तित्व का
लेकिन जब वह अनुभव इसे उपलब्ध हो जाएगा और यह किसी | | एक हिस्सा भी भीतर कट गया और आपकी आत्मा भी कुछ छोटी व्यक्ति को कहने जाएगा, तो कहना बुद्धि से संबंधित है। हृदय हो गई। आप उतने ही रहेंगे; लंगड़े होकर भी उतने ही रहेंगे: अंधे
और हृदय की क्या बात होगी? बात तो बुद्धि की होती है। और होकर भी आप उतने ही रहेंगे; बीमार होकर भी, बूढ़े होकर भी आप जब वह आपसे बात कर रहा है, तो बुद्धि का उपयोग करेगा। और उतने ही रहेंगे। आपके होने के बोध में कोई अंतर नहीं पड़ता। आपकी बुद्धि को अगर राजी कर ले, तो शायद आपकी बुद्धि से तो हम भी अनुभव करते हैं कि इंद्रियों से हम भिन्न हैं। शब्द, आपको हृदय तक उतारने के लिए भी राजी कर लेगा। स्पर्श, रूप, रस, गंध, उनसे भी हम भिन्न हैं, क्योंकि वे अनुभव
इसलिए कृष्ण कहते हैं कि ब्रह्मसूत्र ने अत्यंत युक्ति-युक्त रूप | | इंद्रियों के हैं। और जब हम इंद्रियों से भिन्न हैं, तो इंद्रियों के अनुभव से यही बात कही है।
से भी भिन्न हैं। कृष्ण जिसे बड़े गीतबद्ध रूप में कह रहे हैं, वही ब्रह्मसूत्र ने । स्थूल देह, पिंड, इन सबसे हम भिन्न हैं। लेकिन बड़ी क्रांति की युक्ति और तर्क के माध्यम से कही है।
बात है और वह है, चेतनता और धृति, यह भी कृष्ण ने कहा, ये और हे अर्जुन, वही मैं तेरे लिए कहता हूं कि पांच महाभूत, | | भी क्षेत्र हैं और इनसे भी हम भिन्न हैं। कांशसनेस और अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति अर्थात त्रिगुणमयी माया भी तथा | कनसनट्रेशन-चेतनता और धृति। दस इंद्रियां, एक मन और पांच इंद्रियों के विषय-शब्द, स्पर्श, । यह थोड़ा-सा गहन और सूक्ष्म है। और इसे अगर समझ लें, तो रूप, रस और गंध तथा इच्छा, द्वेष, सुख, दुख और स्थूल देह का | | कुछ और समझने को बाकी नहीं रह जाता। पिंड एवं चेतनता और धृति, इस प्रकार यह क्षेत्र विकारों के सहित | ___ पश्चिम के मनसविद मानते हैं कि आप चेतन हो ही तब तक संक्षेप में कहा गया है।
सकते हैं, जब तक चेतन होने को कुछ हो, कांशसनेस मीन्स टु बी इसमें बड़ी कठिनाई मालूम पड़ेगी। इसमें कुछ बड़ी ही कांशस आफ समथिंग। जब भी आप चेतन होते हैं, तो हो ही तब क्रांतिकारी बातें कही गई हैं। इस बात को मानने को हम राजी हो | | तक सकते हैं, जब तक किसी चीज के प्रति चेतन हों। अगर कोई सकते हैं कि पदार्थ पंच महाभूत क्षेत्र है, जो जाना जाता है वह। विषय न हो, तो चेतना भी नहीं हो सकती, ऐसा पश्चिम का
यह थोड़ा सूक्ष्म है और थोड़ा ध्यानपूर्वक समझने की कोशिश मनोविज्ञान प्रस्तावित करता है। और उनकी बात में बड़ा बल है। करना।
उनकी बात में बड़ा बल है। यह हम मान सकते हैं कि पंच महाभूत पदार्थ है, क्षेत्र है, ज्ञेय ___ इसलिए वे कहते हैं कि अगर सभी विषय हट जाएं, तो आप है। उसे हम जान सकते हैं। हम उससे भिन्न हैं। इंद्रियां, निश्चित ही | | बेहोश हो जाएंगे, आप होश खो देंगे। क्योंकि होश तो किसी चीज हम उन्हें जान सकते हैं। आंख में आपके दर्द होता है, तो आप का ही होता है, होश बिना चीज के हो नहीं सकता। जानते हैं
हो रहा है। कान नहीं सुनता, तो आपको समझ में आपको मैं देख रहा हं. तो मझे होश होता है कि मैं आपको देख आ जाता है भीतर, कि कान सुन नहीं रहा है, मैं बहरा हो गया हूं। | रहा हूं। लेकिन आप नहीं हैं, मुझे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा, तो मुझे निश्चित ही आप, जो भीतर बैठे हैं, जो जानता है कि कान बहरा यह भी नहीं होश हो सकता कि मैं देख रहा हूं। हां, अगर मुझे कुछ हो गया है, मैं सुन नहीं पा रहा हूं, या आंख अंधी हो गई, मुझे | | भी नहीं दिखाई पड़ रहा, तो फिर यह एक आब्जेक्ट, विषय बन दिखाई नहीं पड़ता, भिन्न है।
जाएगा मेरा कि मुझे कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा है। इसलिए मुझे इंद्रियों से हम अपने को भिन्न जानते हैं। चाहे हम वैसा व्यवहार पता चलेगा कि मैं हूं, क्योंकि मुझे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है।
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