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ॐ गीता दर्शन भाग-60
गलत रास्ते पर भी अगर कोई चल रहा है, तो सही पर पहुंच क्यों हैं? जाएगा। और मैं आपसे कहता हूं, सही रास्ते पर भी खड़ा होकर यह संदेह उठना स्वाभाविक है। क्योंकि ऐसी परंपराएं भी रही कोई विवाद कर रहा है, तो गलत पर पहुंच जाएगा।
हैं, जो तर्कहीन हैं। जैसे जापान में झेन है। वह कोई तर्कयुक्त खड़े होने से रास्ता चूक जाता है। चलने से रास्ता मिलता है। वक्तव्य नहीं देता। उनका ऋषि तर्कहीन वक्तव्य देता है। आप क्या असल में चलना ही रास्ता है। जो खड़ा है, वह रास्ते पर है ही नहीं, पूछते हैं, उसके उत्तर का उससे कोई संबंध भी नहीं होता है। क्योंकि क्योंकि खड़े होने का रास्ते से कोई संबंध नहीं है। चलने से रास्ता वह कहता है, तर्क को तोड़ना है। निर्मित होता है।
अगर आप जाकर एक झेन फकीर से पूछे कि सत्य का स्वरूप गलत पर भी कोई चले, लेकिन चले। और हठपूर्वक, जिदपूर्वक, | क्या है? तो हो सकता है, वह आपसे कहे कि बैठो, एक कप चाय संकल्पपूर्वक लगा रहे, तो गलत रास्ता भी ज्यादा देर तक उसे पकड़े पी लो। इसका कोई लेना-देना नहीं है सत्य से। आप पूछे कि नहीं रख सकता। जो चलता ही चला जाता है, वह ठीक पर पहुंच परमात्मा है या नहीं? तो हो सकता है, वह आपसे कहे कि जाओ, ही जाएगा। और जो खड़ा है, वह कहीं भी खड़ा हो, वह गलत पर और जरा हाथ-मुंह धोकर वापस आओ। गिर जाएगा।
| आप कहेंगे कि किसी पागल से बात कर रहे हैं। मैं पछ रहा है लेकिन हम खड़े होकर मजे से विवाद कर रहे हैं, क्या ठीक है, | कि परमात्मा है या नहीं; हाथ-मुंह धोने से क्या संबंध है! लेकिन क्या गलत है।
झेन फकीर का कहना यह है कि परमात्मा से तर्क का कोई संबंध कृष्ण, अर्जुन के मन में यह सवाल न उठे कि और ऋषियों ने नहीं है, इसलिए मैं तर्क को तोड़ने की कोशिश कर रहा हूं। और क्या कहा है, इसलिए कहते हैं, सभी तत्व के जानने वालों ने बहुत अगर तुम अतर्य में उतरने को राजी नहीं हो, तो लौट जाओ। यह प्रकार से इसी को कहा है। नाना प्रकार के छंदों में, नाना प्रकार की दरवाजा तुम्हारे लिए नहीं है। व्याख्याओं में, अच्छी तरह निश्चित किए हुए युक्ति-युक्त ब्रह्मसूत्र पश्चिम के विचारकों को यह समझ में आता है कि अगर तर्क के पदों में भी वैसा ही कहा गया है।
से मिल सकता हो, तो तर्क की बात करनी चाहिए। अगर तर्क से इधर एक बात और समझ लेनी जरूरी है कि धर्मशास्त्र भी युक्ति | मिल न सकता हो, तो तर्क की बात ही नहीं करनी चाहिए। ये दोनों का और तर्क का उपयोग करते हैं, लेकिन वे तार्किक नहीं हैं। बातें समझ में आती हैं। तर्कशास्त्री भी तर्क का उपयोग करते हैं, धर्म के रहस्य-अनुभवी लेकिन भारतीय शास्त्र दोनों से भिन्न हैं। भारतीय शास्त्र कहते भी तर्क का उपयोग करते हैं, लेकिन दोनों के तर्क में बुनियादी फर्क | हैं, तर्क से वह मिल नहीं सकता। लेकिन शंकर या नागार्जुन जैसे है। तर्कशास्त्री तर्क के द्वारा सोचता है कि सत्य को पा ले। धर्म की | तार्किक खोजने मुश्किल हैं। बहुत तर्क की बात करते हैं। क्या यात्रा में चलने वाला व्यक्ति पहले सत्य को पा लेता है और फिर कारण है? तर्क के द्वारा प्रस्तावित करता है। इन दोनों में फर्क है।
भारतीय अनुभूति ऐसी है कि तर्क सत्य को जन्म नहीं देता, धर्म मानता है कि सत्य को तर्क से पाया नहीं जा सकता, लेकिन लेकिन सत्य को अभिव्यक्त कर सकता है: सत्य की तरफ ले जा तर्क से कहा जा सकता है। धर्म की प्रतीति तर्क से मिलती नहीं, नहीं सकता, लेकिन असत्य से हटा सकता है। सत्य आपको दे नहीं लेकिन तर्क के द्वारा संवादित की जा सकती है।
सकता, लेकिन आपके समझने में सुगमता पैदा कर सकता है। और इसलिए पश्चिम में जब पहली दफे ब्रह्मसूत्रों का अनुवाद हआ, अगर समझ सुगम हो जाए, तो आप उस यात्रा पर निकल सकते तो ड्यूसन को और दूसरे विचारकों को एक पीड़ा मालूम होने | हैं। इसलिए भारतीय शास्त्र अत्यंत तर्कयुक्त हैं; गहन रूप से लगी। और वह यह कि भारतीय मनीषी निरंतर कहते हैं कि तर्क से तर्कयुक्त हैं। और इसलिए कई बार बड़ी कठिनाई होती है। सत्य को पाया नहीं जा सकता, लेकिन भारतीय मनीषी जब भी कुछ | | शंकर जैसा तार्किक जमीन पर कभी-कभी पैदा होता है। लिखते हैं, तो बड़ा तर्कपूर्ण लिखते हैं। अगर तर्क से पाया नहीं जा | | एक-एक शब्द तर्क है। और वही शंकर, मंदिर में गीत भी गा रहा सकता, तो इतना तर्कपूर्ण होने की क्या जरूरत है? जब तर्क से | । है, नाच भी रहा है। तो सोचेगा जो आदमी, उसको कठिन लगेगा सत्य का कोई संबंध नहीं है, तो ब्रह्मसूत्र जैसे ग्रंथ इतने तर्कबद्ध कि क्या बात है! एक तरफ तर्क की इतनी प्रगाढ़ योजना, इतनी तर्क
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