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@ गीता दर्शन भाग-60
गई; स्पेस पैदा हो गई। उसमें मैं नए लोगों को बुला पाया। | संतुष्ट है और रहने के स्थान में ममता से रहित है, वह स्थिर बुद्धि
फिर मेरे बोलने का जो ढंग है, उससे बड़ी गड़बड़ हो जाती है। | वाला भक्तिमान पुरुष मेरे को प्रिय है। और जो मेरे परायण हुए मेरे बोलने के ढंग से लोगों को ऐसा लगता है कि मैं तार्किक हूं। | श्रद्धायुक्त पुरुष इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम भाव बोलने के ढंग से ऐसा लगता है कि मैं बुद्धिवादी हूं, रेशनलिस्ट हूं। से सेवन करते हैं, वे भक्त मेरे को अतिशय प्रिय हैं। इसलिए कुछ तार्किक और बुद्धिवादी मेरे पास आ जाते हैं। निंदा-स्तुति को समान समझने वाला और मननशील है...। ___ मेरे बोलने का ढंग तार्किक है; लेकिन जो मैं कहना चाह रहा हूं, निंदा-स्तुति को समान कब समझा जा सकता है? निंदा दुख वह तर्क के बिलकुल बाहर है। मेरी पहुंच का ढंग बुद्धिवादी है, | क्यों देती है? स्तुति सुख क्यों देती है? जब कोई आपकी प्रशंसा लेकिन मुझसे ज्यादा अबुद्धिवादी खोजना मुश्किल है।
करता है, तो भीतर फूल क्यों खिल जाते हैं? और जब कोई निंदा तो उन लोगों को हटाने की जरूरत पड़ी, क्योंकि ये सिर्फ समय करता है, तो भीतर सब उदास, मृत्यु जैसा क्यों हो जाता है? कारण खराब करते हैं, चर्चा, चर्चा, चर्चा! इन्हें करना कुछ भी नहीं खोजना जरूरी है, तो ही हम निंदा-स्तुति के पार हो सकें। है-शब्द, शब्द, शब्द। तो मैंने कहा, चलो, कीर्तन शुरू कर दो। जब कोई स्तुति करता है, तो आपके अहंकार को तृप्ति होती है। कीर्तन होते से ही वे भाग गए। वे अब मेरे पास नहीं आते। | जब कोई स्तुति करता है, तो असल में वह यह कह रहा है कि जैसा
ऐसा मुझे गलत लोगों से छुटकारा भी पाना पड़ता है, ठीक लोगों | मैं अपने को समझता था, वैसा ही यह आदमी भी समझता है। आप को बुलाना भी पड़ता है।
समझते हैं कि आप बहुत सुंदर हैं। और जब कोई कह देता है कि ___एक बात तय है कि सत्य जब भी कहीं हो, तो सभी चीजें उसका | धन्य हैं; कि आपके दर्शन से हृदय प्रफुल्लित हुआ; ऐसा सौंदर्य सहयोग करती हैं। आप कुछ भी करें-विरोध करें, इनकार करें, | कभी देखा नहीं! तो आप प्रसन्न होते हैं। क्यों? क्योंकि दर्पण के खिलाफ बोलें-आप कुछ भी करें, आपका हर करना सत्य के पक्ष सामने खड़े होकर यही आपने अपने से कई बार कहा है। यह पहली में ही पड़ता है, तभी वह सत्य है। सत्य हर चीज का उपयोग कर दफा कोई दूसरा भी आपसे कह रहा है। लेता है, विपरीत का भी, विरोधी का भी।
और अपनी बात का भरोसा आपको नहीं होता। अपनी बात का इसलिए इन सब बातों में पड़ने की, इस सबमें समय खराब आपको भरोसा आपको क्या होगा, अपने पर ही भरोसा नहीं है। करवाने की, इन सब का उत्तर देने की कोई भी जरूरत नहीं है। चीजें जब कोई दूसरा कहता है, तो भरोसा होता है कि ठीक है, बात सच अपने आप रास्ता बनाती चली जाती हैं।
है। वह जो दर्पण के सामने मुझे लगता था, बिलकुल सही है। यह एक ही बात का ध्यान होना चाहिए कि हम जो कर रहे हैं, अगर | आदमी भी कह रहा है। और यह क्यों कहेगा! अहंकार को तृप्ति वह सत्य है, तो सत्य सभी का उपयोग कर लेगा। और अंतिम क्षण | | मिलती है। और आपकी सेल्फ इमेज, वह जो प्रतिमा है अपने मन में, मैंने आपको जो लाभ पहुंचाया, वह अकेला मेरा ही लाभ नहीं में, वह परिपुष्ट होती है। होगा, उसमें उन विरोधियों का भी उतना ही हाथ होगा, जिन्होंने जब कोई निंदा करता है और कह देता है कि क्या शक्ल पाई है! विरोध किया। और अंतिम क्षण में सभी चीजें संयुक्त हो जाती हैं, | भगवान कहीं और देख रहा था, जब आपको बनाया? कि सामान अगर सत्य है तो। लक्ष्य पर पहुंचकर सभी चीजें सत्य हो जाती हैं। चुक गया था? कि देखकर ही विरक्ति पैदा होती है, संसार से तब आप मुझे ही धन्यवाद नहीं देंगे, सूर्योदय गौड़ को भी देंगे, | भागने का मन होता है! तब आपको चोट पड़ती है। क्यों चोट पड़ती निर्मला देवी श्रीवास्तव को भी देंगे।
| है? अहंकार को ठेस लगती है। जिस दिन आपको सत्य का अनुभव होगा. उस दिन आप दोनों ऐसा कौन है, जो अपने को सुंदर नहीं मानता? करूप से करूप को धन्यवाद देंगे। क्योंकि उन्होंने भी काम किया, उन्होंने भी व्यक्ति भी अपने को सुंदर मानता है। लेकिन अपनी मान्यता के मेहनत ली।
लिए भी दूसरों का सहारा चाहिए। क्योंकि हमारी अपनी कोई अब हम सूत्र को लें।
आत्म-स्थिति तो नहीं है। सुंदर भी हम मानते हैं दूसरों के सहारे, तथा जो निंदा-स्तुति को समान समझने वाला और मननशील है और अगर दूसरे कुरूप कहने लगे, तो फिर सुंदर मानना मुश्किल एवं जिस-किस प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही हो जाता है।
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