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गीता दर्शन भाग-6
आपके बाबत क्या कह रहे हैं!
कौन क्या कह रहा है आपके बाबत, इसको इकट्ठा करके क्या होगा ? मरते वक्त सब हिसाब भी कर लिया और किताब में सब लिख भी डाला कि कौन ने क्या कहा, फिर क्या होगा ? मौत आपको जांचेगी, आपके हिसाब-किताब को नहीं ।
सुना है मैंने, एक यहूदी फकीर हिलेल मर रहा था। किसी ने हिलेल से कहा कि हिलेल, क्या सोच हो मरते क्षण में ? तो हिलेल ने एक बड़ी कीमती बात कही। क्योंकि यहूदी मूसा को मानते हैं; हिलेल ने कहा कि जिंदगीभर मैं मूसा की फिक्र करता रहा कि मूसा ने क्या कहा है, क्या समझाया है; उसके वचन का क्या
है और मैं मूसा जैसा कैसे हो जाऊं - यही मेरी चिंता, यही मेरी जीवनभर की धारा थी। मरते वक्त मुझे यह खयाल आ रहा है कि हिलेल, परमात्मा मुझसे यह नहीं पूछेगा कि तू मूसा क्यों नहीं हुआ। परमात्मा मुझसे पूछेगा, तू हिलेल होने से क्यों चूक गया? मूसा के संबंध में मुझसे पूछेगा ही नहीं वह । वह पूछेगा मेरे संबंध में, और मैं नाहक मूसा के संबंध में परेशान रहा।
और परमात्मा यह भी नहीं पूछेगा कि लोग मेरे संबंध में क्या मानते थे। परमात्मा तो सीधा ही देख लेगा मेरी आत्मा में। वह कोई सर्टिफिकेट तो नहीं मांगेगा, कि प्रमाणपत्र लाए हो चरित्र के ? अच्छा आदमी मानते थे लोग कि बुरा आदमी मानते थे तुम्हें? कुछ प्रमाणपत्र ले आए हो जमीन से, वह नहीं पूछेगा। क्योंकि प्रमाणपत्र तो अंधों के काम आते हैं। उसकी आंखें तो मेरी आत्मा में सीधा प्रवेश कर जाएंगी, और वे जान ही लेंगी कि मैं कौन हूं।
तो मैंने नाहक ही अपना जीवन गंवाया। अब जितने भी थोड़े क्षण मेरे पास बचे हैं, अब तुम हट जाओ यहां से, हिलेल ने लोगों से कहा, तुम जिंदगीभर मुझे घेरे रहे। हट जाओ। और मैं शांत होकर उसको देख लेना चाहता हूं, जो मैं हूं; और मौन होकर उसमें उतर जाना चाहता हूं, जो मेरा अस्तित्व है, जो मेरा व्यक्तित्व है। परमात्मा के सामने जब मैं खड़ा होऊं और वह मुझे सीधा देखे, तो मैं खड़ा हो सकूं शांति से। तुम हट जाओ, हिलेल ने कहा, मेरे पास
भीड़ हट जाए; अब मुझे अकेला हो जाने दो। जिंदगीभर मैं भीड़ से घिरा रहा, दूसरों से ।
निंदा और स्तुति से वह व्यक्ति मुक्त हो सकेगा, जो दूसरों की चिंता छोड़ देता है। इसका यह मतलब नहीं है कि दूसरों के प्रति लापरवाह हो जाता है। इसका यह भी मतलब नहीं है कि स्वार्थी हो जाता है। सच तो यह है कि जो दूसरों के विचार की बहुत चिंता
करता है, वह दूसरों की चिंता जरा भी नहीं करता। वह तो उनके विचार की चिंता करता है कि वे मेरे बाबत क्या कह रहे हैं। वह अहंकारी है। उसका दूसरों से कोई लेना-देना नहीं। वह दूसरों के विचार की अपने अहंकार के लिए फिक्र करता है।
लेकिन जो आदमी दूसरों की चिंता छोड़ देता है, उसका अहंकार गिर जाता है । अहंकार दूसरों के सहारे के बिना खड़ा नहीं हो सकता; उसके लिए दूसरों का सहारा चाहिए। वह एक झूठ है, जो दूसरों के सहारे खड़ा होता है । सब झूठ दूसरों के सहारे खड़े होते हैं; सत्य अपने सहारे खड़े होते हैं।
इसलिए धर्म अकेले भी हो सकता है, राजनीति अकेले नहीं हो सकती। राजनीति बड़ा से बड़ा झूठ है। उसको दूसरों के सहारे की जरूरत है। दूसरे का वोट, दूसरे का मत, दूसरे पर सारा खेल खड़ा है। राजनीति का बड़ा से बड़ा नेता भी दूसरों के सहारे खड़ा है। दूसरों की अंगुलियां उसको बड़ा किए हुए हैं। वे हाथ हटा लें, वह नीचे जमीन पर गिर जाएगा और उठने का उसे कोई मौका नहीं रहेगा।
लेकिन धार्मिक व्यक्तित्व किसी के सहारे खड़ा नहीं होता, अपने ही कारण खड़ा होता है। उसे कोई गिरा नहीं सकता, क्योंकि किसी | ने उसे सम्हाला ही नहीं है।
कृष्ण कहते हैं कि जो निंदा स्तुति को समान समझने लगा है, मननशील है एवं जिस-किस प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा संतुष्ट है। और परमात्मा जैसा रखे, वैसा ही होने को राजी है। और परमात्मा जैसा रखे, उसमें भी विधायक खोज लेता है। मननशील का अर्थ है, विधायक को खोज लेने वाला ।
हम नकारात्मक को खोज लेने वाले लोग हैं। हमें कांटा दिखाई पड़ता है, फूल दिखाई नहीं पड़ता। अगर एक आदमी के बाबत मैं कहूं कि वह गजब का कलाकार है, उसकी बांसुरी जैसी बांसुरी कोई नहीं बजा सकता। तो आप फौरन कहेंगे, छोड़िए भी, वह क्या बांसुरी बजाएगा ! चरित्रहीन है।
यह नकारात्मक चिंतन की प्रक्रिया है। विधायक चिंतन की प्रक्रिया होगी कि मैं आपसे कहूं कि फलां आदमी चरित्रहीन है, उससे बचना। और आप कहें कि क्या वह चरित्रहीन कैसे हो सकता है? उसकी बांसुरी में ऐसे प्राण हैं; वह बांसुरी इतनी अदभुत बजाता है; चरित्रहीन होगा कैसे? नहीं; मैं नहीं मान सकता हूं कि वह चरित्रहीन है।
तो आप देख रहे हैं उसको, जो फूल है । और जो फूलों को | देखता है, उसे और ज्यादा फूल दिखाई पड़ने लगते हैं। और जो
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