________________
ॐ गीता दर्शन भाग-60
बर्तन पटकेगी। या पत्नी ध्यान करे, तो पति रेडिओ जोर से चला | | जिंदगी में भूलता नहीं। सब चीजें भूल जाती हैं, लेकिन दो चीजें, देगा, अखबार पढ़ने लगेगा; बच्चे उपद्रव मचाने लगेंगे। | तैरना और साइकिल चलाना नहीं भूलती हैं। सब चीजें भूल जाती
जब बर्तन जोर से गिरे. तो आप यही जानना कि बर्तन गिर रहा हैं। जो भी आपने सीखी हैं. भल जाएंगी। फिर से सीखना पडेंगी। है, आवाज हो रही है, मैं जान रहा है। अगर आपके भीतर धक्का हालांकि दुबारा आप जल्दी सीख लेंगे, लेकिन सीखना पड़ेंगी। भी लग जाए, शॉक भी लग जाए, तो भी आप यह जानना कि मेरे | लेकिन साइकिल चलाना और तैरना, दो चीजें हैं, जो आपने पचास भीतर धक्का लगा, शॉक लगा। मेरा मन विक्षुब्ध हुआ, यह मैं जान साल तक भी न की हों, आप एकदम से बैठ जाएं साइकिल रहा हूं। आप अपना संबंध जानने वाले से ही जोड़े रखना और | पर-चलेगी! किसी चीज से मत जुड़ने देना।
___ उसका कारण? तैरना और साइकिल चलाना एक ही तरह की इससे बड़े ध्यान की कोई प्रक्रिया नहीं है। कोई जरूरत नहीं है | घटना है, संतुलन। और वह संतुलन बौद्धिक नहीं है। वह संतुलन प्रार्थना की, ध्यान की; फिर कोई जरूरत नहीं है। बस, एक घंटा बौद्धिक नहीं है, इसलिए आप बता भी नहीं सकते कि आप कैसे इतना खयाल कर लें। थोड़े ही दिन में यह कला आपको सध करते हैं। आप करके बता सकते हैं, कि मैं साइकिल चलाकर बताए जाएगी। और बताना कठिन है कि कला कैसे सधती है। आप करें, देता हूं, लेकिन क्या करता हूं, यह मुझे भी पता नहीं है। कुछ करते सध जाए, तो ही आपको समझ में आएगा।
आप जरूर हैं. लेकिन वह करना इतना ससंगठित है. इतना करीब-करीब ऐसा, जैसे किसी बच्चे को साइकिल चलाना आप | | इंटिग्रेटेड है, आपका पूरा शरीर, मन सब इतना समाविष्ट है उसमें। सिखाएं। तो बच्चा यह पूछे कि साइकिल चलाना कैसे आता है, तो | | और वह आपने सिद्धांत की तरह नहीं सीखा है; वह आपने आप भला चलाते हों जिंदगीभर से, तो भी नहीं बता सकते कि कैसे साइकिल पर गिरकर, चलाकर, उठकर सीखा है। वह आप सीख आता है। और बच्चा आपसे पूछे कि कोई तरकीब सरल में बता दें, गए हैं। वह आपकी कला बन गई है। जिससे कि मैं पैर रखू पैडिल पर, साइकिल पर बैलूं और चल पडूं।। कला और विज्ञान में यही फर्क है। विज्ञान शास्त्र से भी सीखा तो भी आप कहेंगे कि नहीं, वह तरकीब सरल में नहीं बताई जा | | जा सकता है। कला सिर्फ अनुभव से सीखी जा सकती है। विज्ञान सकती। दस-पांच दफा तू गिरेगा ही। उस गिरने में ही वह तरकीब किताब में लिखकर दिया जा सकता है। कला लिखकर नहीं दी जा निखरती है। क्योंकि वह एक बैलेंस है, जो बताया नहीं जा सकता। सकती है।
आखिर साइकिल दो चाक पर चल रही है: एक संतलन है। परे। इसलिए धर्म में गरु का इतना स्थान है। उसका स्थान इसीलिए वक्त शरीर संतुलित हो रहा है। जरा इधर साइकिल झुकती है, तो | | है कि वह कुछ जानता है, जिसको वह भी आपको कह नहीं सकता, शरीर दूसरी तरफ झुक जाता है। और संतुलन गति के साथ ही बन वह भी आपको करवा सकता है। आप भी गिरेंगे, उठेंगे, और एक सकता है। अगर गति बहुत धीमी हो जाए, तो संतुलन बिगड़ दिन सीख जाएंगे। उसकी छाया में आप भयभीत न होंगे; गिरेंगे तो जाएगा। अगर गति बहुत ज्यादा हो जाए, तो भी संतुलन बिगड़ | भी डरेंगे नहीं। उसके भरोसे में, उसकी आस्था में आप आशा जाएगा।
बनाए रखेंगे, कि आज गिर रहा हूं, तो कल चलने लगूंगा। उसकी तो दो तरह के संतुलन हैं। एक तो गति की एक सीमा, और छत्र-छाया में आपको आसानी होगी कला सीख लेने की। शरीर के साथ संतुलन, कि बाएं-दाएं कहीं ज्यादा न झुक जाए। ध्यान एक कला है, गहनतम कला है और करने से ही आती है। आप भी नहीं बता सकते; साइकिल आप चलाते हैं, आप भी नहीं आप इस छोटे-से प्रयोग को करें, एक घड़ी; चाहे कुछ भी हो बता सकते कि आप कैसे करते हैं यह संतुलन। आपको पता भी | जाए। बहुत मुश्किल पड़ेगी, क्योंकि बार-बार मन तादात्म्य कर नहीं चलता; यह कला आपको आ जाती है। दो-चार बार आप लेगा। पैर में चींटी काटेगी और आप तत्क्षण समझेंगे कि मुझे चींटी गिरते हैं, दो-चार बार गिरकर आपको बीच-बीच में ऐसा लगता | | ने काट लिया। और आपको पता भी नहीं चलेगा, आपका हाथ है कि नहीं गिरे। थोड़ी दूर साइकिल चल भी गई। आपको भीतर | चींटी को फेंक देगा और आप समझेंगे कि मैंने चींटी को हटा दिया। संतुलन का अनुभव होना शुरू हो जाता है।
मगर थोड़े दिन कोशिश करने पर-साइकिल जैसा चलाने पर फिर एक दफा आदमी साइकिल चलाना सीख ले, तो फिर आदमी गिरेगा, उठेगा-बहुत बार तादात्म्य हो जाएगा, उसका
198