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________________ क्षेत्रज्ञ अर्थात निर्विषय, निर्विकार चैतन्य * यह वृक्ष कभी भी न होता। वह बीज आज भी इस वृक्ष में प्रकट हो। | सब मिट जाए, लेकिन मैं वही जानना चाहूंगा जो है। और इस खोज रहा है। में अपने को भी खोना पड़ता है। और अगर हम इसके पीछे की तरफ यात्रा करें, तो न मालूम निश्चित ही, कृष्ण की बात समझ में नहीं आती; कि अगर सभी कितने वृक्ष इसके पीछे हुए, इसलिए यह वृक्ष हो सका है। अनंत तक | एक है, तो फिर भेद कैसा? पीछे फैला हुआ है; अनंत तक आगे फैला हुआ है। अनंत तक चारों | सभी तो एक है, भेद इसलिए है कि हमारे पास जो बुद्धि है तरफ फैला हुआ है। समय और क्षेत्र दोनों में वृक्ष का फैलाव है। । | छोटी-सी, वह भेद बिना किए काम नहीं कर सकती। अगर एक वृक्ष को हम ठीक से, ईमानदारी से सीमा तय करने | इसे ऐसा समझें कि एक आदमी अपने मकान के भीतर बंद है। चलें, तो पूरे विश्व की सीमा में हमें वृक्ष मिलेगा। एक छोटे-से वह जब भी आकाश को देखता है, तो अपनी खिड़की से देखता व्यक्ति को अगर हम खोजने चलें, तो हमें उसके भीतर पूरा विराट | है। तो खिड़की का जो चौखटा है, वह आकाश पर आरोपित हो ब्रह्मांड मिल जाएगा। जाता है। उसने कभी बाहर आकर नहीं देखा। उसने सदा अपने तो कहां आप समाप्त होते हैं? कहां शुरू होते हैं? न कोई | | मकान के भीतर से देखा है। तो खिड़की का चौखटा आकाश पर शुरुआत है और न कोई अंत है। इसीलिए हम कहते हैं कि परमात्मा | | कस जाता है। और जिस आदमी ने खुला आकाश नहीं देखा, वह अनादि और अनंत है। आप भी अनादि और अनंत हैं। वृक्ष भी | | यही समझेगा कि यह जो खिड़की का आकार है, यही आकाश का अनादि और अनंत है। पत्थर का एक टुकड़ा भी अनादि और अनंत | | आकार है। खिड़की का आकार आकाश का आकार मालूम पड़ेगा। है। अस्तित्व में जो भी है, वह अनादि और अनंत है। आकाश निराकार है। लेकिन कहां से आप देख रहे हैं? आपकी लेकिन हम सीमाएं बनाना जानते हैं। और सीमाएं बनाना जरूरी | खिड़की कितनी बड़ी है? हो सकता है, आप एक दीवाल के छेद भी है; हमारे काम के लिए उपयोगी भी है। अगर मैं आपका पता | | से देख रहे हों, तो आकाश उतना ही बड़ा दिखाई पड़ेगा जितना न पूछं, आपका घर खोजता हुआ आऊं और कहूं कि वे कहां रहते दीवाल का छेद है। हैं, जो अनादि और अनंत हैं! जिनका न कोई अंत है, न कोई प्रारंभ | | जब कोई व्यक्ति अपने मकान के बाहर आकर आकाश को है! जो न कभी जन्मे और न कभी मरेंगे; जो निर्गुण, निराकार | | देखता है, तब उसे पता चलता है कि यह तो निराकार है। जो हैं-वे कहां रहते हैं? तो मुझे लोग पागल समझेंगे। वे कहेंगे, आप | आकार दिखाई पड़े थे, वे मेरे देखने की जगह से पैदा हुए थे। नाम बोलिए। आप सीमा बताइए। आप परिभाषा करिए। आप | इंद्रियां खिड़कियां हैं। और हम अस्तित्व को इंद्रियों के द्वारा ठीक-ठीक पता बताइए। क्या नाम है? क्या धाम है? यह अनंत | | देखते हैं, इसलिए अस्तित्व बंटा हुआ दिखाई पड़ता है, टूटा हुआ और निराकार, इससे कुछ पता न चलेगा। दिखाई पड़ता है। • आपका मुझे पता लगाना हो, तो एक सीमा चाहिए। एक ___ आंख निराकार को नहीं देख सकती, क्योंकि आंख जिस चीज छोटे-से कार्ड पर आपका नाम, आपका टेलीफोन नंबर, आपका | | को भी देखेगी उसी पर आंख का आकार आरोपित हो जाएगा। कान पता-ठिकाना, उससे मैं आपको खोज पाऊंगा। और वह सब झूठ | | निराकार को नहीं सुन सकते, निःशब्द को नहीं सुन सकते। कान तो है, जिससे मैं आपको खोजूंगा। और जो सत्य है, अगर उससे | | जिसको भी सुनेंगे, उसको शब्द बना लेंगे और सीमा बांध देंगे। खोजने चलं, तो आपको मैं कभी न खोज पाऊंगा। हाथ निराकार को नहीं छू सकते, क्योंकि हाथ आकार वाले हैं; जिंदगी सापेक्ष है, वहां सभी चीजें कामचलाऊ हैं, उपयोगी हैं। | जिसको भी छुएंगे, वहीं आकार का अनुभव होगा। लेकिन जो उपयोगी है, उसे सत्य मत मान लेना। जो उपयोगी है, __ आप उपकरण से देखते हैं, इसलिए सभी चीजें विभिन्न हो जाती अक्सर ही झूठ होता है। | हैं। जब कोई व्यक्ति इंद्रियों को छोड़कर, द्वार-दरवाजे खिड़कियों असल में झूठ की बड़ी उपयोगिता है। सत्य बड़ा खतरनाक है। से पार आकर खुले आकाश को देखता है, तब उसे पता चलता है और जो सत्य में उतरने जाता है, उसे उपयोगिता छोड़नी पड़ती है। कि जो भी मैंने अब तक देखा था, वे मेरे खयाल थे। अब जो मैं संन्यास का यही अर्थ है, वह व्यक्ति जिसने उपयोगिता के जगत देख रहा हूं, वह सत्य है। की फिक्र छोड़ दी। और जो कहता है, चाहे नुकसान उठा लूं, चाहे मकान के बाहर आकर देखने का नाम ही ध्यान है। इंद्रियों से 207
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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