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क्षेत्रज्ञ अर्थात निर्विषय, निर्विकार चैतन्य
सकते हैं। लेकिन वह काम न आएगी। गहरे में तो हमें भेद मालूम | और अब हम जानते हैं कि इस पृथ्वी को हम किसी भी क्षण नष्ट पड़ता ही रहेगा।
कर सकते हैं। कोई कितना कहे कि मित्र और शत्रु दोनों एक हैं। हम अपने को ___ पर अणु आंख से दिखाई नहीं पड़ता। आंख की तो बात दूर है, समझा भी लें कि दोनों एक हैं। तब भी हमें मित्र मित्र दिखाई पड़ता अब तक हमारे पास कोई भी यंत्र नहीं है, जिनके द्वारा अणु दिखाई रहेगा और शत्रु शत्रु दिखाई पड़ता रहेगा। और मित्र को हम चाहते | | पड़ता हो। अब तक किसी ने अणु देखा नहीं है। वैज्ञानिक भी अणु रहेंगे और शत्र को न चाहते रहेंगे।
का अनुमान करते हैं। सोचते हैं कि अणु है। सोचना उनका सही हम जहां खड़े हैं, वहां से भेद अनिवार्य है। और हम जब तक | | भी है, क्योंकि अणु को उन्होंने तोड़ भी लिया है। बिना देखे यह न बदल जाएं, तब तक अभेद का कोई अनुभव नहीं हो सकता। | घटना घटी है। और इस अदृश्य अणु में, जो इतना छोटा है कि हमारी बदलाहट का पहला चरण है कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का भेद | | दिखाई नहीं पड़ता, इससे इतनी विराट ऊर्जा का जन्म हुआ। विज्ञान हमारे स्मरण में आ जाए।
| शिखर पर पहुंच गया, परमाणु के विभाजन से। अब हम सूत्र को लें।
धर्म ने भी एक तरह का विभाजन किया था। यह क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा उसी विभाजन की कीमिया है। धर्म ने मनुष्य की चेतना का विभाजन गया है। और नाना प्रकार के छंदों से विभागपूर्वक कहा गया है। | किया था। विज्ञान ने पदार्थ के अणु का विभाजन किया है; धर्म ने तथा अच्छी प्रकार निश्चय किए हुए युक्ति-युक्त ब्रह्मसूत्र के पदों | चेतना के परमाणु का विभाजन किया था। और उस परमाणु को दो द्वारा भी वैसा ही कहा गया है।
हिस्सों में तोड़ दिया था। दो उसके संघटक हैं, शरीर और आत्मा, सच तो यह है कि धर्म के समस्त सूत्र क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ की ही | | क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ। दोनों को तोड़ने से वहां भी बड़ी विराट ऊर्जा का बात कहते हैं। उनके कहने में, ढंग में, शब्दों में भेद है। पर वे जिस | अनुभव हुआ था। तरफ इशारा करते हैं, वह एक ही बात है।
और जो परमाणु में जितनी अनुभव हो रही है ऊर्जा, वह उस कृष्ण कहते हैं, वेद या उपनिषद या ब्रह्मसूत्र या जो परम ज्ञानी | | ऊर्जा के सम्मुख कुछ भी नहीं है। क्योंकि परमाणु जड़ है। चैतन्य ऋषि हुए हैं, उन सब ने भी अनेक-अनेक रूपों में, अनेक-अनेक का कण जब टूटा, जब कोई ऋषि सफल हो गया अपने भीतर के प्रकार से यही बात कही है।
चैतन्य के अणु को तोड़ने में, शरीर से पृथक करने में, तो इन दोनों यह छोटी-सी बात है, लेकिन बहुत बड़ी है। सुनने में बहुत | के पृथक होते ही जो विराट ऊर्जा जन्मी, वह ऊर्जा का अनुभव ही छोटी, और अनुभव में आ जाए, तो इससे बड़ा कुछ भी नहीं है। परमात्मा का अनुभव है।
अभी वैज्ञानिकों ने अणु का विस्फोट किया, अणु को तोड़ डाला। __ और फर्क है दोनों में। अणु टूटता है, तो उससे जो ऊर्जा पैदा तो उसके जो संघटक थे अणु के...अणु क्षुद्रतम चीज है। उससे होती है, उससे मृत्यु घटित होगी। और जब चेतना का अणु टूटता छोटी और कोई चीज नहीं। और जब अणु को भी विभाजित किया, है, तो उससे जो ऊर्जा प्रकट होती है, उससे अमृत घटित होता है। उसके जो संघटक थे, जो सदस्य थे अणु को बनाने वाले, जब उनको | क्योंकि जीवन की ऊर्जा में जब प्रवेश होता है, तो परम जीवन का तोड़कर अलग कर दिया, तो विराट ऊर्जा का जन्म हुआ। अनुभव होता है।
आज से पचास साल पहले कोई बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी यह | यह सूत्र आइंस्टीन के सूत्र जैसा है। इस सूत्र का इतना ही अर्थ नहीं सोच सकता था कि अणु जैसी क्षुद्र चीज में इतनी विराट शक्ति है कि तुम्हारे भीतर तुम्हारे व्यक्तित्व को संगठित करने वाले दो तत्व छिपी होगी। और जब लार्ड रदरफोर्ड ने पहली दफा अणु के हैं, एक तो पदार्थ से आ रहा है और एक चेतना से आ रहा है। विस्फोट की कल्पना की, तो रदरफोर्ड ने स्वयं कहा है कि मुझे खुद चेतना और पदार्थ दोनों के मिलन पर तुम निर्मित हुए हो। तुम्हारा ही विश्वास नहीं आता था कि इतनी क्षुद्रतम वस्तु में इतनी विराट जो अणु है, वह आधा चैतन्यं से और आधा पदार्थ से संयुक्त है। ऊर्जा छिपी है।
तुम्हारे दो किनारे हैं। तुम्हारी नदी चेतना और पदार्थ, दो के बीच लेकिन हमने हिरोशिमा और नागासाकी में देखा कि अणु के एक बह रही है। और यह जो पदार्थ है, इसने तुम्हें बाहर से घेरा हुआ छोटे-से विस्फोट में लाखों लोग क्षणभर में जलकर राख हो गए। है, चारों तरफ तुम्हारी दीवाल बनाई हुई है। कहना चाहिए, तुम्हारी
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