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0 गीता दर्शन भाग-60
न ऐसी प्रतीति करते कि सिर में दर्द हो रहा है, ऐसा मुझे पता चल तो कृष्ण इस सूत्र में इन दोनों के भेद के संबंध में प्राथमिक रहा है। आप कहते हैं, मेरे सिर में दर्द है।
| प्रस्तावना कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, यह शरीर क्षेत्र है, ऐसा कहा जो भी प्रतीति होती है, आप उसके साथ एक हो जाते हैं। वह जाता है। और इसको जो जानता है, उसको क्षेत्रज्ञ, ऐसा उसके तत्व जो जानने वाला है, उसको आप अलग नहीं बचा पाते। वह जो को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं। जानने वाला है, वह खो जाता है। ज्ञेय में खो जाता है ज्ञाता। दृश्य आप शरीर के साथ अपने को जब तक एक कर रहे हैं, तब तक में खो जाता है द्रष्टा। भोग में खो जाता है भोक्ता। कर्म में खो जाता | दुख से कोई छुटकारा नहीं है। है कर्ता। वह जो भीतर जानने वाला है, वह दूर नहीं रह पाता और ___ अब यह बहुत मजे की और बहुत चमत्कारिक घटना है। शरीर एक हो जाता है उससे जिसे जानता है। पैर में दर्द है, और आप दर्द को कोई दुख नहीं हो सकता। शरीर में दुख होते हैं, लेकिन शरीर के साथ एक हो जाते हैं।
| को कोई दुख नहीं हो सकता। क्योंकि शरीर को कोई बोध नहीं है। यही एकमात्र दुर्घटना है। अगर कोई भी मौलिक पतन है, जैसा इसलिए आप मुर्दा आदमी को दुख नहीं दे सकते। इसीलिए तो ईसाइयत कहती है, कोई ओरिजिनल, कोई मूल पाप, अगर कोई | डाक्टर इसके पहले कि आपका आपरेशन करे, आपको बेहोश कर . एक पतन खोजा जाए, तो एक ही है पतन और वह है तादात्म्य। देता है। बेहोश होते से ही शरीर को कोई दुख नहीं होता। लेकिन जानने वाला एक हो जाए उसके साथ, जिसे जा जान रहा है। । | सब दुख शरीर में होते हैं। और वह जो जानने वाला है, उसमें कोई दर्द आप नहीं हैं। आप दर्द को जानते हैं। दर्द आप हो भी नहीं |
आप हा भा नहीं दुख नहीं होता। सकते। क्योंकि अगर आप दर्द ही हो जाएं, तो फिर दर्द को जानने | __इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। वाला कोई भी न बचेगा।
दुख शरीर में घटते हैं; और जाने जाते हैं उसमें, जो शरीर नहीं सुबह होती है, सूरज निकलता है, तो आप देखते हैं कि सूरज है। जानने वाला अलग है, और जहां दुख घटते हैं, वह जगह निकला, प्रकाश हो गया। फिर सांझ आती है, सरज ढल जाता है, अलग है। और जहां दख घटते हैं, वहां जानने की कोई संभावना अंधेरा आ जाता है। तो आप देखते हैं, रात आ गई। लेकिन वह जो | नहीं है। और जो जानने वाला है, वहां दुख के घटने की कोई देखने वाला है, न तो सुबह है और न सांझ। वह जो देखने वाला है,। | संभावना नहीं है। न तो सूरज की किरण है, रात का अंधेरा भी नहीं है। वह जो देखने | | जब कोई मेरे पैर को काटता है, तो पैर के काटने की घटना तो वाला है, वह तो अलग खड़ा है। वह सुबह को भी देखता है उगते, शरीर में घटती है; और अगर जानने वाला मौजूद न हो, तो कोई दुख
सांझ को भी देखता है। फिर रात का अंधेरा भी देखता है, दिन घटित नहीं होगा। लेकिन जानने की घटना मुझमें घटती है। कटता का प्रकाश भी देखता है। वह जो देखने वाला है, वह अलग है। । | है शरीर, जानता हूं मैं। यह जानना और शरीर में घटना का घटना
लेकिन जीवन में हम उसे अलग नहीं रख पाते हैं। वह तत्क्षण | | इतना निकट है कि दोनों इकट्ठे हो जाते हैं; हम फासला नहीं कर पाते; एक हो जाता है। कोई आपको गाली दे देता है, खट से चोट पहुंच दोनों के बीच में जगह नहीं बना पाते। हम एक ही हो जाते हैं। जाती ऐसा नहीं कर पाते कि देख पाएं कि कोई गाली दे जब शरीर पर कटना शुरू होता है, तो मुझे लगता है, में कट रहा है, और देख पाएं कि मन में चोट पहुंच रही है। | रहा है। और यह प्रतीति कि मैं कट रहा है, दुख बन जाती है। हमारे
दोनों बातें आप देख सकते हैं। आप देख सकते हैं कि गाली दी सारे दुख शरीर से उधार लिए गए हैं। शरीर में कितने ही दुख घटें, गई, और आप यह भी देख सकते हैं कि मन में थोड़ी चोट और अगर आपको पता न चले, तो दुख घटते नहीं। और शरीर में पीड़ा पहुंची। और आप दोनों से दूर खड़े रह सकते हैं। | बिलकुल दुख न घटें, अगर आपको पता चल जाए, तो भी दुख
यह जो दूर खड़े रहने की कला है, सारा धर्म उस कला का ही घट जाते हैं। दूसरी बात भी खयाल में ले लें। शरीर में कोई दुख न नाम है। वह जो जानने वाला है, वह जानी जाने वाली चीज से दूर घटे, लेकिन आपको प्रतीति करवा दी जाए कि दुख घट रहा है, तो खड़ा रह जाए; वह जो अनुभोक्ता है, अनुभव के पार खड़ा रह दुख घट जाएगा। जाए। सब अनुभव का नाम क्षेत्र है। और वह जो जानने वाला है, सम्मोहन में सम्मोहित व्यक्ति को कह दिया जाए कि तेरे पैर उसका नाम क्षेत्रज्ञ है।
| में आग लगी है, तो पीड़ा शुरू हो जाती है। वह आदमी
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