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क्षेत्रज्ञ अर्थात निर्विषय, निर्विकार चैतन्य कि
वह कहेगा कि दोनों एक ही बात कह रहे हैं। उनके कहने का ढंग अगर आप महावीर के रास्ते से चले, तो भी आप उसी शिखर अलग है। ढंग अलग होगा ही। महावीर महावीर हैं; बुद्ध बुद्ध हैं। | पर पहुंच जाएंगे, जहां कृष्ण, और बुद्ध, और मोहम्मद का रास्ता उनके पास व्यक्तित्व अलग है। उनके सोचने की प्रक्रिया अलग | पहुंचता है। अगर आप मोहम्मद के रास्ते से चले, तो भी वहीं पहुंच है। उनके चोट करने का उपाय अलग है। आपसे बात करने की | जाएंगे, जहां कृष्ण और राम का रास्ता पहुंचता है। चलने से पहुंच विधि अलग है। आपको कैसे बदलें, उसका विधान अलग है। जाएंगे, किसी भी रास्ते से चलें। सभी रास्ते उस तरफ ले जाते हैं।
महावीर कहते हैं, आत्मा को जानना हो तो अहंकार को छोड़ना ___ मेरी तो अपनी समझ यह है कि ठीक रास्ते पर खड़े होकर विवाद पड़ेगा, तो परम ज्ञान होगा। और बुद्ध कहते हैं, आत्मा यानी | करने की बजाय तो गलत रास्ते पर चलना भी बेहतर है। क्योंकि अहंकार। तुमने आत्मा को माना कि तुम किसी न किसी रूप में | गलत रास्ते पर चलने वाला भी कम से कम एक अनुभव को तो अपने अहंकार को बचा लोगे। इसलिए आत्मा को मानना ही मत, | | उपलब्ध हो जाता है कि यह रास्ता गलत है, चलने योग्य नहीं है। ताकि अहंकार को बचने की कोई जगह न रह जाए।
वह ठीक रास्ते पर खड़ा आदमी यह भी अनुभव नहीं कर पाता। बुद्ध जहां भी आत्मा शब्द का उपयोग करते हैं, उनका अर्थ गलत को भी गलत की तरह पहचान लेना, सत्य की तरफ बड़ी अहंकार होता है। मगर यह तो पहाड़ पर खड़े हों, तो आपको सफलता है। दिखाई पड़े। और तब आप कह सकते हैं कि बुद्ध भी वहीं लाते हैं, सुना है मैंने कि एडीसन बूढ़ा हो गया था। और एक प्रयोग वह जहां महावीर लाते हैं।
कर रहा था, जिसको सात सौ बार करके असफल हो गया था। लेकिन नीचे रास्तों पर खड़ा हुआ आदमी बड़ी मुश्किल में पड़ उसके सब सहयोगी घबड़ा चुके थे। तीन साल! सब ऊब गए थे। जाता है। और काफी विवाद चलता है। बौद्ध और जैन अभी तक | | उसके नीचे शोध करने वाले विद्यार्थी पक्का मान लिए थे कि अब विवाद कर रहे हैं। बुद्ध और महावीर को गए पच्चीस सौ साल हो | | उनकी रिसर्च कभी पूरी होने वाली नहीं है। और यह बूढ़ा है कि गए, पर उनके भीतर कलह अब भी जारी है। वे एक-दूसरे के | बदलता भी नहीं कि दूसरा कुछ काम हाथ में ले। उसी काम को खंडन में लगे रहते हैं।
किए जाता है! यह तो जैन मान ही नहीं सकता कि बुद्ध को ज्ञान हुआ होगा। और एक दिन सुबह एडीसन हंसता हुआ आया, तो उसके क्योंकि अगर ज्ञान हुआ होता, तो ऐसी अज्ञान की बात कहते? | साथी, सहयोगियों व विद्यार्थियों ने समझा कि मालूम होता है कि बौद्ध भी नहीं मान सकता कि महावीर को ज्ञान हुआ होगा। अगर उसको कोई कुंजी हाथ लग गई। तो वे सब घेरकर खड़े हो गए और ज्ञान हुआ होता, तो ऐसी अज्ञान की बात कहते कि आत्मा परम ज्ञान उन्होंने कहा कि आप इतने प्रसन्न हैं, मालूम होता है, आपका प्रयोग है! नीचे बड़ी कलह है।
| सफल हो गया, कुंजी हाथ लग गई। कृष्ण जैसे व्यक्तियों की सारी चेष्टा होती है कि आपकी शक्ति तो उसने कहा कि नहीं, एक बार और मैं असफल हो गया। कलह में व्यय न हो। आप लड़ने में समय और अवसर को न | | लेकिन एक असफलता और कम हो गई। सफलता करीब आती जा गंवाएं। आप कुछ करें।
रही है। आखिर असफलता की सीमा है। मैंने सात सौ दरवाजे टटोल इसलिए उचित है, एक बार मन में यह बात साफ समझ लेनी | | लिए, तो सात सौ दरवाजे पर भटकने की अब कोई जरूरत न रही। उचित है कि ज्ञानियों के शब्द में चाहे कितना ही फासला हो, जिस दिन मैंने पहली दफा शुरू किया था, अगर सात सौ एक दरवाजे ज्ञानियों के अनुभव में फासला नहीं हो सकता। ज्ञानियों के कहने हों, तो उस दिन सात सौ एक दरवाजे थे, अब केवल एक बचा। के ढंग कितने ही भिन्न हों, लेकिन उन्होंने जो जाना है, वह एक ही सात सौ कम हो गए। इसलिए मैं खुश हूं। रोज एक दरवाजा कम चीज हो सकती है। अज्ञानी बहुत-सी बातें जान सकते हैं। ज्ञानी तो होता जा रहा है। असली दरवाजा ज्यादा दूर नहीं है अब। एक को ही जानते हैं।
जवान साथी उदास होकर बैठ गए। उनकी समझ में यह बात न तो चाहे हमारी समझ में आता हो या न आता हो, मगर व्यर्थ | | आई। लेकिन जो इतने उत्साह से भरा हुआ आदमी है, उसके कलह और विवाद में मत पड़ना। और जिसकी बात आपको ठीक | | उत्साह का कारण केवल इतना है कि असफलता भी सफलता की लगती हो, उस रास्ते पर चलना शुरू कर देना।
सीढी है।
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