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0 गीता दर्शन भाग-60
चेतना के अणु की जो दीवाल है, जो घेरा है, वह पदार्थ का है। और जाती। वह तो उसी पहली चिंता का ही हिस्सा है। जो सेंटर है, जो केंद्र है, वह चेतना का है।
। दूसरे को गलत करना, खुद को सही सिद्ध करना, दोनों साथ ही काश, यह संभव हो जाए कि तुम इन दोनों को अलग कर लो, जुड़े हैं। और जो आदमी इस उपद्रव में पड़ जाता है, वह रास्ते पर तो जीवन का जो श्रेष्ठतम अनुभव है, वह घटित हो जाए। चलना ही भूल जाता है; वह रास्ते के संबंध में विवाद करता रहता
सारे धर्मों ने...कृष्ण ने तो बात की है वेद की, ब्रह्मसूत्र की। । है। पंडित-हिंदुओं के, मुसलमानों के, जैनों के–इसी काम में लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि कृष्ण कोई बाइबिल या कुरान लगे हैं। पंडितों से भटके हुए आदमी खोजना कठिन है। उनका के खिलाफ हैं। कृष्ण के वक्त में अगर बाइबिल और कुरान होते, सारा जीवन इसमें लगा हुआ है कि कौन गलत है, कौन सही है। तो उन्होंने उनकी भी बात की होती। वे नहीं थे। नहीं थे, इसलिए | और वे यह भूल ही गए कि जो सही है, वह चलने के लिए है। बात नहीं की है। आप यह मत सोचना कि इसलिए बात नहीं की है लेकिन चलने की सुविधा कहां! फुरसत कहां! समय कहां! कि कुरान और बाइबिल में वह बात नहीं है। बात तो वही है। और अगर कोई भी चले, तो पहाड़ पर पहुंचकर यह दिखाई पड़
चाहे जरथुस्त्र के वचन हों, चाहे लाओत्से के, चाहे क्राइस्ट के जाता है कि बहुत-से रास्ते इसी चोटी की तरफ आते हैं। लेकिन या मोहम्मद के, धर्म का सूत्र तो एक ही है कि भीतर चेतना और । यह चोटी पर से ही दिखाई पड़ सकता है; नीचे से नहीं दिखाई पड़ पदार्थ को हम कैसे अलग कर लें। इसके उपाय भिन्न-भिन्न हैं। सकता। नीचे से तो अपना ही रास्ता दिखाई पड़ता है। चोटी से सभी हजारों उपाय हैं। लेकिन उपायों का मूल्य नहीं है। निष्कर्ष एक है।। । रास्ते दिखाई पड़ सकते हैं। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया | | यह जो कृष्ण कह रहे हैं, चोटी पर खड़े हुए व्यक्ति की वाणी
है। वे कह रहे हैं कि सभी वेद, सभी ऋषि, सभी ज्ञानी इस एक ही दुनिया में इतने धर्मों के खड़े होने का कारण सत्यों का विरोध | | तत्व की बात कर रहे हैं। नहीं है, प्रकारों का भेद है। और नासमझ है आदमी कि प्रकार के बहुत प्रकार से उन्होंने कहा है। उनके कहने के प्रकार में मत भेद को परम अनुभव का भेद समझ लेता है।
उलझ जाना। कभी-कभी तो उनके कहने के प्रकार इतने विपरीत जैसे किसी एक पहाड़ पर जाने के लिए बहुत रास्ते हों और हर | | होते हैं कि बड़ी कठिनाई हो जाती है। रास्ते वाला दावा करता हो कि मेरे रास्ते के अतिरिक्त कोई पहाड़ ___ अगर महावीर और बुद्ध दोनों को आप सुन लें, तो बड़ी मुश्किल पर नहीं पहुंच सकता। न केवल दावा करता हो, बल्कि दो रास्ते में पड़ जाएंगे। और दोनों एक साथ हुए हैं। और दोनों एक ही समय वाले लड़ते भी हों। न केवल लड़ते हों, बल्कि लड़ाई इतनी में थे और एक ही छोटे-से इलाके, बिहार में थे। लेकिन महावीर मूल्यवान हो जाती हो कि पहाड़ पर चढ़ना भूल ही जाते हों और | और बुद्ध के कहने के ढंग इतने विपरीत हैं कि अगर आप दोनों को लड़ाई में ही जीवन व्यतीत करते हों। ऐसी करीब-करीब हमारी | | सुन लें, तो आप बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे। और तब आपको हालत है।
यह मानना ही पड़ेगा कि दोनों में से एक ही ठीक हो सकता है; दोनों कोई पहाड पर चढता नहीं। न मसलमान को फिक्र है पहाड पर ठीक नहीं हो सकते। य यह तो हो भी सकता है कि दोनों गलत हों. चढ़ने की, न हिंदू को फिक्र है। न जैन को फिक्र है, न बौद्ध को लेकिन दोनों ठीक नहीं हो सकते. क्योंकि दोनों इतनी विपरीत बातें फिक्र है। सबको फिक्र यह है कि रास्ता हमारा ठीक है, तुम्हारा | रास्ता गलत है। और तुम्हारा रास्ता गलत है, इसको सिद्ध करने में | | महावीर कहते हैं, आत्मा को जानना परम ज्ञान है। और बुद्ध लोग अपना जीवन समाप्त कर देते हैं। और हमारा रास्ता सही है, | | कहते हैं, आत्मा को मानने से बड़ा अज्ञान नहीं। अगर ये दोनों बातें इसको सिद्ध करने में अपनी सारी जीवन ऊर्जा लगा देते हैं। लेकिन | | आपके कान में पड़ जाएं, तो आप समझेंगे, या तो दोनों गलत हैं एक इंचभर भी उस रास्ते पर नहीं चलते, जो सही है। | या कम से कम एक तो गलत होना ही चाहिए। दोनों कैसे सही
काश, दूसरे के रास्ते को गलत करने की चिंता कम हो जाए। होंगे? बुद्ध कहते हैं, आत्मा को मानना अज्ञान है। और महावीर और जैसे ही दूसरे के रास्ते को गलत करने की चिंता कम हो, वैसे कहते हैं, आत्मा को जानना परम ज्ञान है। ही अपने रास्ते को सही सिद्ध करने की भी कोई जरूरत नहीं रह मगर जो शिखर पर खडे होकर देख सकता है. वह हंसेगा और
कहते हैं।
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