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गीता दर्शन भाग-60
हाथ को बर्फ पर रखकर ठंडा कर लें। और एक हाथ को लालटेन | | हो जाती है। भेद की जब बात करते हैं, तो हमारी समझ में आती है। के पास रखकर गरम कर लें और फिर दोनों हाथों को उस पानी की | | क्योंकि भेद हम भी कर सकते हैं। भेद तो हम करते ही हैं। भेद करना बालटी में डुबा दें। आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। क्योंकि एक | तो हमें पता है, वह कला हमें ज्ञात है। लेकिन अभेद की कला हमें हाथ कहेगा पानी ठंडा है, और एक हाथ कहेगा पानी गरम है। और | ज्ञात नहीं है। अभेद की कला कठिन भी है, क्योंकि अभेद की कला पानी तो बालटी में एक ही जैसा है। लेकिन एक हाथ खबर देगा | का अर्थ हुआ कि हमें मिटना पड़ेगा। वह जो भेद करने वाला हमारे गरम की, एक हाथ खबर देगा ठंडक की, क्योंकि दोनों हाथों का भीतर है, उसके समाप्त हुए बिना अभेद का कोई पता नहीं चलेगा। सापेक्ष अनुभव है। जो हाथ गरम है, उसे पानी ठंडा मालूम पड़ेगा। | चारों तरफ हम देखते हैं; सब चीजों की परिभाषा मालूम पड़ती जो हाथ ठंडा है, उसे पानी गरम मालूम पड़ेगा।
है, सभी चीजों की सीमा मालूम पड़ती है। लेकिन अस्तित्व असीम तो इस बालटी के भीतर जो पानी है, उसको आप क्या कहिएगा | | है, और कहीं भी समाप्त नहीं होता। कहीं कोई सीमा आती नहीं है ठंडा या गरम? अगर बाएं हाथ की मानिए, तो वह कहता है ठंडा; अस्तित्व की। दाएं हाथ की मानिए, तो वह कहता है गरम। और दोनों हाथ आपके । आपको लगता है. एक वक्ष खडा है. तो दिखाई पड़ता है. वक्ष हैं। आप क्या करिएगा? तब आपको पता चलेगा कि गरमी और | की सीमा है। आप नाप सकते हैं, कितना ऊंचा है, कितना चौड़ा ठंडक सापेक्ष हैं। गरमी और ठंडक दो तथ्य नहीं हैं, हमारी | | है। पत्ती भी नाप सकते हैं। वजन भी नाप सकते हैं। लेकिन क्या व्याख्याएं हैं। हम अपनी तुलना में किसी चीज को गरम कहते हैं, | | सच में वृक्ष की कोई सीमा है? क्या वृक्ष पृथ्वी के बिना हो सकता और अपनी तुलना में किसी चीज को ठंडी कहते हैं। | है? अगर पृथ्वी के बिना वृक्ष नहीं हो सकता, तो पृथ्वी वृक्ष का
इसका यह अर्थ हुआ कि जब तक हमारे पास तुलना करने वाली | हिस्सा है। बुद्धि है और जब तक हमारे पास तौलने का तराजू विचार है, तब | जिसके बिना हम नहीं हो सकते, उससे हमें अलग करना उचित तक हमें भेद दिखाई पड़ते रहेंगे।
नहीं है। पृथ्वी के बिना वृक्ष नहीं हो सकता। उसकी जड़ें पृथ्वी की संसार में भेद हैं, क्योंकि संसार है हमारी व्याख्याओं का नाम। छाती में फैली हुई हैं; उन्हीं से वह रस पाता है, उन्हीं से जीवन पाता और परमात्मा में कोई भेद नहीं है, क्योंकि परमात्मा का अर्थ है, | है; उसके बिना नहीं हो सकता। तो पृथ्वी वृक्ष का हिस्सा है। पृथ्वी उसं जगह प्रवेश, जहां हम अपनी व्याख्याएं छोड़कर ही पहुंचते हैं। | बहुत बड़ी है। वृक्ष नहीं था, तब भी थी। वृक्ष नहीं हो जाएगा, तब ___ इसे हम ऐसा समझें, एक नदी बहती है, तो उसके पास किनारे | | भी होगी। और अभी भी जब वृक्ष है, तो वृक्ष के भीतर पृथ्वी दौड़ होते हैं। बाएं तरफ किनारा होता है, दाएं तरफ किनारा होता है। | रही है, वृक्ष के भीतर पृथ्वी बह रही है।
और फिर नदी सागर में गिर जाती है। सागर में गिरते ही किनारे खो| । लेकिन क्या पृथ्वी ही वृक्ष का हिस्सा है? हवा के बिना वृक्ष न जाते हैं। जो नदी सागर में गिर गई है, अगर वह दूसरी नदियों से | | हो सकेगा। वृक्ष भी श्वास ले रहा है। वह भी आंदोलित है, उसका मिल सके, तो उन नदियों से कहेगी कि किनारे हमारे अस्तित्व का | प्राण भी वायु से चल रहा है। वायु के बिना अगर वृक्ष न हो सके, हिस्सा नहीं हैं। किनारे संयोगवश हैं। किनारा होना जरूरी नहीं है | | तो फिर वायु से वृक्ष को अलग करना उचित नहीं है; नासमझी है। नदी होने के लिए, क्योंकि सागर में पहुंचकर कोई किनारा नहीं रह | तो वायुमंडल वृक्ष का हिस्सा है। जाता; नदी रह जाती है।
लेकिन क्या सूरज के उगे बिना वृक्ष हो सकेगा? अगर कल लेकिन किनारे से बंधी नदियां कहेंगी कि यह बात समझ में नहीं सुबह सूरज न उगेगा, तो वृक्ष मर जाएगा। दस करोड़ मील दूर आती। बिना किनारे के नदी हो कैसे सकती है? किनारे तो हमारे | सूरज है, लेकिन उसकी किरणों से वृक्ष जीवित है। तो वृक्ष का अस्तित्व के हिस्से हैं।
जीवन कहां समाप्त होता है? .. कृष्ण जब हमसे बोलते हैं, तो वही तकलीफ है। कृष्ण उस जगह यह तो मैंने स्पेस में, आकाश में उसका फैलाव बताया। समय से बोलते हैं, जहां नदी सागर में गिर गई। हम उस जगह से सुनते | में भी वृक्ष इसी तरह फैला हुआ है। यह वृक्ष कल नहीं था। एक हैं, जहां नदी किनारों से बंधी है।
| बीज था इस वृक्ष की जगह, किसी और वृक्ष पर लगा था। उस वृक्ष तो कृष्ण जब अभेद की बात करते हैं, तो हमारी पकड़ के बाहर के बिना यह वृक्ष न हो सकेगा। वह बीज अगर पैदा न होता, तो
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