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0 गीता दर्शन भाग-60
दिखाया भी, उसने संसार छीन भी लिया। हम हर हालत में राजी मुझ में ये-ये गुण हैं, अब मिल जाओ! हैं। अनेक मुझसे कहते थे, पत्नी को छोड़कर भाग जाओ। छोड़ दो तो कृष्ण आखिरी शर्त बड़ी गहरी जोड़ देते हैं। और वह यह कि संसार। मैंने कहा, वह परमात्मा जब छुड़ाना चाहेगा, छुड़ा लेगा। | ये सारे लक्षण निष्काम भाव से हों। यह परमात्मा को पाने की दृष्टि हम राजी हैं। हम ऐसे ही राजी हैं। आखिर मेरी बात सही निकली। से नहीं, बल्कि इन प्रत्येक लक्षण का अपना ही आनंद है. इसी दष्टि परमात्मा ने उसे उठा लिया।
| से। इनसे परमात्मा मिलेगा जरूर, लेकिन मिलने की वासना अगर और फिर जिस पत्नी ने मुझे जीवनभर अनेक-अनेक तरह के | रही, तो बाधा पड़ जाएगी। अनुभव दिए सुख के और दुख के, उसके लिए क्या इतना भी | | एक मित्र मेरे पास आए। उन्होंने मुझसे कहा कि ब्रह्मचर्य मुझे अनुग्रह न मानूं कि विदाई के क्षण में गीत गाकर विदा न दे सकूँ! | | उपलब्ध करना है। कामवासना से छूटना है। इससे छुटकारा जिसने अपना पूरा जीवन मेरे सुख-दुख में लगाया, उसके लिए दिलाइए। इस शत्रु का कैसे नाश हो? इस जहर से कैसे बचूं? इतना धन्यवाद तो मन में होना ही चाहिए।
तो मैंने उनसे कहा, आप गलत आदमी के पास आ गए। तो मैं उसके धन्यवाद के लिए गा रहा हूं और परमात्मा के | जिन्होंने जहर कहा है, आप उन्हीं के पास जाइए। मैं इसको जहर धन्यवाद के लिए गा रहा हूं कि मैं थोड़ा रुक गया, तेरी राह देखी, | कहता नहीं। मैं तो इसे एक शक्ति कहता हूं। तो मैं आपको कहता तो तूने खुद ही पत्नी छीन ली। हम छोड़कर भागते, तो यह मजा न | | हूं कि इसे ठीक से जानिए, पहचानिए, इसके अनुभव में उतरिए, होता-उसने बड़ी अदभुत बात कही-कि हम छोड़कर भागते, आप मुक्त हो जाएंगे। लेकिन मुक्त होना परिणाम होगा, फल नहीं। तो यह मजा न होता! अधूरी रहती, कच्ची रहती। हमारा ही छोड़ना | उन्होंने कहा, अच्छी बात है। होता न। हमारी समझ कितनी है? लेकिन तूने उठा लिया। अब सब वे तीन महीने बाद मेरे पास आए और कहने लगे, अभी तक कोरा आकाश हो गया। पत्नी के साथ पूरी गृहस्थी विलीन हो गई | मुक्त नहीं हुआ! है। यह तेरी अनुकंपा है।
तो मैंने उनसे कहा, मुक्ति का खयाल अगर साथ में रखकर ही कृष्ण कहते हैं, जिस हालत में, जिस स्थान में, जिस स्थिति में चल रहे हैं, तो अनुभव पूरा नहीं हो पाएगा। क्योंकि आप पूरे वक्त कोई ममता नहीं; विपरीत हो जाए, तो भी विपरीत में प्रवेश करने सोच रहे हैं, कैसे मुक्त हो जाऊं, कैसे भाग जाऊं, कैसे अलग हो का उतना ही सहज भाव बिना किसी आसक्ति के पीछे, ऐसा स्थिर जाऊं, कैसे ऊपर उठ जाऊं। तो आप गहरे कैसे उतरिएगा? अगर बद्धि वाला भक्तिमान परुष मझे प्रिय है। और जो मेरे परायण हए छटने की बात पहले ही तय कर रखी है और छटने के लिए ही गहरे श्रद्धायुक्त पुरुष इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम भाव | | उतरने का प्रयोग कर रहे हैं, तो गहरा उतरना ही नहीं हो पाएगा। से सेवन करते हैं, वे भक्त मेरे को अतिशय प्रिय हैं।
और गहरा उतरना नहीं होगा, तो छूटना भी नहीं होगा। आखिरी बात बहुत समझने जैसी है कि यह जो आनंद की | तो मैंने कहा, छूटने की बात तो आप भूल जाइए। आप तो सिर्फ प्रक्रिया है, यह जो प्रभु-प्रेम का मार्ग है, इसको भी कृष्ण कहते हैं, | गहरे उतरिए, छूटना घटित होगा। आपको उसकी चिंता करने की इस अमृत को भी जो निष्काम भाव से सेवन करते हैं।
जरूरत नहीं है। ऐसा मत करना कि आप सोचें कि अच्छा! यह-यह करने से परमात्मा पाया जाता है, लेकिन परमात्मा कोई सौदा नहीं है, कि परमात्मा के प्रिय हो जाएंगे, तो हम भी यह-यह करें। तो आपसे | हम कहें कि ये-ये लक्षण मेरे पास हैं, अभी तक नहीं मिले! अब भूल हो जाएगी। तब तो आप परमात्मा पाने के लिए ऐसा कर रहे | मिलो। मैं सब तरह से तैयार हूं। हैं। तो यह जो करना है, कामवासना से भरा है। इसमें वासना है, तो आप कभी भी न पा सकेंगे, क्योंकि यह तो अहंकार का ही इसम फल का इच्छा है। इसमे आप परमात्मा को पाने के लिए आधार हुआ। परमात्मा पाया जाता है तब, जब आप अपने को उत्सुक हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं। आप परमात्मा को पाने के लिए | इतना भूल गए होते हैं इन लक्षणों में, इतने लीन हो गए होते हैं कि कारण निर्मित कर रहे हैं।
| आपको खयाल ही नहीं होता कि अभी परमात्मा भी पाने को शेष इसका यह मतलब हुआ कि आप परमात्मा को पाने के लिए है। जिस क्षण आप इतने शांत और निष्काम होते हैं, सिर्फ होते हैं, ठीक सौदा करने की स्थिति में आ रहे हैं कि कह सकें कि हां, अब । इतनी भी वासना मन में नहीं रहती, इतनी भी लहर नहीं होती कि
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