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________________ आधुनिक मनुष्य की साधना परमात्मा को पाना है, उसी क्षण अचानक आप पाते हैं कि परमात्मा पा लिया गया है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, ये सब बातें भी निष्काम! इनमें पीछे कोई कामवासना न हो। धर्ममय अमृत को निष्काम भाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मेरे को अतिशय प्रिय हैं। भक्ति - योग नामक बारहवां अध्याय समाप्त । भक्ति-योग की चर्चा समाप्त। उससे आप यह मत समझना कि आपका अध्याय समाप्त। किताब का अध्याय समाप्त। आपका सिर्फ शुरू भी हो तो बहुत। प्रारंभ भी हो जाए, तो बहुत। यह किताब का अध्याय समाप्त हुआ। आपके जीवन में भक्ति का अध्याय शुरू हो, तो काफी जाए, तीन बातें अंत में आपको स्मरण करने को कह दूं। एक, भक्ति का अर्थ है, सत्य को बुद्धि से नहीं, हृदय से पाया जा सकता है। विचार से नहीं, भाव से पाया जा सकता है। चिंतन से नहीं, प्रेम से पाया जा सकता है। पहली बात । दूसरी बात, भक्ति को पाना हो, तो आक्रामक चित्त बाधा है। ग्राहकं चित्त ! पुरुष का चित्त बाधा है। स्त्रैण चित्त ! एक प्रेयसी की तरह प्रभु को पाया जा सकता है। तीसरी बात, प्रभु को पाना हो, तो प्रभु को पाने की त्वरा, ज्वर, फीवर, बुखार नहीं चाहिए । प्रभु को पाना हो तो अत्यंत शांत, निष्काम भाव दशा चाहिए। उसको पाने के लिए उसको भी भूल जाना जरूरी है। खूब याद करें उसे, लेकिन अंतिम क्षण में उसे भी भूल जाना जरूरी है, ताकि वह आ जाए। और जब हम बिलकुल विस्मृत हो गए होते हैं; यह भी न अपना पता रहता, न उसका पता रहता; न यह खयाल रहता कि कौन खोज रहा है, और न यह खयाल रहता कि किसको खोज रहा है, बस उसी क्षण, उसी क्षण घटना घट जाती है, और उस अमृत की उपलब्धि हो जाती है। पांच मिनट रुकेंगे। संन्यासी कीर्तन करेंगे। आपसे आशा है, आप भी अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर ताली बजाएं, ताकि मैं खयाल ले सकूं कि किन-किन के मन भक्ति के मार्ग पर जाने के लिए तैयार हैं। झूठा कोई हाथ न उठाए। हाथ ऊपर उठा लें, साथ में तालियां बजाएं। कीर्तन में सम्मिलित हों। बैठे रहें। उठें न, एक पांच मिनट बीच से कोई उठे न ! कीर्तन में सम्मिलित हों। अभी कीर्तन शुरू होगा, आप भी ताली बजाएं और कीर्तन में साथ दें। 183
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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