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दुख से मुक्ति का मार्गः तादात्म्य का विसर्जन
चीखने-चिल्लाने लगता है। वह रोने लगता है। प्रतीति शुरू हो गई कि पैर में आग लगी है।
सम्मोहित आदमी को कुछ भी कह दिया जाए, वह स्वीकार कर लेता है। उसे वैसा दुख होना शुरू हो जाएगा। कोई दुख शरीर में घट नहीं रहा है, लेकिन अगर जानने वाला मान ले कि घट रहा है, तो घटना शुरू हो जाता है।
आपको शायद खयाल न हो, जमीन पर जितने सांप होते हैं, उनमें केवल तीन प्रतिशत सांपों में जहर होता है। बाकी सत्तानबे प्रतिशत तो बिना जहर के होते हैं। लेकिन बिना जहर के सांप के लोग भी मरते हैं।
अब यह बड़ी अजीब घटना है। क्योंकि जिस सांप में जहर ही नहीं है, उससे काटा हुआ आदमी मर कैसे जाता है! और इसीलिए तो सांप को झाड़ने वाला भी सफल हो जाता है। क्योंकि सत्तानबे प्रतिशत मौके पर तो कोई जहर होता नहीं, सिर्फ जहर के खयाल से आदमी मर रहा होता है। इसलिए झाड़ने वाला अगर खयाल दिला दे कि झाड़ दिया, तो बात खतम हो गई।
इसलिए मंत्र सरलता से काम कर जाता है। झाड़ने वाला सफल हो जाता है। सिर्फ भरोसा दिलाने की बात है, क्योंकि उस सांप ने भी भरोसा दिलाया है कि मुझमें जहर है। उसमें जहर तो था नहीं। भरोसे आदमी मर रहा है, तो भरोसे से आदमी बच भी सकता है। लेकिन दूसरी घटना भी संभव है। असली जहर वाले सांप का काटा हुआ आदमी भी मंत्रोपचार से बच सकता है। अगर नकली जहर से मर सकता है, तो असली जहर से भी बचने की संभावना है। अगर यह भ्रांति कि सांप ने मुझे काट लिया है इसलिए मरना ज़रूरी है मौत बन सकती है, तो यह खयाल कि सांप ने भला मुझे काटा है, लेकिन मंत्र ने मुझे मुक्त कर दिया, असली जहर से भी छुटकारा दिला सकता है।
अभी पश्चिम में मनसविद बहुत प्रयोग करते हैं और बहुत हैरान हुए हैं। दुनिया में हजारों तरह की दवाइयां चलती हैं। सभी तरह की दवाइयां काम करती हैं। होमियोपैथी भी बचाती है, एलोपैथी भी बचाती है, आयुर्वेद भी बचाता है। और भी, यूनानी हकीम भी बचाता है; नेचरोपैथ भी बचा लेता है। मंत्र से बच जाता है आदमी। किसी की कृपा से भी बच जाता है। डिवाइन हीलिंग, प्रभु - चिकित्सा से भी बच जाता है।
तो सवाल यह है कि आदमी इतने ढंगों से बचता है, तो विचारणीय है कि इसमें कोई वैज्ञानिक कारण है बचने का कि सिर्फ
आदमी का भरोसा बचा लेता है!
आपको शायद पता न हो, जब भी कोई नई दवा निकलती है, तो मरीजों पर ज्यादा काम करती है। लेकिन साल दो साल में फीकी पड़ जाती है, फिर काम नहीं करती। जब नई दवा निकलती है, तो मरीजों पर क्यों काम करती है? नई दवा से ऐसा लगता है कि बस, अब सब ठीक हो गया। लेकिन साल, छः महीने में कुछ मरीज फायदा उठा लेते हैं। बाकी इसके बाद फिर फायदा नहीं उठा पाते।
एक बहुत विचारशील डाक्टर ने कहा है कि जब भी नई दवा निकले, तब फायदा पूरा उठा लेना चाहिए, क्योंकि थोड़े ही दिन में | दवा काम नहीं करेगी।
नई दवा काम क्यों करती है? थोड़े दिन पुरानी पड़ जाने के बाद | दवा का रहस्य और चमत्कार क्यों चला जाता है? तो उस पर बहुत | अध्ययन किया गया और पाया गया कि जब दवा निकलती है, तो उसके विरोध में कुछ भी नहीं होता। उसकी असफलता की कोई खबर न मरीज को होती है, न डाक्टर को होती है। डाक्टर भी भरोसे से भरा होता है कि दवा नई है, चमत्कार है ।
विज्ञापन, अखबार सब खबरें देते हैं कि चमत्कार की दवा खोज ली गई है। डाक्टर भरोसे से भरा होता है। मरीज को दवा देता है | और वह कहता है, बिलकुल घबड़ाओ मत। अब तक तो इस बीमारी का मरीज बच नहीं सकता था। लेकिन अब वह दवा हाथ में आ गई है कि अब इस मरीज को मरने की कोई जरूरत नहीं है। अब तुम बच जाओगे।
वह जो डाक्टर का भरोसा है, वह मंत्र का काम कर रहा है। उसे पता नहीं कि वह पुरोहित का काम कर रहा है इस क्षण में। उसकी आंखों में जो रौनक है, वह जो भरोसे की बात है, वह जो मरीज से | कहना है कि बेफिक्र रह, मरीज को भी यह उत्साह पकड़ जाता है। मरीज बच जाता है।
लेकिन साल, छः महीने में ही अनुसंधान करने वाले दवा में खोज करते हैं कि सच में इसमें ऐसा कुछ है या नहीं है। मेडिकल जरनल्स में खबरें आनी शुरू हो जाती हैं कि इस दवा में ऐसा कोई तत्व नहीं है कि जिस पर इतना भरोसा किया जा सके। खोजबीन शुरू हो जाती है। डाक्टर का भरोसा कम होने लगता है। अब भी वह दवा डाक्टर देता है, लेकिन वह कहता है, शायद काम कर सके, शायद न भी करे। वह जो शायद है, वह मंत्र की हत्या कर | देता है। डाक्टर का भरोसा गया; मरीज का भी भरोसा गया।
मैं एक घटना पढ़ रहा था कि एक मरीज पर एक दवा का प्रयोग
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