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गीता दर्शन भाग-60
मेरे पास लोग आते हैं। वे पूछते हैं, कृष्ण हुए, महावीर हुए, बुद्ध वासनाओं को पूरा करने वाली हैं, कई अभीप्साओं को पूरा करने हए, क्या फायदा? आदमी तो वैसा का वैसा है। तो क्या सार हुआ? वाली हैं। यह कौन नहीं चाहता कि शरीर से छुट
उनका कहना थोड़ी दूर तक ठीक है। क्योंकि वे सोचते हैं कि एक युवती मेरे पास आई इटली से। शरीर उसका भारी है, बहुत अगर एक आइंस्टीन हो जाता है, तो वह जो भी ज्ञान है, फिर सदा मोटा, बहुत वजनी। कुरूप हो गया है। मांस ही मांस हो गया है के लिए आदमी को मिल जाता है। एक आदमी ने खोज ली कि | शरीर पर। चरबी ही चरबी है। उसने मुझे एक बड़े मजे की बात बिजली क्या है, तो फिर हर आदमी को खोजने की जरूरत नहीं है। कही। उसने यहां कोई तीन महीने ध्यान किया मेरे पास। और एक आप घर में जब बटन दबाते हैं, तो आपको कोई बिजली का ज्ञाता | | दिन आकर उसने मुझे कहा कि आज मुझे ध्यान में बड़ा आनंद होने की जरूरत नहीं है, कि आपको पक्का पता हो कि बिजली क्या आया। मैंने पूछा, क्या हुआ तुझे? तो उसने कहा, आज मुझे ध्यान है और कैसे काम करती है। आप बटन दबाते हैं, खतम हुई बात। | में अनुभव हुआ कि मैं शरीर नहीं हूं। और इस शरीर से मुझे बड़ी अब दुनिया में किसी को जानने की जरूरत नहीं है। बाकी लोग पीड़ा है; कोई मुझे प्रेम नहीं करता है। और एक युवक मेरे प्रेम में उपयोग कर लेंगे।
भी गिर गया था, तो उसने मुझसे कहा कि मैं तेरी सिर्फ आत्मा को विज्ञान का जो ज्ञान है, वह हस्तांतरणीय है। वह एक दूसरे को | प्रेम करता है, तेरे शरीर को नहीं। दे सकता है। वह उधार हो सकता है। क्योंकि बाहर की चीज है, ___ अब किसी स्त्री से आप यह कहिए कि मैं तेरी सिर्फ आत्मा को दी जा सकती है।
प्रेम करता हूं, तेरे शरीर को नहीं! तो उस युवक ने कहा कि मैं तेरे आपके पिता जब मरेंगे, तो उनकी जो बाह्य संपत्ति है, उसके | शरीर को प्रेम नहीं कर सकता। बिलकुल असंभव है। मैं तेरी आत्मा आप अधिकारी हो जाएंगे। उनका मकान आपको मिल जाएगा। को प्रेम करता हूं। लेकिन इससे कोई तृप्ति तो हो नहीं सकती। उनकी किताबें आपको मिल जाएंगी। उनकी तिजोड़ी आपको मिल उसने कहा, आज मुझे ध्यान में बड़ा आनंद आया, क्योंकि मुझे जाएगी। लेकिन उन्होंने जो जाना था अपने अंतरतम में, वह आपको | ऐसा अनुभव हुआ कि मैं शरीर नहीं हूं। तो मेरी जो एक ग्लानि है नहीं मिलेगा। उसको देने का कोई उपाय नहीं है। बाप भी बेटे को मेरे शरीर के प्रति, उससे मुझे छुटकारा हुआ। नहीं दे सकता। उसे दिया ही नहीं जा सकता, जब तक कि आप ही | तो मैंने उससे पूछा कि यह तुझे ध्यान के कारण हुआ या तेरे मन उसे न पा लें।
में सदा से यह भाव है कि किसी तरह यह खयाल में आ जाए कि ज्ञान पाया जा सकता है, दिया नहीं जा सकता। उपलब्ध है; आप | मैं शरीर नहीं हूं, तो इस शरीर को दुबला करने की झंझट, इस शरीर पाना चाहें तो पा सकते हैं। लेकिन कोई भी आपको दे नहीं सकता। | को रास्ते पर लाने की झंझट मिट जाए?
तो कृष्ण कहेंगे जरूर, लेकिन अर्जुन को खुद ही पाना पड़ेगा। तो उसने कहा कि यह भाव तो मेरे मन में पड़ा है। असल में मैं खतरा यह है कि अर्जन सनकर कहीं मान ले. कि ठीक. मैंने भी तो। | ध्यान करने आपके पास आई ही इसलिए हूं कि मुझे यह पता चल जान लिया।
जाए कि मैं शरीर नहीं हूं, मैं आत्मा हूं। तो शरीर के कारण जो मुझे शब्दों के साथ यह उपद्रव है। ज्ञान तो नहीं दिया जा सकता, पीड़ा मालूम होती है, और शरीर के कारण जो प्रत्येक व्यक्ति को लेकिन शब्द दिए जा सकते हैं। शब्द तो उधार मिल जाते हैं। और | मेरे प्रति विकर्षण होता है, उससे जो मुझे दंश और चोट लगती है, आप शब्दों को इकट्ठा कर ले सकते हैं। और शब्दों के कारण आप उस चोट से मेरा छुटकारा हो जाए। सोच सकते हैं, मैंने भी जान लिया।
तो मैंने उससे कहा कि पहले तो तू यह फिक्र छोड़ और यह भाव आखिर अगर आप गीता को कंठस्थ कर लें, तो आपके पास मन से हटा, नहीं तो तू कल्पना ही कर लेगी ध्यान में कि मैं शरीर भी वे ही शब्द आ गए, जो कृष्ण के पास थे। और कृष्ण ने जो कहा | नहीं हूं। कल्पना आसान है। सिद्धांत मन में बैठ जाएं, हमारी था, वह आप भी कह सकते हैं। लेकिन आपका कहा हुआ यांत्रिक | | वासनाओं की पूर्ति करते हों, हम कल्पना कर लेते हैं। होगा, कृष्ण का कहा हुआ अनुभवजन्य था।
। शरीर से कौन दुखी नहीं है? ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, अर्जुन के लिए खतरा यही है कि कृष्ण की बातें अच्छी लगें...। | जो शरीर से दुखी न हो। कोई न कोई दुख शरीर में है ही। किसी के और लगेंगी अच्छी, प्रीतिकर लगेंगी, क्योंकि मन की कई| पास कुरूप शरीर है। किसी के पास बहुत मोटा शरीर है। किसी के
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