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0 गीता दर्शन भाग-60
है, मृत्यु से भयभीत है। इसलिए कोई भी आसरा देता हो कि आत्मा | उसके पीछे कुछ कारण होना चाहिए। और कारण मेरी समझ में यह अमर है, तो वह कहेगा कि बिलकुल ठीक। जब वह बिलकुल है कि हमारा आत्मवाद अनुभव नहीं है। हमारा आत्मवाद मृत्यु के ठीक कह रहा है, तो सिर्फ मृत्यु के भय के कारण। वह चाहता है भय से पैदा होता है। अधिक लोग मरने से डरते हैं, इसलिए मानते कि आत्मा अमर हो।
हैं कि आत्मा अमर है। __ लेकिन आपकी चाह से सत्य पैदा नहीं होते। आप क्या चाहते अब यह बड़ी उलटी बात है। मरने से जो डरता है, उसे तो हैं, इससे सत्य का कोई संबंध नहीं है। और आप जब तक चाहते आत्मा की अमरता कभी पता नहीं चलेगी। क्योंकि मृत्यु की घटना रहेंगे, तब तक आप सत्य को जान भी न पाएंगे। सत्य को जानना घटती है शरीर में, और जो डर रहा है मृत्यु से, वह शरीर को अपने पड़ेगा आपको चाह को छोड़कर।
साथ एक मान रहा है। इसलिए वह कितना ही मानता रहे ___ तो विचार अक्सर ही स्वयं की छिपी हुई वासनाओं की पूर्ति होते | आत्मवाद, कि आत्मा सत्य है, आत्मा शाश्वत सत्य है; और वह हैं। और हम अपने को समझा लेते हैं। इसलिए अक्सर मेरा अनुभव | | कितना ही दोहराता रहे मन में कि मैं शरीर नहीं हूं, मैं आत्मा हूं, यह है कि जो भी मौत से डरे हुए लोग हैं, वे आत्मवादी हो जाते | लेकिन इन सब के पीछे अनुभव नहीं, इन सब के पीछे एक हैं। इसलिए इस मुल्क में दिखाई पड़ेगा।
सिद्धांत, एक विचार है; और विचार के पीछे छिपी एक वासना है। यह मुल्क इतने दिन तक गुलाम रहा। कोई भी आया और इस | विचार वासना से मुक्त नहीं हो पाता। विचार वासना का ही मुल्क को गुलाम बनाने में बड़ी आसानी रही। जितनी कम से कम बुद्धिगत रूप है। तकलीफ हमने दी गुलाम बनाने वालों को, दुनिया में कोई नहीं | भारत का जोर है अनुभव पर, विचार पर नहीं। भारत कहता है, देता। और बड़े आश्चर्य की बात है कि हम आत्मवादी लोग हैं! | | इसकी फिक्र छोड़ो कि वस्तुतः शरीर और आत्मा अलग हैं या नहीं। हम मानते हैं, आत्मा अमर है। लेकिन मरने से हम इतने डरते हैं | तुम तो यह प्रयोग करके देखो कि जब तुम्हारे शरीर में कोई घटना कि हमें कभी भी गुलाम बनाया जा सका। मौत का डर पैदा हुआ घटती है, तो वह घटना शरीर में घटती है या तुममें घटती है? तुम कि हम गुलाम हो गए। अगर हमें कोई डरा दे कि मौत करीब है, | उसे जानते हो? फासले से खड़े होकर देखते हो? या उस घटना के तो हम कुछ भी करने को राजी हो गए!
| साथ एक हो जाते हो? यह बड़ा असंगत मालूम पड़ता है। यह होना नहीं चाहिए। कोई भी व्यक्ति थोड़ी-सी सजगता का प्रयोग करे, तो उसे आत्मवादी मुल्क को तो गुलाम कोई बना ही नहीं सकता। क्योंकि प्रतीति होनी शुरू हो जाएगी कि मैं अलग हूं। और तब दोहराना न जिसको यही पता है कि आत्मा नहीं मरती, उसे आप डरा नहीं पड़ेगा कि मैं शरीर से अलग है। यह हमारा अनुभव होगा। सकते। और जिसको डरा नहीं सकते, उसे गुलाम कैसे बनाइएगा? | | कृष्ण कहते हैं, जो ऐसा जानता है-स्वयं को क्षेत्रज्ञ, शरीर को
गुलामी का सूत्र तो भय है। जिसको भयभीत किया जा सके, | क्षेत्र—उस तत्व को जानने वाले को ज्ञानी कहते हैं। और हे अर्जुन, उसको गुलाम बनाया जा सकता है। और जिसको भयभीत न किया तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ भी मेरे को ही जान। और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का जा सके, उसे कैसे गुलाम बनाइएगा? और आत्मवादी को कैसे | अर्थात विकार सहित प्रकृति का और पुरुष का जो तत्व से जानना भयभीत किया जा सकता है?
है, वह ज्ञान है, ऐसा मेरा मत है। जो जानता है कि आत्मा मरती ही नहीं, अब उसे भयभीत करने दूसरी प्रस्तावना। पहली तो बात, विचार से यह प्रतीति कभी न का कोई भी उपाय नहीं है। आप उसका शरीर काट डालें, तो वह | हो पाएगी, अनुभव से प्रतीति होगी। और जिस दिन यह प्रतीति हंसता रहेगा। और वह कहेगा कि व्यर्थ मेहनत कर रहे हो, क्योंकि | होगी कि मैं शरीर नहीं हूं, आत्मा है, उस दिन यह भी प्रतीति होगी जिसे तुम काट रहे हो, वह मैं नहीं हूं। और मैं तुम्हारे काटने से | कि वह आत्मा सभी के भीतर एक है। कटूंगा नहीं। इसलिए काटने पर भरोसा मत करो। तुम काटने से | | ऐसा समझें कि बहुत-से घड़े रखे हों पानी भरे, नदी में ही रख मुझे डरा न सकोगे। तुम काटकर मेरे शरीर को मिटा दोगे, लेकिन दिए हों। हर घड़े में नदी का पानी भर गया हो। घड़े के बाहर भी तुम मुझे गुलाम न बना सकोगे।
नदी हो, भीतर भी नदी हो। लेकिन जो घड़ा अपने को समझता हो लेकिन आत्मवादी मुल्क इतनी आसानी से गुलाम बनता रहा है। | कि यह मिट्टी की देह ही मैं हूं, उसे पड़ोस में रखा हुआ घड़ा दूसरा
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