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________________ ( दुख से मुक्ति का मार्गः तादात्म्य का विसर्जन मतलब आप गिर गए। कभी-कभी तादात्म्य छूटेगा, उसका एक चीज से बचेंगे और दूसरी चीज में तादात्म्य हो जाएगा। लेकिन मतलब, दो कदम साइकिल चल गई। लेकिन जब पहली दफा दो | जारी रखें। किसी चीज से जुड़े मत। और एक ही खयाल रखें कि कदम भी साइकिल चलती है, तो जो आनंद का अनुभव होता है! | मैं जानने वाला, मैं जानने वाला, मैं जानने वाला। आप मुक्त हो गए; एक कला आ गई; एक नया अनुभव! आप | मैं ऐसा कह रहा हूं, इसका मतलब यह नहीं कि आप भीतर हवा में तैरने लगे। दोहराते रहें कि मैं जानने वाला, मैं जानने वाला। अगर आप यह जब पहली दफा कोई दो हाथ मारता है, और तैर लेता है, और | | दोहरा रहे हैं, तो आप भूल में पड़ गए, क्योंकि यह दोहराने वाला पानी की ताकत से मुक्त हो जाता है, और पानी अब डुबा नहीं | | शरीर ही है। यह अगर आप दोहरा रहे हैं, तो इसको भी जानने वाला सकता. आप मालिक हो गए. तो वह जो आनंद अनभव होता है मैं हं। जो जान रहा है कि यह बात दोहराई जा रही है. कि मैं जानने तैरने वाले को, वह जिन्होंने तैरा नहीं है, उन्हें कभी अनुभव नहीं हो | वाला, मैं जानने वाला। इसको भीतर बारीक काटते जाना है और सकता। पानी पर विजय मिल गई! एक ही जगह खड़े होने की कला सीखनी है कि मैं सिर्फ ज्ञान हूं। जब आप ध्यान में तैरना सीख जाते हैं, तो शरीर पर विजय मिल शब्द मैं नहीं हूं। ऐसा दोहराना नहीं है भीतर। ऐसा भीतर जानना है जाती है। और वह गहनतम कला है। मगर आप करें, तो ही यह हो | कि मैं ज्ञान हूं। और तोड़ना है सब तादात्म्य से। तो आपको पता सकता है। चलेगा कि शरीर क्षेत्र है, शरीर के भीतर छिपे आप क्षेत्रज्ञ हैं। और यह सूत्र बड़ा कीमती है। यह साधारण मेथड और विधियों और यह जो क्षेत्रज्ञ है, यह कृष्ण कहते हैं, मैं ही हूं। इस भेद को जैसा नहीं है, कि कोई किसी को मंत्र दे देता है, कि मंत्र बैठकर जो जान लेता है, वही ज्ञानी है। घोंटते रहो। कोई कुछ और कर देता है। यह बहुत सीधा, सरल, | इसलिए वह क्षेत्र जो है और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है साफ है, लेकिन ज्यादा समय लेगा। और जिस कारण से हुआ है तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो है और जिस मंत्र इत्यादि का जप करने से जल्दी कुछ घटनाएं घटनी शुरू हो प्रभाव वाला है, वह सब संक्षेप में मेरे से सुन। जाती हैं। लेकिन उन घटनाओं का बहुत मूल्य नहीं है। मंत्र की यात्रा - कृष्ण कहते हैं, अब मैं तुझसे कहूंगा संक्षेप में वह सब, कि यह से जाने वाले व्यक्ति को भी आखिर में इस सूत्र का उपयोग करना | | शरीर कैसे हुआ है, यह क्षेत्र क्या है, इसका गुणधर्म क्या है। और पड़ता है और उसे भीतर यह अनुभव करना पड़ता है कि जो मंत्र | | इसके भीतर जो जानने वाला है, वह क्या है, उसका गुणधर्म क्या है। बोल रहा है, वह मैं नहीं हूं। और वह जो मंत्र का जपन चल रहा लेकिन कृष्ण से इसे सुना जा सकता है, लेकिन कृष्ण से सुनकर है, वह मैं नहीं हूं। उसे अंत में यह भी अनुभव करना पड़ता है कि इसे जाना नहीं जा सकता। वह जो ओम का भीतर पाठ हो रहा है, वह भी मैं देख रहा है. सन । एक बात सदा के लिए खयाल में रख लें, और उसे कभी न रहा हूं, मैं नहीं हूं। भूलें, कि ज्ञान कोई भी आपको दे नहीं सकता। यह जितनी गहराई इस सूत्र का उपयोग तो करना ही पड़ता है। किसी भी विधि का से भीतर बैठ जाए, उतना अच्छा है। ज्ञान कोई भी आपको दे नहीं कोई उपयोग करे, अगर इस सूत्र का बिना उपयोग किए कोई किसी | | सकता। मार्ग बताया जा सकता है, लेकिन चलना आपको ही विधि का प्रयोग करता हो, तो वह आज नहीं कल, आत्म-मूर्छा | | पड़ेगा। और मंजिल मार्ग बताने से नहीं मिलती; मार्ग जान लिया में पड़ जाएगा। यह सूत्र बुनियादी है। और सभी विधियों के प्रारंभ | | इससे भी नहीं मिलती; मार्ग चलने से ही मिलती है। में, मध्य में, या अंत में कहीं न कहीं यह सूत्र मौजूद रहेगा। और आपके लिए कोई दूसरा चल भी नहीं सकता। नहीं तो बुद्ध इससे उचित है कि विधियों की फिक्र ही छोड़ दें। सीधे इस सूत्र और कृष्ण की करुणा बहुत है। क्राइस्ट और मोहम्मद की करुणा पर ही काम करें। एक घंटा निकाल लें, और चाहे कितनी ही बहुत है। अगर वे चल सकते होते आपके लिए, तो वे चल लिए अड़चन मालूम पड़े...। | होते। और अगर ज्ञान दिया जा सकता होता, तो एक कृष्ण काफी बड़ी अड़चन मालूम होगी। भीतर सब पसीना-पसीना हो थे; सारा जगत ज्ञान से भर जाता, क्योंकि ज्ञान दिया जा सकता। जाएगा-शरीर नहीं, भीतर-बहुत पसीना-पसीना हो जाएंगे। लेकिन कितने ज्ञानी हो जाते हैं और अज्ञान जरा भी कटता नहीं बड़ी अड़चन मालूम पड़ेगी। हर मिनट पर चूक हो जाएगी। हर बार दिखाई पड़ता! [199]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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